रांची(RANCHI)- आज की कैबिनेट बैठक में हेमंत सरकार एक बार फिर से पिछड़ी जातियों सहित दूसरी कमजोर सामाजिक समूहों के आरक्षण विस्तार संबंधी विधेयक को अपनी मुहर लगाने की तैयारी में है, दावा किया जा रहा है कि कैबिनेट की स्वीकृति के बाद इसे एक बार फिर से शीतकालीन सत्र में विधान सभा के पटल पर रखा जायेगा और उसके बाद इस बिल को राज्यपाल की स्वीकृति के लिए राजभवन के पास भेजा जायेगा.
इस बिल को पहले भी वापस भेज चुकी है राजभवन
ध्यान रहे कि इस विधेयक को पहले भी राजभवन को भेजा गया था, लेकिन तब राजभवन ने इसे कई आपत्तियों के साथ विधान सभा को वापस भेज दिया था, अब हेमंत सरकार इसी विधेयक को एक बार फिर राजभवन की तैयारियों में भीड़ गयी है.
क्या है संवैधानिक प्रावधान
ध्यान रहे कि जब भी कोई विधेयक राजभवन के द्वारा वापस भेजा जाता है और यदि विधान सभा एक बार फिर से उसे राजभवन के पास स्वीकृति के लिए भेजती है, तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद के तहत राजभवन उस पर अपनी स्वीकृति प्रदान करने को बाध्य होते हैं, हेमंत सरकार अब इसी मोर्चे को खोलने की तैयारी में है, हालांकि कुछ जानकारों का कहना है कि यदि राजभवन को यह महसूस होता कि बिल का कोई प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के किसी फैसले विपरीत है, तो उस हालत में उसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 2001 के तहत राष्ट्रपति के पास अनुंशसा के लिए भेजा जा सकता है.
अब क्या करेगी राजभवन
अब देखना होगा कि इस बिल पर महामहिम का रुख क्या होता है. लेकिन इतना साफ है कि हेमंत सरकार अपने कोर मुद्दे और मतदातों के जुड़े हित से कोई भी समझौता करने मुड में नहीं है, और इस मुद्दे पर एक बार फिर से राजभवन और राज्य सरकार के बीच तकरार देखने को मिल सकती है.
आरक्षण विस्तार से किन सामाजिक समूहों को होगा लाभ
ध्यान रहे कि हेमंत सरकार ने इस बिल में पिछड़ी जातियों सहित दूसरे सामाजिक समूहों के आरक्षण में बढ़ोतरी करने का फैसला किया है, बिल के प्रावधान के अनुसार पिछड़ी जातियों के वर्तमान आरक्षण 14 फीसदी को 27 फीसदी, अनुसूचित जनजाति को 26 से 28 फीसदी और अनुसूचित जाति को 10 से बढ़ा कर 12% करने का फैसला किया है. इसके साथ ही आर्थिक रुप से कमजोर वर्गों को भी 10 फीसदी करने का प्रावधान रखा गया है, इस प्रकार कुल आरक्षण 77 फीसदी हो जाता है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी से तक ही करने का आदेश दिया है, हालांकि ईडब्ल्यूईएस को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के बाद कई राज्यों में यह सीमा पहले ही टूट चुकी है.