टीएनपी डेस्ट (TNP DESK): झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में राज्य की राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर से 'परिवारवाद' का मुद्दा गरमाने लगा है. भाजपा की NDA और कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) एवं राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले इंडी गठबंधन के बीच इस बार परिवारवाद को लेकर कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है. अब तक दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों द्वारा घोषित किए गए उम्मीदवारों में से 40 प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनके परिवार के सदस्यों को टिकट दी गई है. इनमें 17 भाजपा, 10 झामुमो, 8 कांग्रेस, 2 आजसू, 2 माले और 1 राजद के उम्मीदवार शामिल हैं. इन उम्मीदवारों में से कई ऐसे हैं, जिनके परिवार से मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, पूर्व मंत्री, विधायक और पूर्व विधायक जैसे वरिष्ठ नेता जुड़े रहे हैं.
इंडी गठबंधन का 'परिवारवाद' कार्ड
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य में अपने परिवारवाद के आरोपों का कड़ा जवाब दिया है. उनका कहना है कि वे राज्य के विकास के लिए काम कर रहे हैं, न की परिवार को लाभ पहुंचाने के लिए. हालांकि, विपक्ष लगातार यह आरोप लगा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के परिवार से हेमंत सोरेन (बरहेट), बसंत सोरेन (दुमका), सीता सोरेन (जामताड़ा), और कल्पना सोरेन (गांडेय) चुनावी मैदान में हैं. हालांकि सीता सोरेन को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है. झामुमो के अन्य उम्मीदवारों में मधुपुर से हाफीजुल हसन, शिकारीपाड़ा से आलोक सोरेन और तमाड़ से विकास मुंडा शामिल हैं, जिनके पिता भी मंत्री रह चुके हैं. मनोहरपुर से झामुमो के उम्मीदवार जगत मांझी की मां मंत्री और पिता विधायक रहे हैं. झामुमो से डुमरी की उम्मीदवार बेबी देवी और ईचागढ़ की सबिता महतो भी चुनाव लड़ रही हैं. चाईबासा की सांसद जोबा माझी के पुत्र जगत माझी और दुमका से सांसद नलिन सोरेन के पुत्र आलोक सोरेन झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
वहीं, कांग्रेस और RJD, जो इंडी गठबंधन का हिस्सा हैं, इस मुद्दे पर चुप हैं. क्योंकि उनकी पार्टी में कांग्रेस पार्टी से बड़कागांव की प्रत्याशी अंबा प्रसाद, मांडर की शिल्पी नेहा तिर्की, बेरमो के कुमार जयमंगल, और पांकी के लाल सूरज के परिवार में भी मंत्री रहे हैं. माले के बगोदर से प्रत्याशी विनोद सिंह और निरसा से अरूप चटर्जी के पिता भी इसी क्षेत्र से विधायक रहे हैं. कांग्रेस की पाकुड़ से प्रत्याशी निशत आलम के पति भी मंत्री रहे हैं. इसके अलावा, मंत्री सत्यानंद भोक्ता की बहू रश्मि प्रकाश चतरा विधानसभा से और बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अवध बिहारी सिंह की बहू दीपिका पांडेय सिंह महगामा विधानसभा से चुनाव लड़ रही है.
NDA का 'परिवारवाद' कार्ड
दूसरी ओर, भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने परिवारवाद को लेकर JMM पर हमला बोलते हुए इसे 'राज्य की राजनीति का सबसे बड़ा संकट' करार दिया है. भाजपा के नेताओं का कहना है कि राज्य में हेमंत सोरेन और उनके परिवार का हुक्म चलता है, और प्रशासन में पारदर्शिता की कमी है. पार्टी नेता रघुवर दास, जो झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, ने कहा कि अगर राज्य को सही दिशा में बढ़ना है, तो परिवारवाद को खत्म करना होगा. लेकिन ताज्जूब की बात यहां यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन घाटशिला से चुनाव में भाग ले रहे हैं, जबकि अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा पोटका और मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर से चुनावी मैदान में हैं.
रघुवर दास, जो वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल हैं, उनकी बहू पूर्णिमा दास साहु भाजपा के टिकट पर जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ रही हैं. भाजपा के भवनाथपुर प्रत्याशी भानुप्रताप शाही के पिता हेमेंद्र प्रताप शाही झारखंड सरकार में मंत्री रह चुके हैं. सिसई से भाजपा उम्मीदवार और पूर्व आईपीएस अधिकारी अरुण उरांव के पिता, बंदी उरांव, बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं. झरिया की भाजपा प्रत्याशी रागिनी सिंह के परिवार में उनके ससुर, सास और पति सभी विधायक रहे हैं, वहीं सिंदरी से भाजपा प्रत्याशी तारा देवी के पति वर्तमान में विधायक हैं. धनबाद से सांसद ढुलू महतो के भाई शत्रुघ्न महतो बाघमारा से भाजपा के उम्मीदवार हैं. इसके अलावा भाजपा के उम्मीदवारों में अमित कुमार मंडल, अमित कुमार यादव, नीलकंठ सिंह मुंडा, उज्ज्वल दास और मंजू देवी के पिता भी विधायक रहे हैं. गिरिडीह से सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी आजसू के टिकट पर रामगढ़ विधानसभा सीट से और उनके भाई रोशन चौधरी भाजपा के टिकट पर बड़कागांव सीट से चुनावी मैदान में हैं. ऐसे में देखे तो परिवार वाद से ना तो इंडी गठबंधन अछुता है औऱ ना ही एनडीए. जिसका नतिजा यह हुआ है कि कई ऐसा पूराने नेता जो भाजपा के साथ लंबे समय तक थे उन्होंने पार्टी बदल ली है औऱ परिवार वाद के मुद्दें पर भाजपा पर हमला बोल रहे है.
परिवारवाद के मुद्दे पर जनता का रुख
विधानसभा चुनावों में परिवारवाद पर हो रहे इस घमासान के बीच राज्य की जनता का रुख अब तक मिला-जुला रहा है. कुछ वर्ग परिवारवाद को स्वीकार कर रहे हैं और इसे राज्य के विकास की दिशा में जरूरी मानते हैं, जबकि दूसरी ओर बहुत से लोग इस बात से नाखुश हैं. वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि झारखंड विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा मुख्य बन सकता था. लेकिन यहां तो विपक्ष हो या पक्ष सभी अपने परिवार को टिकट देने में लगा हुआ है.
परिवारवाद का मुद्दा क्या बदेलेगा चुनावी समीकरण
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में परिवारवाद का मुद्दा चुनावी समीकरण को बदल सकता है या नहीं. यह तो 23 नवंबर को ही पता चलेगा. फिलहाल 13 नवंबर को पहले चरण का मतदान होगा है, तमाम पोलिंग बूथों पर पोलिंग कर्मियों को भेजा जा रहा है, वहीं पहले चरण में 43 सीटों पर मतदान होना है, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड की जनता किसे अपना समर्थन देती है और कौन परिवारवाद के मुद्दे पर भारी पड़ता है.