Ranchi-पलामू संसदीय सीट को लेकर महागठबंधन के अन्दर की गुत्थी सुलझती नजर आने लगी है, जिस तरीके से “पलामू में इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन?” के संशय और सियासी गलियारों में उमड़ते सवाल के बीच लालू यादव की उपस्थिति में ममता भुइंया ने कमल छोड़ लालटेन थामा है और इस मौके पर राज्य सभा सांसद मीसा भारती के साथ ही झारखंड प्रदेश राजद महासचिव संजय यादव और प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह यादव की उपस्थिति रही है. उसके बाद इस बात की संभावना जतायी जाने लगी है कि अब पलामू के दंगल में इंट्री होने वाली है. बीडी राम के खिलाफ महागठबंधन ने अपना चेहरा चुन लिया है और वह चेहरा होंगी दुलाल भुईँया के छोटे भाई की पत्नी ममता भुइयां.
पलामू के सिंगरा में है ममता का मायका
यहां यह भी याद रहे कि ममता झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और पूर्वी सिंहभूम से दो-दो बार विधायक रहे रहे दूलाल भुईयां छोटे भाई की पत्नी है, ममता का मायका पलामू के सिंगरा में है. पिछले एक वर्ष से मायके में रख कर ममता सियासी गतिविधियों में सक्रिय थी. पति जमशेदपुर में किसी निजी संस्थान में काम करते हैं. करीबन छह माह पहले ममता ने भाजपा में इंट्री की थी. तब भी यह खबर सामने आयी थी, कि इस बार भाजपा पलामू में अपना चेहरा बदलने वाली है. लेकिन बीडी राम तीसरी बार कमल चुनाव चिह्न हासिल करने में सफल रहें, और अब ममता ने झारखंड राजद प्रदेश नेताओं के साथ पटना जाकर राजद सुप्रीमो लालू यादव की उपस्थिति में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. यहां याद रहे कि पलामू पर कांग्रेस अपनी दावेदारी जरुर ठोक रही थी. लेकिन सियासी गलियारों में यह सवाल खड़ा किया जा रहा था कि कांग्रेस का चेहरा कौन होगा? पलामू में कांग्रेस के पास के.एन त्रिपाठी जैसा चेहरा तो जरुर है. लेकिन पलामू संसदीय सीट तो अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित है. और कांग्रेस के पास इस संसदीय सीट में अनुसूचित जाति का चेहरा मजबूत चेहरा नहीं है? बताया जा रहा था कि पलामू में मीरा कुमार की इंट्री की भी चर्चा तेज हुई, लेकिन बीडी राम के खिलाफ जिस तरह बाहरी भीतरी का आक्रोश बढ़ रहा था, खुद भाजपा नेताओं के द्वारा स्थानीय प्रत्याशी की मांग तेज हो रही थी, उस हालत में मीरा कुमार की इंट्री भी करवाना सियासी घाटे का सौदा हो साबित हो सकता था.
चतरा के साथ ही पलामू की सीट भी राजद के खाते में?
बीच के.एन त्रिपाठी के द्वारा चतरा में दावेदारी ठोकने की खबर भी सामने आ रही है. जबकि चतरा में राजद अपनी दावेदारी जता रहा था. राजद कोट से मंत्री सत्यानंद भोक्ता को मैदान में उतराने की खबर थी. इस हालत में ममता की इंट्री के बाद यह सवाल गहराने लगा है कि क्या इस बार पलामू के साथ ही चतरा सीट भी राजद के खाते में जाने वाली है? और यदि ऐसा होता है तो उसका मतलब होगा कि इस बार कांग्रेस झारखंड की पांच से छह सीटों पर ही चुनाव लड़ने जा रही है. हालांकि कांग्रेस के द्वारा जल्द ही झारखंड में अपने प्रत्याशियों का एलान करने की खबर सामने आ रही है. शायद कल तक इसकी घोषणा भी कर दी जाय. इस हालत में अब सबकी निगाहें कांग्रेस की इस सूची पर लगी हुई है. कुछ सियासी जानकारों का दावा यह भी है कि यदि इस बार राजद को झारखंड में सीटों की संख्या बढ़ती है, तो उसकी क्षतिपूर्ति बिहार से की जायेगी. जहां राजद का मजबूत आधार है, और इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है.
पलामू का सामाजिक समीकरण, क्या ममता की इंट्री से बढ़ सकती है बीडी राम की मुश्किलें
यहां ध्यान रहे कि पलामू संसदीय सीट पर अनुसूचित जाति करीबन 25 फीसदी, एसटी-11 फीसदी, मुस्लिम-14 फीसदी है. इसके साथ ही पिछड़ी जातियों की एक बड़ी आबादी है, यदि बात हम राजद का सबसे मजबूत कोर वोटर की तो यादव जाति की आबादी करीबन 5 फीसदी है. यानि दूसरी तरह जिस भुइंया जाति से ममता आती है, उसकी भी एक बड़ी आबादी है. शायद इसी समीकरण को साधने की रणनीति के साथ राजद सुप्रीमो लालू यादव प्रत्याशियों के एलान के ठीक पहले ममता की इंट्री करवायी है. हालांकि पलामू के छह विधान सभा में से आज चार पर भाजपा का कब्जा है, जबकि हुसैनाबाद विधायक कमलेश सिंह भी हालिया दिनों में एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं, इस प्रकार छह में पांच पर भाजपा का कब्जा है, सिर्फ गढ़वा विधान सभा पर ही आज झामुमो का कब्जा है. यानि इस हिसाब से भाजपा काफी मजबूत स्थिति में हैं, हालांकि इसके पहले भी पलामू से लालटेन जलता रहा है. 2004 में मनोज कुमार तो 2006 में घूरन राम राजद का लालटेन जला चुके हैं, और उधर 2009 में झामुमो से कामेश्वर बैठा भी संसद पहुंच चुके हैं. साफ है कि यदि इंडिया गठबंधन यदि एकजूट होकर चुनौती पेश करता है, और जिस तरीके से बीडी राम के खिलाफ जमीन पर आक्रोश की खबर सामने आ रही है, भाजपा मंडल अध्यक्षों के द्वारा ही उनकी उम्मीदवारी पर सवाल खड़ा किया है. भाजपा आलाकमान से किसी स्थानीय चेहरे को मैदान में उतारने की मांग की गयी है. इस हालत में ममता का पलामू का बेटी होना. महागठबंधन को एक संबल प्रदान कर सकता है. और बहुत हद तक मुकाबले में ला सकता है.
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