Ranchi-सीएम चंपाई ने भले ही अपनी ताजपोशी के बाद अपनी सरकार को हेमंत पार्ट टू बताया हो, लेकिन सरकार के कामकाज पर नजर रखने वाले का मानना है कि सरकार का चेहरा भले ही हेमंत हों, लेकिन इस सरकार की चाल बदली हुई है. जहां हेमंत सोरेन के इर्द गिर्द एक चौकड़ी काम करती थी, आम जनों की बात तो दूर खुद मंत्री-विधायकों को सीएम तक पहुंच के लिए अभिषेक प्रसाद पिंटू जैसा दीवार पार करना पड़ता था. कई बार तो विधायकों को भी चिरोरी करनी पड़ती थी. अपनी समस्यायों की लिस्ट को लेकर वह घुमते रहते थें. हालांकि जब भी हेमंत के साथ उनकी मुलाकात होती थी, वह बेहद सहज भाव से मिलते थें. लेकिन यह तो तब होता, जब उन तक पहुंच बन जाती. लेकिन आज चंपाई का दरबार सबके लिए खुला है. कोई भी मंत्री और विधायक जब चाहे सीएम चंपाई से अपनी गुहार लगा सकता है, अपनी व्यथा और समस्याओं की फेहरिस्त सामने रख सकता है. कहीं कोई दीवार नहीं है, और अभिषेक प्रसाद पिंटू जैसा कोई किरदार नहीं है.
सरकार के काम-काज कल्पना का जादू
और उसके बाद ही यह सवाल खड़ा होने लगा है कि यह बदलाव अनायास है, या इसके पीछे कोई खास रणनीति है. और यदि यह एक रणनीति है, तो यह रणनीति किसकी है, किसके इशारे उस चौकड़ी को हेमंत पार्ट टू वाली इस सरकार से दूर किया जा रहा है. क्या वह कल्पना सोरेन है या फिर चंपाई सोरेन की वह सियासी विरासत है, जो दिशोम गुरु के साथ संघर्ष के काल में चंपाई के व्यक्तिव का खास हिस्सा बन चुका है. यानि सादगी और सूफियाना अंदाज. जब जो चाहे दरबार खुला है. लोगों से संवाद में कहीं कोई दीवार नहीं. जानकारों का मानना है कि दोनों की स्थितियां एक साथ काम कर रही है. एक तो चंपाई सोरेन का व्यक्तित्व ऐसा है, जहां किसी तीसरे की कोई गुंजाईश नहीं है. किसी चौकड़ी को सरकार के काम काज में हस्तक्षेप की इजाजत नहीं है, वह खुद ही सारे मामले देख रहे हैं, सारे मंत्रियों के साथ व्यक्तिगत स्तर पर सम्पर्क में हैं. दूसरी स्थिति कल्पना सोरेन की है. भले ही कल्पना सोरेन की सियासी इंट्री अब हुई हो, लेकिन वह बेहद नजदीक से सरकार के काम काज को देखती रही है, और उनकी नजर वह चौक़ड़ी भी है, जिसके कारण आज हेमंत को काल कोठरी के पीछे कैद होना पड़ा है. और अब जब कि कल्पना सोरेन की औपचारिक रुप से सियासी इंट्री हो चुकी है, एक प्रकार से अब वह पार्टी का चेहरा बन चुकी है. और पार्टी को अब इसी चेहरे के साथ जनता के बीच जाना है. इस हालत में कल्पना की नजर पार्टी के साथ ही सरकार के काम-काज पर भी बनी हुई है. और कल्पना सोरेन अब हेमंत का सियासी हस्श्र देख कर अब किसी भी चौकड़ी को हेमंत पार्ट टू की सरकार के आसपास भटकने देना नहीं चाहती, और यही कारण है कि अभिषेक प्रसाद पिटूं की गतिविधियां सीमित कर दी गयी है, इसके साथ ही कल्पना सोरेन की नजर संताल की उस सियासत पर भी बनी हुई है. जहां से हेमंत को सबसे अधिक बदनामी मिली, खनन घोटाला से लेकर दूसरे आरोप लगे.
संताल की सियासत में भी बड़े बदलाव की तैयारी
दावा किया जाता है कि संताल की राजनीति में एमटी राजा की वापसी इसी रणनीति का हिस्सा है. एमटी राजा पहले भी झामुमो का हिस्सा ही थें, झामुमो के नीतियों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी. लेकिन पंकज मिश्रा का बढ़ता कद और हेमंत के साथ की नजदीकियां एमटी राजा को नागवार गुजर रहा था. एमटी राजा की नजर में पंकज मिश्रा सिर्फ एक ब्रोकर था, जो झामुमो की सियासी ताकत का इस्तेमाल अपनी तिजारी को भरने में कर रहा था. जबकि संताल की राजनीति में उसकी कोई सामाजिक पकड़ नहीं थी. कहा जाता है कि हेमंत की गिरफ्तारी के बाद कल्पना को इस भूल का भान हुआ, और वह अब उन सारे चेहरों को झामुमो से किनारा करने की राह पर निकल पड़ी है, जिसके कारण विधायकों और झामुमो के पुराने समर्थक वर्ग के बीच नाराजगी पसर रही थी. यहां याद रहे कि पंकज मिश्रा की गतिविधियों पर खुद लोबिन हेम्ब्रम और दूसरे विधायकों ने भी सवाल उठाया था. कई बार तो हेमंत के साथ मिलकर नाराजगी भी प्रकट की गयी थी.
संगठन पर ही कैंची नहीं, नौकरशाही पर भी लगाम लगाने की तैयारी
लेकिन कल्पना की कैंची सिर्फ संगठन पर ही नहीं चल रही है, नजर तो नौकरशाही पर भी बनी हुई है. कल्पना की कोशिश नौकरशाही में भी बड़े बदलाव की है, ताकि जिस अधिकारियों के कारण सरकार की बदनामी और किरकिरी हो रही थी, उन पर लगाम लगायी जा सकें, दावा किया जाता है कि विनय चौबे को सीएम के प्रधान सचिव से छुट्टी भी उसी रणनीति का हिस्सा है, और आने वाले दिनों में और भी कई बदलाव देखने को मिल सकता है.
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