Ranchi- अब तक आदिवासी-मूलवासी मुद्दों और हितों की लड़ाई का दावा करने वाले छात्र नेता जयराम महतो ने अब अपने सियासी पारी की घोषणा कर दी है. जयराम ने एक सियासी पार्टी बना कर झारखंड की राजनीति में उतरने का एलान कर दिया है. इसके साथ ही विभिन्न सियासी दलों में कोहराम की स्थिति है, सभी दल अपने-अपने आकलन में जुटे हैं.
अपनी बयानों से सीएम हेमंत को घेरते रहे हैं जयराम
यहां बता दें कि जयराम महतो की अब तक की राजनीति आदिवासी- मूलवासी समुदाय की उपेक्षा और उसके अधिकारों से जुड़े संघर्षों को लेकर रही है. वह सत्ता और सरकार में आदिवासी मूलवासियों की पर्याप्त भागीदारी के सवाल को उठाते रहे हैं, आदिवासी-मूलवासियों का सवाल उठाते हुए जयराम महतो बड़े ही तल्ख तेवर के साथ सीएम हेमंत को भी घेरते रहे हैं. जयराम का दावा रहा है कि आदिवासी मुख्यमंत्री होने के बावजूद सीएम हेमंत आदिवासी-मूलवासियों के हितों की हिफाजत में असमर्थ रहे हैं.
सीएम हेमंत के विरुद्ध जयराम के आरोप
जयराम का दावा है कि सीएम हेमंत के आसपास बिहारी-यूपी के लोगों का जमघट लगा है, वह इन्ही लोगों से घीरे रहते हैं. उनके सारे सलाहकार यही बाहरी है, इन्ही बाहरी लोगों की सलाह से सरकार की नीतियों का निर्माण किया जाता है. हालांकि जयराम इस बात को भी स्वीकारते हैं कि झारखंड में सत्ता चाहे जिस किसी की भी रही हो सत्ता केन्द्र और संसाधनों पर इन्ही बाहरियों का कब्जा रहा है, इन बाहरियों में बिहारी भी हैं और यूपी वाले भी. यही कारण है कि खनन से लेकर माफिया तक सारे बिहारी यूपी वाले हैं. प्रशासन में भी बिहारियों का वर्चस्व है.
जयराम महतो का राजनीतिक उदय आजसू के लिए भी खतरे की घंटी
यहां ध्यान रहे कि यही आदिवासी मूलवासी हेमंत सरकार का मूल जनाधार है, निश्चित रुप से जयराम महतो का राजनीति उदय झामुमो को परेशान करेगा, लेकिन जयराम महतो का राजनीतिक उदय आजसू के लिए भी खतरे की घंटी है. सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति आदि चंद मुद्दे है, जिसको लेकर आजसू कभी भी मुखर नहीं रही. क्योंकि भाजपा के साथ रहते हुए उसे इन मुद्दों पर आगे बढ़ना रोक रहा है.
झामुमो ने बताया भाजपा का टूल
लेकिन झामुमो मोर्चा जिस प्रकार से जयराम महतो को भाजपा का टूल बता रही है, अभी उसकी परीक्षा होनी बाकी है, यह देखना होगा कि जयराम महतो जिन जनमद्दों को लेकर वह अब तक सड़कों पर उतरते रहे हैं, क्या एक सियासी दल के रुप में जयराम उन मुद्दों को पीछे छोड़ेगे, और यदि छोड़ेंगे तब क्या जो नौजवान आज जयराम के पीछे दौड़ रहे हैं, उनका मोह भंग नहीं होगा. क्या जयराम की राजनीति का अंत नहीं होगा.
आदिवासी मूलवासी मुद्दों से पीछा नहीं छोड़ा सकते जयराम
जयराम महतो के लिए उन मुददों से पीछा छोडऩा इतना आसान नहीं होगा. और यदि जयराम महतो उसी मुद्दों को लेकर राजनीति करते रहें तो उसके निशाने पर भाजपा की नीतियां होगी. क्योंकि किसी भी रणनीति के तहत जयराम हेमंत सोरेन को आदिवासी मूलवासी विरोधी तो साबित नहीं कर सकतें, हां, आदिवासी मूलवासी समुदाय के लिए नीतियों के निर्माण में वह शिथिलता का आरोप लगा सकते हैं, लेकिन जयराम के सामने बड़ा सवाल यह होगा कि वह सरना धर्म कोड, जातीय जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति के सवाल पर भाजपा को क्लीन चिट कैसे देंगे, जयराम को भाजपा का टूल तभी कहा जा सकता है जब जयराम इन मुद्दों तो तिलाजंलि दे दें, और यदि वह इन्ही मुद्दों के साथ अपनी लड़ाई लड़ते रहें तो कहा जा सकता है कि झारखंडी आवाम को उसके दुख दर्द को सामने लाना एक मुखर वक्ता मिल गया है.
कांग्रेस को भी है जयराम महतो के समान एक मदारी की जरुरत
इस बीच आपको यहां यह भी बता दें कि कांग्रेस ने जयराम महतो की तुलना एक मदारी से की है, कांग्रेस का दावा है कि एक मदारी भी अच्छी खासी भीड़ जुटा लेता है, लेकिन इससे वह नेता नहीं बन जाता. लेकिन कांग्रेस को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस अपने तमाम संसाधनों के बूते भी यह भीड़ जमा क्यों नहीं कर पाती? साफ है कि कांग्रेस के विपरित जयराम महतो उन मुद्दों को उठा रहे हैं हो जो यहां के जल जंगल और जमीन से जुड़ा है, आदिवासी मूलवासियों को सरोकार से जुड़ा है.
झारखंड में कांग्रेस की दुर्गती का कारण
जयराम महतो के लेकर कांग्रेस के दावे चाहे जो हो, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि झारखंड में कांग्रेस की इस दुर्गती का कारण मात्र इतना है कि उसके पास जयराम महतो जैसा कोई मदारी नहीं है. कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे आदिवासी मूलवासी मुद्दों की समक्ष हो, और जो है वह हाशिये पर खड़ा है, यही कारण है कि जयराम महतो यह दावा करते है कि झारखंड में हर क्षेत्र में बाहरियों का कब्जा है, भले ही वह राजनीति का क्षेत्र ही क्यों नहीं हो