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चतरा में कालीचरण के मुकाबले केएन त्रिपाठी, क्या खत्म होने वाला है कांग्रेस का 40 वर्षों का सूखा

चतरा में कालीचरण के मुकाबले केएन त्रिपाठी, क्या खत्म होने वाला है कांग्रेस का 40 वर्षों का सूखा

LS POLL 2024-आखिरकार एक लम्बे इंतजार के बाद कांग्रेस ने चतरा के अखाड़े में सारे कयासबाजियों पर विराम लगाते हुए पलामू की सियासत का एक बड़ा चेहरा और दिग्ग्ज कांग्रेसी नेता के.एन त्रिपाठी को अखाड़े में उतारने का एलान कर दिया, और इसके साथ ही राजद का पीला लिफाफा के साथ पटना से दिल्ली की दौड़ लगाते गिरिनाथ सिंह का पत्ता साफ हो गया. वर्ष 2019 में कुछ इसी तरह की परिस्थितियों में कांग्रेस और राजद के बीच दोस्तान संघर्ष की नौबत भी आ गयी थी और आखिरकार त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के सुनील सिंह ने 528,077 मतों से भारी भरकम जीत दर्ज की थी. 1,50,206 मतों के साथ कांग्रेस की ओर से मोर्चा संभाल रहे मनोज यादव को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था. जबकि राजद के लालटेन की सवारी करते हुए सुभाष यादव ने 83,425 के साथ तीसरा स्थान प्राप्त इस बात को साबित कर दिया था कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी एक हद तक वह अपनी जमीन को बचाने में कामयाब रही है.

के.एन त्रिपाठी को समर्थन का एलान कर चुकी है राजद

हालांकि कांग्रेस के इस एलान के बाद राजद की ओर से के.एन त्रिपाठी को औपचारिक रुप से समर्थन का एलान कर दिया गया है. राजद ने दावा किया है कि उसका मकसद चुनावी अखाड़े में उतर कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना नहीं बल्कि इंडिया गठबंधन के लिए अधिक से अधिक संख्या में सीटों को प्राप्त करना है. राजद इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाना चाहती, इस हालत में देखना होगा कि बदले सियासी हालात में गिरिनाथ सिंह का रवैया क्या होता है? क्योंकि सुनील सिंह की विदाई के बाद राजपूत जाति के मतदाताओं के बीच एक नाराजगी की खबर भी तैर रही है. अब देखना होगा कि उनकी यह नाराजगी किस रुप में सामने आती है. और राजपूत जाति के मतदाताओं के बीच इस कथित नाराजगी के बीच गिरिनाथ सिंह की भूमिका क्या होती है?

क्या है सामाजिक सियासी समीकरण

एक आकलन के अनुसार चतरा संसदीट सीट में –मुस्लिम-10 फीसदी, राजपूत-7, यादव 8.5, तेली-6.08, कहार- 4.2%,ब्राह्मण 3.5%,कोयरी- 8%, कुर्मी-2.8, बनिया 2.5,मुसहर- 2.2%, पासवान-2.1 पासी- 1.9% . रही बात सियासी समीकरण की तो इस सीट पर अंतिम बार वर्ष 1984 में कांग्रेस को जीत मिली थी. तब योगेश प्रसाद योगेश ने चतरा में जीत दर्ज की थी. और उसके बाद का 40 वर्षों का इतिहास कांग्रेस के लिए सूखाग्रस्त रहा है, इस बीच उसने मनोद यादव से लेकर धीरज प्रसाद साहू को आजमाया. लेकिन हर बार किस्मत दगा देती रही, कभी दोस्तान संधर्ष में खेल बिगड़ा तो कभी वह सामाजिक समीकरण को साधने में विफल साबित हुई. हालांकि इस बीच राजद 1989,1981,1999 और 2004 में अपना परचम फहराने में सफल हुई. वैसे 1989 और 1991 में इस सीट पर जीत तो जनता दल की थी, लेकिन उस जीत को भी राजद के साथ ही जोड़ कर देखा जा सकता है. क्योंकि तब उसके कर्ताधर्ता लालू यादव भी थें.

