रांची(RANCHI)-आदिवासी-मूलवासियों के सवाल को केन्द्र में रख राजनीति करती आ रही हेमंत सरकार इन समुदायों के बीच वन पट्टा का वितरण में पिछड़ती नजर आ रही है. हालांकि झारखंड से सट्टे राज्यों में छत्तीसगढ़ और ओडिसा की सरकार ने इस दिशा में काफी बेहतर काम किया है. छत्तीसगढ़ ने 80 हजार तो ओडिसा की सरकार ने करीबन 40 हजार लोगों के बीच वन पट्टा वितरण करने का काम किया है. इन सरकारो की इस पहल से दलित-आदिवासी और मूलवासी समुदायों का सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण ने रफ्तार पकड़ा है, और उनके जीवन में खुशहाली आई है.
पिछले चार सालों में मात्र 1271 वन पट्टा हुआ निर्गत
जबकि बात यदि हेमंत सरकार की करें तो पिछले चार वर्षों में मात्र 1271 लोगों को ही वन पट्टा निर्गत किया गया, आज भी करीबन 1,01,812 आवेदन विभिन्न कार्यालयों में लंबित है, इसमें सबसे अधिक आवदेन 58,053 गुमला जिले से हैं, इस आंकडों को सामने आने के बाद हेमंत सरकार को घेरने की कोशिश भी तेज हो गयी है. वन पट्टा वितरण में बरती जा रही इस शिथिलता पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व सीएम और केन्द्रीय मंत्री अर्जून मुंडा ने कहा है कि आदिवासी -मूलवासियों को वन पट्टा निर्गत किये बगैर हम वन संरक्षण की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं उठा सकते, आम रुप से यह धारणा बनायी गयी है कि वन पट्टा निर्गत करने से वन क्षेत्रों में गिरावट आती है, लेकिन इस धारणा का सच्चाई से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है. यह स्थिति तब और भी दुखदायी नजर आती है, जबकि हमारी करीबन 80 फीसदी आबादी गांवों में निवास करती है.
मार्च 2019 से नहीं किया गया वन पट्टा का वितरण
हालांकि जानकारों का दावा है कि इस शिथिलता की बड़ी वजह यह धारणा है कि वन पट्टा वितरण से जंगल की जमीन खत्म हो जायेगी और बाद में खनन कंपनियों को जमीन उपलब्ध करवाने में परेशानी आयेगी. शायद यही कारण है कि झारखंड सरकार 2019 से केन्द्र सरकार को वन पट्टा निर्गत करने के लिए कोई सूची या रिपोर्ट नहीं दिया है. मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक झारखंड ने मार्च 2019 से लेकर 31 मार्च 2023 तक एक भी पट्टा निर्गत नहीं किया. यहां याद रहे कि झारखंड के 32,112 में से करीबन 14,850 गांव जंगल के आसपास बसे हैं, इस स्थिति में वन पट्टा में बरती जा रही यह शिथिलता आदिवासी मूलवासी समुदायों के बीच आक्रोश का कारण बन सकता है.
क्या होता है वन पट्टा
दरअसल वन पट्टा वन क्षेत्रों में निवास करने वाली वाली वैसी जनजातियों और वनवासियों को निर्गत किया जाता है, जो इस भूमि पर पीढ़ी दर पीढ़ी निवास कर रहे हैं, लेकिन उनके पास उक्त भूमि का कोई सरकारी दस्तावेज नहीं है, उक्त भूमि पर उनकी इसी मान्यता को स्थापित करने लिए वन पट्टा निर्गत किया जाता है, यूपीए सरकार की यह बड़ी पहल मानी जाती है, माना जाता है कि इन वन पट्टा से उनका सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण होगा और उनके पास अपने आवास भूमि का मान्य दस्तावेज होगा.