Ranchi:-कोडरमा के सियासी दंगल में गांडेय विधान सभा से पूर्व भाजपा विधायक और वर्तमान में झामुमो नेता जयप्रकाश वर्मा की इंट्री करीबन-करीबन तय हो चुकी है और इसके साथ ही लोहरदगा और राजमहल की तरह कोडरमा में भी त्रिकोणीय मुकाबला तय माना जा रहा है. यहां याद रहे कि जयप्रकाश वर्मा कोडरमा संसदीय सीट से पांच बार के सांसद रहे रतिलाल वर्मा के भतीजे हैं. वर्ष 2014 में जयप्रकाश वर्मा ने गांडेय विधान सभा से झामुमो उम्मीदवार सालखन सोरेन को करीबन दस हजार मतों पराजित किया था. हालांकि वर्ष 2019 में झामुमो के सरफराज अहमद के हाथों 10 हजार मतों से मात भी खानी पड़ी थी. हालांकि इस हार के बावजूद पूर्व सीएम हेमंत को जयप्रकाश वर्मा में सियासी संभावना दिखी थी, जिसके बाद उन्हे कोडरमा के अखाड़े से उतराने के आश्वासन के साथ झामुमो में इंट्री करवा दी गयी.
पूर्व सीएम हेमंत के जेल जाते ही बदला खेल
लेकिन इस बीच हेमंत सोरेन को जेल की यात्रा करनी पड़ी और गठबंधन की सियासत में यह सीट माले के हिस्से में आ गया और यहीं से सियासी उलझन बढ़ती नजर आयी, उनके सामने दो ही विकल्प था, या तो बगावत करते हुए मैदान में कूदने का एलान करें या फिर पांच वर्षों का लम्बा इंतजार. दावा किया जाता है कि जयप्रकाश वर्मा का पत्ता साफ होने के बाद कुशवाहा समाज के बीच भी सियासी मंथन तेज हुआ और आखिरकार उन्हे सियासी अखाड़े में उतरने का सुक्षाव मिला. जयप्रकाश वर्मा ने मतदाताओं का मन भी टटोलने की कोशिश की, दावा किया जाता है कि मतदाताओं के बीच काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला और अब वे नामांकन की तैयारी में है.
क्या जयप्रकाश वर्मा के बगावत से गांडेय में फंस सकता है कल्पना का कांटा
यहां यह भी याद रहे अभी चंद दिन पहले तक जयप्रकाश वर्मा गांडेय उपचुनाव में कल्पना सोरेन की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपना पसीना बहा रहे थें, उन्हे विश्वास था कि आखिरकार यह सीट उनके ही नाम होगा. उनका तर्क था कि इंडिया गठबंधन ने विनोद सिंह को कभी भी अपना प्रत्याशी नहीं बनाया, उनकी उम्मीदवारी इंडिया गठबंधन की ओर से नहीं होकर सिर्फ माले की ओर से की गयी है. लेकिन अब जब तस्वीर साफ हो चुकी है, टिकटों का वितरण हो चुका है, संशय के सारे बादल छंट चुके हैं और उनके सामने निर्दलीय अखाड़े में कूदने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है. इस हालत में सवाल यह भी खड़ा होता है कि अब गांडेय विधान सभा में स्टैंड क्या होगा? क्या वह गांडेय उपचुनाव में कल्पना सोरेन की जीत को सुनिश्चित करने के लिए अपना खून पसीना बहाते रहेंगे या स्टैंड में बदलाव होगा? और यदि जयप्रकाश वर्मा अब बगावत की राह पर आगे बढ़ते हैं तो क्या गांडेय में कल्पना की राह मुश्किल होने वाली है. सवाल यह भी है कि क्या इस बगावती तेवर के बाद झामुमो अपने साथ रखेगी, या पार्टी से निष्कासित कर गठबंधन धर्म का पालन करेगी? और क्या पार्टी से निष्कासित होने के बावजूद जयप्रकाश वर्मा कल्पना की जीत के लिए उसी जुनून के साथ मोर्चे पर तैनात रहेंगे?
