रांची(RANCHI): अभी तबरेज अंसारी मॉबलिचिंग की वारदात आम झारखंडियों के जेहन से मिट्टी भी नहीं थी कि अब राजधानी रांची से सटे ओरमांझी थाना क्षेत्र के होरोदाग गांव से मॉबलिंचिग की दिल दहलाने वाली एक खबर सामने आयी है. दावा किया जा रहा है कि मिथुन सिंह खरवार नामक एक युवक की चोरी के आरोप में भीड़ की पिटाई के बाद इलाज के दौरान मौत हो गयी.
बुधवार की तीन बजे भोर की घटना
बताया जा रहा है कि कल की रात बुधवार की रात वह होरोदाग गांव के नंदलाल मुंडा के घर में चोरी की नीयत से घूसा था, लेकिन एन वक्त पर घरवालों की नींद टूट गयी और उनके द्वारा हो हल्ला किया जाने लगा, घर वालों की आवाज सुन कर गांव वालों की नींद टूटी और पूरा गांव रात में ही जुट गया. इसी बीच कुछ लोगों के द्वारा उसे पकड़ लिया गया और ग्रामीणों के द्वारा उसकी पिटाई शुरु हो गयी. लाठी, चप्पल, लात घूसा जिसके हाथ जो लगा उसकी पिटाई की जाने लगी, और पूरा गांव मूकदर्शक बन कर सब कुछ देखता रहा.
ग्रामीणों की पिटाई से उसकी स्थिति काफी गंभीर हो गयी.
ओरमांझी थाने की भूमिका पर गंभीर
लेकिन सबसे बड़ा सवाल ओरमांझी थाने का निक्कमेपन की है. यह वारदात करीबन तीन बजे भोर में होती है, लेकिन पुलिस को इसकी खबर 8 बजे दिन में मिलती है, जिसके बाद ओरमांझी पुलिस करीबन दो घंटे अपनी तैयारी करती है, और उसके बाद करबीन 10 बजे घटनास्थल पर पूरे लाव लश्कर के साथ पहुंचती है. जिसके बाद उसे गंभीर हालत में ओरमांझी सीएचसी लाया गया. और वहां ही उसकी मौत हो गयी.
सवाल यह है कि उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे किसी निजी अस्पताल या रिम्स क्यों नहीं भेजा गया. क्या इसे पुलिस की विफलता नहीं मानी जायेगी.
आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक ही क्यों बनते ही भीड़ का शिकार
हालांकि घटना के बाद आम वारदातों की तरह एक बार फिर से पुलिस अपने को सक्रिय दिखलाने की कोशिश कर रही है, मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए रिम्स भेजने के साथ आठ लोगों का गिरफ्तार किया गया है. ग्रामीण इस मसले पर कुछ भी बोलने से परहेज कर रहे हैं, उनकी चुप्पी कई संकेत दे रहे हैं.
हालांकि इस मामले में हरदाग गांव के पूर्व मुखिया का दावा है कि मृतक का पहले से ही आपराधिक रिकार्ड रहा है, उस पर कई बार चोरी के आरोप लग चुके हैं, लेकिन सवाल यह है क्या अब झारखंड में अदालतों का स्थान भीड़ का न्याय ने ले लिया है? और सवाल यह भी है कि हर बार भीड़ की इस हिंसा का शिकार समाज का सबसे कमजोर तबका ही क्यों होता है? इसका कहर अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी समूहों पर ही क्यों टूटता है?