रांची(RANCHI): झारखंड में कुड़मियों के द्वारा आदिवासी दर्जे की मांग से झामुमो ने किनारा कर लिया है, झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने इस मामले में राज्य सरकार का रुख साफ करते हुए इस बात का दावा किया है कि कुड़मियों को आदिवासी का दर्जा देना है, या नहीं इसका फैसला टीआरआई और केन्द्र सरकार को लेना है, इसमें हेमंत सरकार की कोई भूमिका नहीं है.
जहां तक बात जनजातीय शोध संस्थान की है, तो वह स्वतंत्र संस्थान है, उसके क्रिया कलापों और रिसर्च में राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है, केन्द्र सरकार चाहेगी तो टीआरआई से इस मामले में रिपोर्ट की मांग कर सकती है और उस आधार पर अपना फैसला ले सकती है. इसमें राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है.
यहां ध्यान रहे कि 1953 में स्थापित जनजातीय संस्थान आदिवासी समाज के जुड़े मुद्दों पर रिसर्च करता रहता है, और इस मामले में उसके रिसर्च को काफी प्रमाणित माना जाता है. किसी भी समूह को आदिवासी का दर्जा देने से पहले सरकार टीआरआई से उसकी राय मांगती है, जिसके बाद टीआरआई उस समाज का साहित्य, भाषा, रहन सहन, खान-पान और जीवन-शैली का अध्ययन कर अपनी राय देता है.
झारखंड से बाहर निकल पश्चिम बंगाल तक पहुंच चुका कुड़मियों का आन्दोलन
यहां बता दें कि कुड़मी समुदाय के द्वारा लम्बे अर्से से आदिवासी दर्जे की मांग की जा रही है, उनका यह आन्दोलन झारखंड से बाहर निकल कर ओडिसा और पश्चिम बंगाल तक पहुंच गया है, इनके विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा अपनी मांग के समर्थन में रेलवे का परिचालन को ठप्प किया जा रहा है. 2024 के महामुकाबले के ठीक पहले जिस प्रकार से कुड़मी आन्दोलन तेज होता नजर आ रहा है, और झामुमो जिस तरीके से उनकी मांग से किनारा सब कुछ केन्द्र के पाले में थोपने की कोशिश कर रही है, झामुमो को कुड़मियो की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार