TNP DESK-गांडेय विधान सभा से झामुमो विधायक का इस्तीफा के बाद जैसे ही यह खबर चलने लगी कि एक विशेष रणनीति के तहत इस सीट को सीएम हेमंत की पत्नीकल्पना सोरेन की सियासी इंट्री के लिए खाली करवाया गया है, हालांकि सीएम हेमंत ने कल्पना की इंट्री को भाजपा का प्रोपगंडा बताकर इन कयासों पर विराम लगाने की कोशिश की, लेकिन अब खुद सरफराज अमहद ने साफ कर दिया है कि इस सीट से कल्पना सोरेन या सीएम हेमंत उम्मीदवार बनने वाले हैं. हालांकि इन दोनों में फाइनल कौन होगा, यह संभावित परिस्थियों और सियासी हालात पर निर्भर करेगा.
एक बार फिर से मैदान में कूदने की बात कर रहे हैं सरफराज अहमद
साफ है कि अंदरखाने काफी मंथन के बाद ही इस सीट को खाली करवाया गया है, और इस आशंका की पुष्टि इस बात से भी होती है कि सरफराज अहमद का दावा है कि यदि इन कल्पना सोरेन और हेमंत सोरेन के बजाय किसी और चेहरे को सामने लाने की कोशिश की गयी, तो वह खुद ही एक बार फिर से इस मुकाबले में होंगे, साफ है कि यदि सरफराज अहमद को इस सीट से दूरी ही बनानी होती, या उनके दिमाम में कोई और सियासी चाल चल रहा होता, तो उनके द्वारा एक बार फिर से मैदान में कूदने की बात नहीं की जाती.
झारखंड की सियासत में दूरगामी साबित होगा इस उपचुनाव का परिणाम
इस प्रकार सीएम हेमंत का इंकार के बावजूद इतना तय है कि इस सीट पर सीएम हेमंत या कल्पना सोरेन में से कोई एक मैदान में उतरने वाला है, और इसके साथ ही यह सीट एक हॉट सीट में तब्दिल हो चुका है, इसका चुनाव परिणाम झारखंड की सियासत में दूरगामी प्रभाव डालने वाला साबित हो सकता है, चुनावी नतीजों से झारखंड के आम जनों के बीच सीएम हेमंत की लोकप्रियता और सरकार के कामकाज पर जनता जनार्दन की राय सामने आ जायेगी, लेकिन यह चुनाव इसलिए भी दिलचस्प होता नजर आ रहा है, क्योंकि भाषा आन्दोलन से झारखंड की राजनीति में धूमकेतू बन कर उभरे जयराम की नजर भी इस सीट पर लग चुकी है.
जयराम समर्थकों में सातवें आसमान पर है उत्साह
हालांकि अभी चुनाव आयोग की ओर से इस उपचुनाव को लेकर कोई घोषणा नहीं हुई है, बाबूलाल से लेकर निशिकांत दूबे का दावा है कि चूंकि अब इस विधान सभा की उम्र एक साल से भी कम बची हुई है, इस हालत में मुम्बई हाईकोर्ट के फैसले के आलोक में यहां उपचुनाव नहीं करवाया जा सकता. दूसरी ओर झामुमो जल्द से जल्द चुनाव करवाने की मांग पर अड़ा है, इस बीच जयराम समर्थक भी अपने टाईगर के लिए मैदान में कूद पड़े है, उनका दावा है कि सीट भले ही कल्पना या सीएम हेमंत के लिए खाली करवायी गयी हो, लेकिन फतह तो जयराम की होगी. खबर यह भी है कि जयराम ने अपने खास विश्वस्त लोगों को मैदान में तैनात भी कर दिया है, ताकि अभी से भी माहौल बनाया जा सकें. इस हालत में इस सीट को सीएम हेमंत या कल्पना सोरेन के लिए जितना सुरक्षित माना जा रहा था, यह उतनी सुरक्षित नजर नहीं आ रही, हालांकि चुनाव परिणाम क्या होगा, यह तो भविष्य के गर्त में हैं, लेकिन इतना तय है कि इस सीट पर जयराम एक अच्छा मुकाबला पेश करने जा रहे हैं.
हार या जीत दोनों ही हालत में मिलने जा रहा है एक सियासी ध्रुवतारा!
और यदि ऐसा होता है तो यह ना सिर्फ जयराम का भविष्य तय करेगा, बल्कि कल्पना सोरेन की तकदीर भी लिखी जायेगी. यदि जयराम अपने पहले ही प्रयास में हेमंत की ‘कल्पना’ को मात देने में कामयाबा होते हैं तो इसे झारखंड की सियासत में एक ध्रुवतारे का उदय माना जायेगा, और यदि हार गयें तो भी सियासी शख्सियत में निखार आयेगा. यहां मुकाबला दो हाईप्रोफाईल चेहरों के बीच होगा. दोनों ही सुशिक्षित हैं, दोनों के पास बड़ी बड़ी डिग्रियां है. जहां अपने PhD की तैयारी कर रहे हैं तो वहीं कल्पना अपने समय की टॉपर रही हैं. इंजीनियरिंग के साथ ही एमबीए की डिग्री उनके पास है.
