TNP DESK- राहुल गांधी ने एक बार फिर से जातीय जनगणना को लेकर एक बड़ा दावा किया है, राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी को जातीय जनगणना से डर लगता है, उन्हे इस बात का भय है कि इस आंकड़े के सामने आने के बाद दलित पिछड़ों की पूरी जनसंख्या सामने आ जायेगी, तब उन्हे उनकी जनसंख्या के हिसाब से भागीदारी देनी होगी, सिर्फ प्रतीकात्मक भागीदारी से पिछड़ों का कल्याण नहीं होने वाला है. पिछड़ों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व और भागीदारी देना होगा, जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी भागीदारी की राह पर चलना होगा.
लेकिन पीएम मोदी जातीय जनगणना से भागे फिर रहे हैं, वह किसी भी कीमत पर पिछड़ों और दलितों की संख्या को सामने आना देना नहीं चाहते. लेकिन कांग्रेस इस देश के ओबीसी को यह विश्वास दिलाना चाहती है कि जैसे ही हमारी सरकार बनेगी, कैबिनेट की पहली बैठक में जातीय जनगणना को हरी झंडी दे दी जायेगी.
ध्यान रहे कि जैसे जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आता जा रहा है, जातीय जनगणना का सवाल एक अहम होता जा रहा है, इसके साथ ही जातीय जनगणना का मामला राजस्थान, तेलांगना, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के विधान चुनावों में भी उछलता नजर आने लगा है. इसकी झलक राहुल गांधी के बयानों से मिल रही है, लोकसभा के स्पेशल सेशन के बाद वह लगातार इस मुद्दे को उछाल रहे हैं, जहां भाजपा महिला आरक्षण को लोकसभा और राज्यसभा से पारित करवा कर जश्न मनाने की तैयारी में थी, वहीं राहुल गांधी ने महिला आरक्षण में ओबीसी महिलाओं की हकमारी का सवाल उठाकर भाजपा को बचाव की मुद्रा में लाकर खड़ा कर दिया और यह दावा कर तो सियासी भूचाल ही खड़ा कर दिया कि पीएम मोदी के 90 सचिवों में महज तीन सचिव ओवीसी कैटेगरी से हैं.
राहुल गांधी की रणनीति इस आंकड़ों को सामने लाकर महिला आरक्षण में ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा के अन्दर कोटा की मांग के औचित्य को समझाने की थी, आंकड़ों के साथ इस बात को तर्क संगत बनाने की थी कि क्यों ओबीसी महिलाओं के लिए कोटा के अन्दर कोटा का होना जरुरी है. जब ओबीसी पुरुषों का हाल यह है तो ओबीसी महिलाओं की हालत क्या होगी.
प्रधानमंत्री मोदी को हो रहा है खतरे का भान
हालांकि खुद पीएम मोदी को भी इस खतरे का भान हो रहा है. यही कारण है कि मध्यप्रदेश में वह महिलाओं को यह समझाने की कोशिश करते नजर आते हैं कि कांग्रेस महिलाओं के बीच विभाजन करने की साजिश रच रही है, उन्हे दलित पिछड़ों में बांटने का षडयंत्र रच रही है, लेकिन यहां सवाल यह है कि आखिर भाजपा को कोटा के अन्दर कोटा रखने में परहेज क्या है? राहुल गांधी के सवालों का जबाव देते अमित शाह ने कहा था कि कोटा के अन्दर कोटा बनाने के लिए पहले जातीय जनगणना करवाना होगा, और इस प्रक्रिया में देरी होगी, लेकिन अहम सवाल तो यह है कि आखिर पिछले दो वर्षों से जनगणना के काम को रोक किसने रखा है? और वैसे ही सरकार खुद ही मानती है कि महिला आरक्षण को लागू करने से पहले जनगणना और परिसिमन का कार्य करवाना होगा,और इसमें करीबन पांच वर्षों का समय लगेगा, साफ है कि भाजपा दावा कुछ भी करें, लेकिन महिला आरक्षण कम से कम 2029 तक लागू होने वाला नहीं है, तो फिर इस हालत में जातीय जनगणना करवा कर ही इसे पुख्ता रुप से लागू किया जाता, और उस हालत में ओबीसी में रोष भी नहीं होता, उनकी महिलाओं के लिए भी कोटा के अन्दर कोटा मिल गया होता, लेकिन आज हालत यह है कि जिस महिला आरक्षण का जश्न मनाया जा रहा है उसको लागू करने में अभी करीबन 6-7 से वर्ष लगेंगे. और तब तक मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान रहेंगे, इस बात की पक्की गारंटी नहीं जा सकती.