पटना(PATNA)- बिहार और देश की राजनीति में सीएम नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक माने जाने वाला जातीय जनगणना के सवाल पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है. 14 अगस्त को इस मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि अगली तिथि को सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की जायेगी. इसके साथ ही कोर्ट ने जाति आधारित जनगणना को लेकर किये जा रहे बिहार सरकार के सर्वेक्षण पर रोक लगाने से भी इंकार कर दिया था. तब कोर्ट ने कहा था कि जब तक दोनों पक्ष की दलील सुनी नहीं जाती, स्थगन आदेश देना उचित नहीं होगा. जिसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 18 अगस्त की तिथि को निर्धारित किया था. यहां याद रहे कि पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार और इसके विरोधियों की दलीलों को सुनने के बाद जाति आधारित जनगणना के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था. जस्टिस के. विनोद चंद्रन ने इसे आर्थिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना था.
आर्थिक न्याय की दिशा में क्रांतिकारी कदम
यहां ध्यान रहे कि जब पटना हाईकोर्ट के द्वारा जातीय जनगणना पर रोक लगायी गयी थी तब लालू यादव ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा था कि जातीय गणना बहुसंख्यक जनता की मांग है और यह हो कर रहेगी, भाजपा बहुसंख्यक पिछड़ों की गणना से डरती क्यों है? जो जातीय गणना का विरोधी है वह समता, मानवता, समानता का विरोधी और ऊंच-नीच, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ेपन, सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का समर्थक है. देश की जनता जातिगत गणना पर भाजपा की कुटिल चाल और चालाकी को समझ चुकी.
हालांकि हाईकोर्ट के फैसले के बाद विजय सिन्हा ने इसका समर्थन करते हुए लिखा था कि भाजपा हमेशा से जातीय जनगणना की समर्थक रही है, लेकिन यह नीतीश कुमार थें, जिनके द्वारा इसका उद्देश्य नहीं बताया जा रहा था, खोट नीतीश कुमार की नीयत में था. दूसरी तरह उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इसे आर्थिक न्याय की दिशा में क्रांतिकारी कदम बताते हुए केन्द्र सरकार से भी जातीय जनगणना करवाने की मांग की है.