आदिवासी-मूलवासियों की कल्पना
दोनों ही आदिवासी मूलवासी हितों की वकालत करते हैं, दोनों ही 1932 का खतियान और सरना धर्म कोड का उद्घोष करते हैं, दोनों ही जल जंगल और जमीन पर आदिवासी मूलवासी समाज का अधिकार की बात करतें हैं, दोनों ही इस बात का दावा करते हैं कि 23 वर्षों के झारखंड में यहां के भूमिपुत्रों का विकास नहीं हुआ, सत्ता संचालन के केन्द्र में आम झारखंडियों की आशा अभिलाषा नहीं रही, दोनों की ही इस बात का दावा करते हैं कि भाजपा की नीतियां आदिवासी मूलवासी समाज के जल जंगल जमीन को कॉरपोरेट के हाथ में सौंपने की है, और यदि भाजपा अपने मनसूबे में कामयाब रही, आदिवासी मूलवासी समाज जल जंगल और जमीन से अपना हाथ धो देगा, दोनों ही इस बात का दावा करते हैं कि झारखंड के संसधानों को लूट कर महानगरों में चकाचौंध कायम किया जा रहा है, लेकिन आदिवासी मूलवासी समाज के जीवन में अंधेरा पसरा है, उनके सपने दम तोड़ रहे हैं, विकास की वर्तमान नीतियां उन्हे किसान से मजदूर बना रही है, वह अपने जमीन से बेदखल होकर महानगरों में दिहाड़ी मजदूरी करने को अभिशप्त हैं. इस हालत में यह उपचुनाव इस बात की अग्नि परीक्षा भी होगा कि झारखंड के युवाओं, आदिवासी मूलवासी समाज में किसकी आवाज गुंज रही है, कौन अपनी बात का धरातल तक पहुंचाने में सफल हो रहा है. दोनों ही आदिवासी मूलवासी समाज की बात तो जरुर करते हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आदिवासी मूलवासी समाज किसके सपने को अपनी कल्पना मान रहा है.
अपने सवालों से जयराम को कटघरे में खड़ा कर सकती है कल्पना
सवाल कल्पना सोरेन का भी है, वह यह दावा कर सकती है कि आज जिस आवाज को जयराम अपना स्वर दे रहे हैं, या उसकी कोशिश कर रहे हैं, उसकी तो शुरुआत ही दिशोम गुरु ने की थी. भला उनसे ज्यादा आदिवासी मूलवासी समाज के लिए संघर्ष किसने किया, कुर्बानी किसने दी. और आज भी हेमंत इसी लड़ाई को अगले मुकाम तक पहुंचाने का संघर्ष कर रहे हैं. इसी आदिवासी मूलवासी समाज के सपने के लिए, उसके हक हकूक के लिए वह अपनी गिरफ्तारी के भी तैयार बैठे हैं, 1932 का खतियान हो, या सरना धर्म कोड या फिर पिछड़ो का आरक्षण विस्तारा या स्थानीय कंपनियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 फीसदी का आरक्षण ये सारे फैसले तो हेमंत सरकार ने लिये, इस प्रकार देखा जाय को यह मुकालबला एक ही सिन्द्धात पर चलने वाली दो पार्टियों के बीच का होगा.
दो चेहरों की लड़ाई में कहीं खिल नहीं जाये कमल
लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या इस मुकाबले में भाजपा का रास्ता साफ तो नहीं होगा. क्योंकि यहां याद रखने की जरुरत है कि 2019 के विधान सभा चुनाव में जहां सरफराज अहमद को 65,023 के साथ जीत की वरमाला मिली थी, वहीं भापजा के जयप्रकाश वर्मा ने भी 56,168 वोट लाकर अपनी मजबूती का संदेश दिया था, लेकिन दिलचस्प यह भी है कि यदि जेपी वर्मा को प्राप्त मतों में आजसू के अर्जून बैथा का प्राप्त 15 हजार मतों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा सरफराज अमहद को मिले कुल मतों से कहीं पार चला जाता है. तो क्या इन दो चेहरों की लड़ाई में इस बार रामगढ़ के बाद एक बार फिर से भाजपा का कमल खिलने जा रहा है.
झारखंड के चुनावी इतिहास का सबसे रोचक मुकाबला
लेकन यहां यह भी याद रखा चाहिए कि अब तक हुए तमाम उपचुनाव का परिणाम यदि रामगढ़ को छोड़ दें तो सत्ता पक्ष के खाते में रही है, विधान सभा उपचुनाव में सता पक्ष का स्ट्राइक रेट काफी शानदार रहा है. रामगढ़ विधान सभा चुनाव इस बात का भी घोतक है कि झारखंड की सियासत में भाजपा तब ही कमल खिला पाती है, जब उसके साथ आजसू होती है. आजसू का किनारा करते हैं भाजपा औंधे मुंह गिर खड़ा होता है, उसका कारण भी बड़ा साफ, जिस प्रकार आदिवासी मतदाताओं पर झामुमो की मजबूत पकड़ है, उसी प्रकार आजसू का कुर्मी मतदाताओं पर जादू बोलता है. और रामगढ़ में महागठबंधन को इसी चुनौती का सामना करना पड़ा था, हालांकि रामगढ़ की यह सफलता डुमरी तक आते आते दम तोड़ गयी, लेकिन यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वहां भाजपा का मुकाबला टाईगर जगरनाथ महतो की पत्नी के साथ था, जो खुद भी एक कद्दावर कुर्मी चेहरा थें, लेकन सवाल यह है कि गांडेय में क्या होगा, तत्काल सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि यदि कल्पना सोरेन और टाईगर जयराम की भिड़त होती है तो यह मुकाबला झारखंड के चुनावी इतिहास का सबसे रोचक मुकाबला होगा. लेकिन एक संभावना यह भी बनती है कि यदि जयराम कुर्मी मतदाताओं को तोड़ने में सफल हो गयें तो इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा सकता है, और एक बार उपचुनाव में झामुमो के हाथ विजय पताका हाथ लग सकती है.