Ranchi-झारखंड में इंडिया गठबंधन की चुनौतियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही, हर गुजरते दिन के साथ गठबंधन एक नये संकट में फंसता दिख रहा है. चतरा से के.एन त्रिपाठी की उम्मीदवारी के बाद से ही सियासी हलकों में कई आशंकाएं जाहिर की जा रही थी और अब वह आशंकाएं सच साबित होती दिखने लगी है. लेकिन इस बार सवालों के घेरे में सिर्फ चतरा की सीट नहीं है, ताजा संकट और भी गहरा है और इसकी वजह है राजद का वह आरोप, जिसमें दावा किया गया है कि इंडिया गठबंधन टिकटों के वितरण में झारखंड का सामाजिक समीकरणों साधने में बूरी तरह विफल रही है. 14 फीसदी मुस्लिम और 14 फीसदी यादव जो आज के दिन इंडिया गठबंधन का कोर वोटर है, उसकी उपेक्षा करना भारी पड़ सकता है, और इन सामाजिक समूहों में फैलते गुस्से का चुनावी नतीजों में देखने को मिल सकता है.
गोड्डा, कोडरमा और चतरा पर पुनर्विचार की मांग
इसके साथ ही राजद ने गोड्डा, कोडरमा और चतरा सीट पर एक बार फिर से पुनर्विचार करने की मांग की है, ताकि राहुल गांधी का नारा जिसकी जीतनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी को सरजमीन पर उतारा जा सके. यहां ध्यान रहे कि चतरा, कोडरमा और गोड्डा बिहार से सट्टा इलाका है, झारखंड की इन लोकसभा सीटों पर राजद की मजबूत पकड़ रही है. चतरा से राजद ने 1989,1981,1999 और 2004 में अपना परचम भी फहराया है, वैसे 1989 और 1991 में जीत तो जनता दल के बनैर तले मिली थी, लेकिन उस जीत को भी राजद के साथ ही जोड़ कर देखा जा सकता है. क्योंकि तब उसके कर्ताधर्ता लालू यादव भी थें. कोडरमा और गोड्डा से राजद के हिस्से कभी जीत तो नहीं आयी है, लेकिन इसी कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी लालटेन के टिकट पर चुनाव जीतती रही है, ठीक यही हाल गोड्डा का है, गोड्डा विधान सभा से संजय प्रसाद यादव वर्ष 2000 और 2009 में लालटेन के टिकट पर विधान सभा पहुंच चुके हैं, और यही कारण है कि राजद गोड्डा पर भी दावा ठोकती रही है.
लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है इसका खामियाजा
टिकट बंटवारें को लेकर इस बवाल के बीच इंडिया गठबंधन प्रदर्शन कितना मजबूत रहेगा, अभी से ही इस पर सवाल खड़ा होने लगा है, एक तरफ यादवों के बीच से नाराजगी सामने आ रही है तो दूसरी ओर अल्पसंख्यक समाज ने भी मोर्चा खोल दिया है, शायद अल्पसंख्यक समाज के बीच फैलती इस नाराजगी में राजद भी अपना सियासी पकड़ को धारदार बनाने की जुगत में हैं, यहां ध्यान रहे कि अल्पसंख्यक समाज के बीच से उठती नाराजगी के बावजूद झामुमो ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन राजद ने जरुर एक कदम आगे बढ़ कर इस मांग का समर्थन किया है दरअसल राजद की कोशिश अल्पसंख्यक समाज को यह विश्वास दिलाने की है कि और कोई नहीं तो कम से कम वह उसके साथ खड़ा है. आज भी वह अपने पुराने समीकरणों के साथ चलना चाहता है, हालांकि गठबंधन की विवशता के कारण कई बार उसे अपने कदम पीछे खिंचने पड़ते हैं.
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