क्या है कोडरमा का सामाजिक समीकरण
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब कोडरमा की सियासी तस्वीर में क्या बदलाव आयेगा? क्या जयप्रकाश वर्मा इस त्रिकोणीय मुकाबले में लाल झंडे को पस्त करते हुए अन्नपूर्णा को मात देने की स्थिति होंगे? या फिर उनके अखाड़े में उतरने से अन्नपूर्णा की राह और भी आसान होगी? सवाल यह भी है कि क्या जयप्रकाश वर्मा इस अखाड़े से दूर रहते तो क्या विनाद कुमार सिंह में जीत की संभावना दिख रही थी. और क्या इसके कारण इंडिया गठबंधन की संभवानाओं पर तुषारापात होने वाला है. निश्चित रुप से इस सवाल का जवाब इंडिया गठबंधन में तलाशा जा रहा होगा. लेकिन यदि हम सामाजिक समीकरणों को समझने की कोशिश करें तो जयप्रकाश वर्मा बेहतर स्थिति में नजर आते हैं.
यहां याद रहे कि एक आलकन के अनुसार कोडरमा में 4.5 लाख कोयरी-कुर्मी, 2.65 लाख यादव, 2.5 लाख मुस्लिम, 1 लाख राजपूत और करीबन 50 हजार भूमिहार और इसके साथ ही आदिवासी समाज का भी करीबन सात फीसदी आबादी है. इसी कोयरी-कुशवाहा और कुर्मी समीकरण के बूते रतिलाल बर्मा पांच बार और तिलकधारी सिंह दो-दो बार जीत का परचम फहराने में कामयाब रहे थें. कुशवाहा समाज की बेचैनी यही है कि पिछले कुछ दिनों से उसका सियासी हनक सिमटता नजर आया है. अब जयप्रकाश वर्मा के चेहरे में उसे अपनी सामाजिक भागीदारी की संभावना बनती दिखती है. इस हालात में यदि कुशवाहा समाज का एकमुश्त होकर जयप्रकाश वर्मा के साथ खड़ा हो जाता है, तो एक नयी सियासी तस्वीर बनती दिख सकती है. बशर्ते कुशवाहा समाज के साथ ही जयप्रकाश वर्मा को मुस्लिम और आदिवासी समाज का भी साथ मिले. देखना होगा कि जैसे जैसे चुनावी रंग गहराता है, कोडरमा की सियासत किस दिशा में रफ्तार लेती है. यह सामाजिक धुर्वीकरण तेज होता है या फिर विनोद सिंह अपने चेहरे के बूते सारे समीकरणों को ध्वस्त करते हुए एक नयी तस्वीर पेश करतें हैं. क्योंकि जातीय गोलबंदी में भले ही विनोद सिंह पिछड़ते नजर आयें. लेकिन लाल झंडा का परचम किसी खास जाति और समुदाय के बीच केन्द्रित नहीं रहता है, कई बार वह जाति और धर्म की दीवार तोड़ कर भी अपना रंग दिखलाता है. लेकिन इस सियासी जंग में इस बात का खतरा जरुर है कि कहीं अन्नपूर्णा की राह आसान नहीं हो जाय. क्योंकि कोडरमा में यादव जाति का भी मजबूत वोट बैंक है और इसके साथ पीएम मोदी के चेहरे के सहारे अगड़ी जातियों की गोलबंदी भी. इसी समीकरण के बूते पिछले चुनाव में अन्नपूर्णा ने अप्रत्याशित रुप से बाबूलाल जैसे कद्दावर चेहरे को करीबन 4.5 लाख मतों से पराजित कर सनसनी फैला दी थी. हालांकि पीएम मोदी का चेहरे में अब कितना दम और कितनी अपील है, यह भी देखने वाली बात होगी. लेकिन फिलहाल अन्नपूर्णा एक मजबूत सियासी पिच पर खड़ी नजर आ रही हैं.
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