Ranchi- जैसे-जैसे 2024 का महासमर नजदीक आता जा रहा है, झारखंड की राजनीतिक फिजा में तपिश महसूस की जाने लगी है, जहां इंडिया गठबंधन की नजर झारखंड की सभी 14 सीटों को अपने पाले में लाने की है, वहीं एनडीए गठबंधन की चुनौती उन सभी 12 सीटों पर एक बार फिर से विजय पताका फहारने की है, जिन सीटों पर एनडीए ने अपना परचम फहराया था.
लेकिन सबसे रोचक मुकाबला खूंटी में होता नजर आ रहा है, पिछली बार पूर्व मुख्यमंत्री अर्जून मुंडा ने महज तीन हजार मतों से इस सीट को एनडीए के नाम तो कर लिया था, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार कालीचरण मुंडा अंतिम राउंड तक इस मुकाबले को दिलचस्प बनाने में कामयाब रहे थें.
हालांकि आखिरकार कालीचरण मुंडा को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी हिम्मत नहीं टूटी और 2019 के बाद लगातार खूंटी में उनकी सक्रियता बनी रही. माना जाता है कि इस बार भी वह इंडिया गठबंधन की ओर से अर्जून मुंडा को चुनौती देने की तैयारी में है. हालांकि दावा किया जाता है कि खुद भाजपा के अन्दर अर्जून मुंडा को लेकर दुविधा की स्थिति बरकरार है, और पार्टी अंतिम समय में यहां किसी दूसरे चेहरे को उम्मीवार बना चौंका सकती है. क्योंकि जिस प्रकार कालीचरण मुंडा ने तीन तीन बार के सीएम रहे अर्जुन मुंडा को खूंटी में फंसा दिया था, उसके बाद भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती.
अपनी जीत को लेकर काफी मुतमईन नजर आ रहे हैं कालीचरण मुंडा
उधर कालीचरण मुंडा अपनी जीत को लेकर काफी मुतमईन नजर आते हैं, उनका कहना है दावा है कि वह इस सीट को इस बार एक लाख से अधिक मतों से इंडिया गठबंधन के नाम करने जा रहे हैं, हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि गठबंधन में यह सीट किसके खाते जाती है, और पार्टी का फैसला क्या होता है, लेकिन जहां तक हमारी तैयारी की बात है तो हर प्रखंड में मजबूत स्थिति में है.
पत्रकार से राजनीतिक कार्यकर्ता बनी दयामली बारला भी उतर सकती है मैदान में
इस बीच खबर यह भी है कि पत्रकार और एक सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में पूरे झारखंड में अपनी पहचान स्थापित कर चुकी दयामली बारला भी ताल ठोकने की तैयारी में हैं, हालांकि वह किस पार्टी से मैदान में उतरेंगी,इस पर अभी स्थिति साफ नहीं है, इसके साथ ही जयराम महतो की पार्टी झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति भी अपना उम्मीवार उतार सकती है, हालांकि झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति का वहां कोई बड़ा जनाधार नहीं दिखता, लेकिन जयराम महतो का आक्रमक अंदाज स्थापित राजनीतिक पार्टियों को मुश्किल में डाल सकता है. और खास कर जिस प्रकार वह बाहरी भीतरी का सवाल को खड़ा कर रहे हैं भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी हो सकती है.
अंतिम समय में प्रदीप बालमुचू ले सकते हैं चौंकाने वाला फैसला
लेकिन सबसे रोचक स्थिति प्रदीप बालमुचू की है. उनकी सक्रियता खूंटी में लगातार बनी हुई है, हालांकि अभी वह कांग्रेस के साथ ही है, लेकिन जिस प्रकार उन्होंने लगातार पार्टी बदला है, उनके भावी राजनीतिक कदम को लेकर संशय की स्थिति बरकरार है. और यदि अंतिम समय में कांग्रेस कालीचरण मुंडा को रिपिट करने का निर्णय लेती है तो प्रदीप बालमुचू अपने फैसले से चौंका सकते हैं.