TNP DESK- 2024 के महासंग्राम को सामने खड़ा देख राजनीतिक दलों में वार प्रतिवार का दौर शुरु हो चुका है. अपने विरोधियों को परिवारवादी और भ्रष्ट बताने की होड़ लग चुकी है. इसी कड़ी में पूर्व सीएम बाबूलाल ने भी विपक्षी दलों की बेंगलुरु बैठक पर निशाना साधा है.
अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर विरोधी दलों की इस बैठक पर निशाने साधते हुए उन्होंने इसे परिवार बचाओ मोर्चा करार दिया है. उन्होंने लिखा है कि अपनी-अपनी सल्तनत को बचाने के लिए राजनीतिक घरानों के बेटे-बेटियों की शिरकत हो रही है. लेकिन ये सारे के सारे खानदानी राजनेता जनता द्वारा नकारे जा चुके हैं, राजनीति में दो निगेटिव मिलकर कभी पॉजीटिव नहीं बन सकता. इसके साथ भी कथित रुप से परिवारवादी पार्टियों की पूरी लिस्ट भी साक्षा की गयी है. उनके निशाने पर लालू परिवार, करुणानिधी परिवार, सोरेन परिवार, ठाकरे परिवार, पवार परिवार, अब्दुला परिवार से लेकर मुफ्ती परिवार का जिक्र है.
आज देश की निगाहें दो महत्वपूर्ण बैठकों की ओर लगी हुई है
ध्यान रहे कि आज देश की निगाहें आज दो महत्वपूर्ण बैठकों की ओर लगी हुई है, एक महाबैठक राजधानी दिल्ली से दूर आईटी हब माने बेंगलुरु में हो रही है, जहां देश के तमाम विपक्षी दलों का जमघट लगा हुआ है, राजनीति के नामचीन धुरंधर वर्तमान राजनीति की दशा और दिशा को बदलने की कवायद में लगे हैं, इन सभी राजनेताओं का अपने-अपने राज्यों की राजनीति में अहम किरदार और बड़ जनाधार है. बात चाहे ममता बनर्जी की हो या नीतीश कुमार की, या फिर हेमंत सोरेन की या अखिलेश यादव की, पिछले नौ वर्षों में केन्द्रीय राजनीति में पीएम मोदी उभार के बावजूद इन चेहरों ने अपना चेहरा ओझल नहीं होने दिया, और तमाम आंधियों के बावजूद अपने-अपने बुते सत्ता के केन्द्र में बने रहें या मुख्य विपक्ष की भूमिका में अड़े रहें.
एनडीए की बैठक
वहीं दूसरी ओर राजधानी दिल्ली में भी एक बैठक चल रही है, और वह भाजपा जो इस बात का अहंकार पालती थी कि उसके पास मोदी को चेहरा है, और उसे इसके अलावे उसे किसी और चेहरे की कोई जरुरत नहीं है. अहंकार इस स्तर तक जा पहुंचा था कि खुद जेपी नड्डा इस बात की घोषणा कर रहे थें कि ये सारे क्षेत्रीय देश पर एक भार हैं, और धीरे-धीरे हमें क्षेत्रीय दलों से मुक्त होना है.
पांच बरसों के भाजपा को आयी इन दलों की याद
लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जमीन खिसकता देख वही भाजपा अब उन दलों को भी आंमत्रण पत्र भेजने को मजबूर हैं, जिन्हे वह प्रचंड बहुमत के कारण पिछले पांच बरसों से उपेक्षा कर रही थी. बेंगलुरु बैठक के विपरीत दिल्ली की बैठक में उन दलों का जमघट कुछ ज्यादा ही दिख रहा है जिनका वजूद दो चार विधानसभा क्षेत्रों के आगे जाता नहीं दिखता, उपेन्द्र कुशवाहा से लेकर पशुपतिनाथ और राजभर की स्थिति कमोवेश यही प्रतीत होती है. इन दलों के पास कोई बड़ा जनाधार नहीं दिखता, लेकिन एक सच यह भी है कि आज की भाजपा को एक एक सीटों के लिए संघर्ष करती हुई दिख रही है और उसके लिए डूबते को तिनका का सहारा वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है. यही कारण है कि अब वह अधिक से अधिक दलों को अपने साथ खड़ा दिखलाकर एक मजबूत भाजपा का हौवा खड़ा करने की कोशिश करती हुई दिख रही है.
एनडीए में भी परिवारवादी पार्टियों का जमावड़ा
जहां तक बाबूलाल के इस दावे का सवाल है कि बेंगलुरु की बैठक में परिवारवादी पार्टियों का जमावड़ा है, तो याद रखा जाना चाहिए कि वहां भी रामविलास पासवान परिवार, पवार परिवार और अपना दल जैसी परिवारवादी पार्टियां मौजूद हैं. वंशवाद की राजनीति वहां भी खूब फल फूल रही है. हालांकि भाजपा इन दलों के परिवारवाद पर चर्चा करना नहीं चाहती.
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