राजद के सामाजिक आधार में सेंधमारी से भाजपा ने खड़ा किया अपना किला

इस आंकड़ों का सामने रख कर देखे तो चतरा में राजद का एक मजबूत जनाधार रहा है. लेकिन बाद के वर्षों में यह सिमटता गया और उस सियासी जमीन पर भाजपा का कब्जा होता गया. इस हालत में के.एन त्रिपाठी के सामने ना सिर्फ सेक्लूयर वोटों को एकजूट रखने, बल्कि उस उस वोट बैंक में सामाजिक विस्तार देने की चुनौती होगी और यह चुनौती कितनी बड़ी होगी इसे पिछले चुनाव के नतीजों से भी समझा जा सकता है. यहां ध्यान रहे कि वर्ष 2019 में सुनील सिंह ने करीबन चार लाख मतों से जीत हासिल की थी, जबकि वर्ष 2014 में जब मुकाबले धीरज साहू थें, एक लाख मतों से जीत हासिल की थी, यानि साफ है कि 2014 के बाद 2019 में सुनील सिंह ने अपनी जीत को और भी मजबूत बनाया था. हालांकि तब भी उनके खिलाफ बाहरी उम्मीदवार होना का ठप्पा लगा था और आखिरकार 2024 आते-आते बेटिकट भी होना पड़ा.  

राजपूत जाति के मतदाताओं पर निगाह

इस हालत में चुनाव परिणाम का रुख इस बात पर भी निर्भर करेगा कि सुनील सिंह की अनुपस्थिति में इस बार राजपूत जाति मतदाताओं का रुख क्या होता है? एक अनुमान के अनुसार चतरा संसदीय सीट में राजपूत जाति की आबादी करीबन सात फीसदी मानी जाती है, हालांकि यह कोई प्रमाणिक आंकड़ा नहीं है. कुछ लोगों का दावा तो इससे भी अधिक का है, लेकिन सवाल संख्या बल का नहीं होकर इस बात की है, क्या सुनील सिंह की विदाई के बाद बदली परिस्थितियों में राजपूत जाति के मतदाताओं का रुक्षान के.एन त्रिपाठी के साथ होगा, या इस कथित नारजागी के बावजूद वे भाजपा के कालीचरण के साथ ही खड़ा होना पसंद करेंगे. ठीक यही हालत कोयरी-कुशवाहा जाति की भी है, क्या कोयरी कुशवाहा जाति नीतीश कुमार के चेहरे के साथ चतरा में भाजपा के साथ खड़ी नजर आयेगी या फिर सुखदेव वर्मा (1980), उपेन्द्रनाथ वर्मा (1989,1989) की स्मृतियों के साथ कुशवाहा-कोयरी मतदाता चुनावी शतरंज पर अपना दांव खेलेंगे, कुछ यही स्थिति दूसरी पिछड़ी जातियों की भी हो सकती है.

यदि किसी मजबूत पिछड़े चेहरे ने ठोका ताल तो बिगड़ सकता है कांग्रेस का खेल

इस हालत में साफ है कि के.एन त्रिपाठी की राह आसान नहीं है. यदि उनके सामने पहाड़ सी चुनौतियां है, यदि वह राजपूत जाति के बीच पसरी नाराजगी में अपनी राह बनाते हैं, और इसके साथ ही उस नाराजगी के साथ पिछड़ी जातियों की गोलबंदी करने में कामयाब होते हैं, तो स्थितियां बदल भी सकती है, लेकिन यदि पिछड़ी जातियों की ओर से किसी मजबूत चेहरे ने निर्दलीय के रुप में ताल ठोक दिया और एक गोलबंदी तैयार हो गयी तो इंडिया गठबंधन को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.

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Published at:18 Apr 2024 02:54 PM (IST)
Tags:KN Tripathi against Kalicharan in ChatraKN Tripathichatrachatra loksabha seatchatra loksabhaloksabhaloksabha election 2024chatra loksabha electionchatra newsloksabha biharchatra loksabha sansadchatra loksabha udpateloksabha seat chatrachatra lok sabha seat 2019chatra loksabha candidatechatra lok sabha chunav 2019chatra loksabha constituencychatra loksabha seat politicschatra loksabha election 2024chatra loksabha election newsdhanbad loksabha seatchatra lok sabhaloksabha electionCongress's drought of 40 years going to endbjpcongres chatra loksabha election
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