Ranchi- सरना धर्म कोड की मांग पहली बार नहीं हो रही है, और ना ही पहली बार हेमंत सोरेन ने इस पर बैंटिग की है. इसके पहले भी सरना धर्म कोड को विधान सभा से पारित कर राजभवन के पास भेजा जा चुका है, जिस पर केन्द्र सरकार को अपना फैसला लेना है. हालांकि वह फैसला कब लिया जायेगा और लिया जायेगा भी या नहीं, झारखंड की राजनीति के लिए एक अहम सवाल है.
लेकिन इस बार ईडी की पांचवीं नोटिस मिलते ही जिस प्रकार से सीएम हेमंत ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर सरना धर्म कोड की मांग को सियासी चर्चाओं में ला खड़ा किया, उसके बाद यह दावा जाने लगा है कि यह पत्र सीएम हेमंत की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. हेमंत सोरेन फ्रंट फुट पर खेल कर भाजपा को बैक फुट पर भेजने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, सरना धर्म कोड और पेसा कानून इसी दिशा में उठाया गया कदम है.
सरना धर्म कोड के सहारे पूरे आदिवासी समाज को अपने साथ खड़ा करने की रणनीति
जानकारों का दावा है कि सरना धर्म कोड, पेसा कानून, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति और स्थानीय नीति की आड़ में सीएम हेमंत झारखंड में एक बड़े सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में खड़ा करना चाहते हैं और इसके साथ ही वह भाजपा को बैक फुट पर खड़ा होने को मजबूर करना चाहते हैं.
ध्यान रहे कि पीएम मोदी को लिखे अपने पत्र में सीएम हेमंत ने सरना धर्म कोड के पक्ष में आंकड़ा पेश करते हुए इस बात का दावा किया है कि क्यों सरना आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की आवश्यक्ता है और क्यों इस मसले पर तत्काल निर्णय लेने की जरुरत है.
आजादी के बाद आदिवासियों की जनसंख्या में आ रही है गिरावट
सीएम हेमंत ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि आजादी के बाद लगातार आदिवासियों की जनसंख्या में गिरावट आ रही है, बीते वर्षो में यह आबादी 38 फीसदी से घटकर 26 फीसदी तक पहुंच गयी, जनसंख्या में इस लगातार गिरावट से आदिवासी समुदाय के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है, राज्य की कई जनजातियां आज विलुप्त होने के कगार हैं, इस हालत में यह बेहद जरुरी है कि प्रकृति पूजक आदिवासी की गणना की जाये.
1951 तक आदिवासियों की होती थी अलग से गिनती
सीएम हेमंत ने यह भी कहा कि 1951 तक की जातीय जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड था, लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया. और यह स्थिति दुखद है. सरना धर्म कोड को झारखंड विधान सभा से पारित किया जा चुका है, और यह मामला केन्द्र सरकार के पास लंबित है. इस हालत में आदिवासी समाज की इस चिंता का समाधान पीएम के हाथों में है, और जल्द से जल्द इसका समाधान आदिवासी समाज के अस्तित्व के लिए बेहद जरुरी है.
सरना धर्म कोड के सहारे एक बड़ी लकीर खिंचने की कोशिश
साफ है कि सरना धर्म की मांग को आदिवासी अस्तित्व के साथ जोड़कर सीएम हेमंत एक बड़ी लकीर खिंचना चाहते हैं, क्योंकि जैसे ही भाजपा इसका विरोध करेगी आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा भाजपा से दूर चला जायेगा,जबकि सरना धर्म कोड की मांग को स्वीकार करने के साथ ही उस पर सनातन धर्म को बांटने का आरोप लगेगा. इस प्रकार जिस धार्मिक फूट के सहारे भाजपा आज तक राजनीति करती आ रही है, सीएम हेमंत उसे को उसी की पिच पर चुनौती दे रहे हैं.
भ्रष्टाचार के नैरेटिव को बदल भाजपा के आदिवासी विरोधी चेहरा को सामने लाने की रणनीति
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सीएम हेमंत को चिट्ठी लिखने की याद आज ही क्यों आयी. तो इसका सीधा जवाब है कि ईडी के जिस समन के सहारे भाजपा सीएम हेमंत के खिलाफ भ्रष्टाचार का नैरेटिव खड़ा करना चाहती है, उसी प्रकार सीएम हेमंत सरना धर्म कोड की मांग के सहारे भाजपा को आदिवासी विरोधी साबित करना चाहते हैं. ताकि आदिवासी समाज मुखरता के साथ उनके साथ खड़ा रह सके और किसी भी राजनीतिक तूफान की स्थिति में उनकी नैया सुगमता के पार हो सकें.