Ranchi-भले ही धनबाद के अखाड़े में सरयू के सियासी अरमानों के विपरीत अनुपमा सिंह की इंट्री हो चुकी हो, चर्चित मजदूर नेता और कांग्रेसी स्व. राजेन्द्र सिंह की यह बड़ी पतोह अपने पति और बेरमो विधायक अनुप सिंह के साथ इस चिलमिलाती धूप में धनबाद की गलियों की खाक छान रही हो. बावजूद इसके अभी भी सरयू के तरकश से तीरों की बौछार कम नहीं हुई है. लेकिन सरयू राय के निशाने पर अभी भी अनुपमा सिंह नहीं है. वह तो अभी भी उसी ढुल्लू महतो पर निशाना साधते चले जा रहे हैं. जिस ढुल्लू महतो की इंट्री में उन्हे अपने बूझते सियासी ख्वाबों को परवान चढ़ने की संभावना जगी थी.
ढुल्लू महतो के वंशजों ने बाधमारा को बनाया था अपना ठिकाना
अपने ताजातरीन हमले में सरयू राय ने यह दावा किया है कि कोयलांचल का टाईगर माना जाना वाला ढुल्लू महतो 1932 का खतियानी नहीं है. वह तो मूल रुप से बिहार के नवादा जिले के चिताही गांव का रहने वाला है, ढुल्लू महतो के वंशज काम की खोज में धनबाद आये थें और बाद में बाधमारा को अपना आशियाना बनाया. जहां इस परिवार के द्वारा गरीबों के जमीन पर अवैध कब्जा किया गया. बाद में ढुल्लू महतो भी इसी कोयला खदान में काम करने लगा और धीरे–धीरे मजदूर राजनीति का सितारा बन सामने आया. बात यही नहीं रुकी, इसी दौरान ढुल्लू महतो ने टाईगर सेना का गठन भी किया, आज भी इस सेना के हजारों सदस्य है.
ढुल्लू महतो को खांटी खतियानी होने का दावा
यहां ध्यान रहे कि ढुल्लू महतो खुद को खांटी और खतियानी झारखंड होने का दावा करते हैं, जबकि दूसरी ओर सरयू राय से लेकर अनुप सिंह पर बाहरी होने का आरोप लगता रहा है. खासकर भाषा आन्दोलन की सवारी कर सियासत में संभावनाओं की तलाश कर रहे टाईगर जयराम इस बाहरी भीतरी के आग को खूब उछाल रहे हैं. भाषा आन्दोलन की सबसे अधिक हनक इसी बोकारो, धनबाद और गिरिडीह में देखी गयी थी. इसी भाषा आन्दोलन के दौरान निर्मित मानव श्रृंखला के बाद टाईगर जयराम मुख्य धारा की मीडिया की सुर्खियों में आया था. जैसे ही भाषा आन्दोलन की आंच कुछ मंद हुई, टाइगर जयराम इस पूरी लड़ाई को खतियानी लड़ाई के रुप में तब्दील कर चुके थें और निशाने पर झारखंड की सियासत के सभी पार्टियों के बाहरी चेहरे, इसमें एक नाम निवर्तमान सांसद पीएन सिंह का भी था. दावा किया जाता है कि इस बाहरी-भीतरी के आंच मंद करने के लिए भाजपा ने पीएन सिंह का पत्ता काटा और ढुल्लू महतो को अपना उम्मीदवार बनाने का फैसला किया. इस प्रकार जयराम के इस बाहरी-भीतरी की लडाई में ढुल्लू महतो को अपनी किस्मत खुलती दिखी.
ढुल्लू महतो के रुप में भाजपा ने खेला पिछड़ा कार्ड
ध्यान रहे कि ढुल्लू महतो पर भाजपा के इस दांव को एक मजबूत सियासी चाल माना जाता है. क्योंकि ढुल्लू महतो की पहचान खांटी झारखंडी चेहरे की है. जिस पर बाहरी होने का ढप्पा नहीं है. लेकिन सरयू राय अब भाजपा के इसी दावे को धवस्त करने की राह पर है. हालांकि इस दावे में कितनी सच्चाई और कितनी सियासत है, अभी इसकी परते खुलनी बाकी है. धीरे-धीरे ही सही इसकी सच्चाई भी सामने आ जायेगी. लेकिन इतना तय है कि सरयू राय ने अभी अपना हथियार नहीं डाला है. इस हमले के साथ वह यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि अभी तरकश में एक से बढ़कर ब्रह्मास्त्र है, हार या जीत तो अपनी जगह, लेकिन विजयश्री के माले का वरण इतना आसान भी नहीं है. चाहे वह बहू अनुपमा हों या ढुल्लू महतो, यदि जीत की वरमाला पहननी है, तो इन विषैले तीरों का सामना करना ही होगा.
जब ढुल्लू के आंतक में खिला था कमल का फूल
यहां यह भी बता दें कि ढुल्लू महतो के सियासी जीवन की शुरुआत बाबूलाल के झावीमो के बनैर तले वर्ष 2009 में बाधमारा विधान सभा चुनाव से हुई थी, तब ढुल्लू महतो ने जलेश्वर महतो जैसे धाकड़ महतो चेहरे को परास्त कर एक सनसनी फैला दी थी. हालांकि तब ढुल्लू महतो की इस जीत से भाजपा को अपने अरमानों पर पानी फिरता दिखा था. जिस बाधमारा पर उसकी नजर वर्षों से जमी हुई थी, ढुल्लू महतो की इस जीत से वह ख्वाब उसे दूर जाता दिख रहा था. तब भाजपा के नेता बाधमारा की जनता के बीच ढुल्लू महतो के इस कथित आंतक को समाप्त करना का उद्दोष करते थें. लेकिन सियासत का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि वर्ष 2014 आते-आते यही ढुल्लू महतो भाजपा की जरुरत बन गयें. बाबूलाल मरांडी का यह खोज कमल की सवारी कर बैठा. ढुल्लू महतो का कथित आंतक तो समाप्त नहीं हुआ, लेकिन इस आंतक में भाजपा को अपना कमल खिलता जरुर नजर आया. 2014 में ढुल्लू महतो कमल छाप पर एक बार फिर से विधान सभा पहुंचे और रधुवर दास के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गयी. मजे की बात यह है कि सरयू राय भी उस सरकार का हिस्सा थें, मंत्री पद का शोभा बढ़ा रहे थें. लेकिन जीत के इस जश्न में ना तो भाजपा और ना ही सरयू राय को ढुल्लू महतो का वह कथित आंतक याद रहा लेकिन जैसे ही भाजपा ने ढुल्लू महतो को अपना उम्मीदवारा घोषित किया, एक बार फिर से उस कथित आंतक राज को सामने लाने की तैयारी की जाने लगी, सियासी वाणों की बौछार होने लगी, अब देखना होगा कि इस सियासी युद्ध में वरमाला किसके हाथ आती है? सरयू राय अखाड़े में मौजूद भी रहते हैं या फिर अपनी बहू यानि अनुपमा सिंह के हाथ यु्द्ध का बागडोर सौंप जीत की राह को आसान बनाते हैं, साथ ही ढुल्लू महतो किस कुब्बत के साथ इस घात प्रतिधात का मुकाबला करते हैं. निश्चित रुप से धनबाद की सियासत दिलचस्प मोड़ पर खड़ी दिख रही है, जिसकी अंतिम परिणति पर सबकी निगाहें जमी हुई है.
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