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सियासत की पहली चाल और भाजपा ढेर! कल्पना के नेतृत्व में एमटी राजा की वापसी, देखिये राजमहल में विजय हांसदा के विजय रथ को रोकना कितना हुआ मुश्किल

सियासत की पहली चाल और भाजपा ढेर! कल्पना के नेतृत्व में एमटी राजा की वापसी, देखिये राजमहल में विजय हांसदा के विजय रथ को रोकना कितना हुआ मुश्किल

Ranchi-जिस हेमंत की “कल्पना” को राजनीति का नौसिखुआ बताकर कमतर आंकने की कोशिश की जा रही थी. हेमंत के नक्शेकदम के दूर रहने की नसीहत दी जा रही थी. इस बात का सबक सिखाने की कोशिश की जा रही थी कि यदि हेमंत की राह पकड़े का अंजाम वही होगा, जिस मुकाम पर आज खुद हेमंत खड़े हैं. लेकिन इन सारी नसीहतों और सबक को किनारा करते हुए कल्पना अब अपने फैसले और सियासी अंदाज से ना सिर्फ भाजपा को चौंका रही है, बल्कि उस इंदिरा की झलक दिखला रही है. जिस इंदरा को कभी महान समाजवादी नेता लोहिया ने गूंगी गुड़िया बताकर मजाक उड़ाने की कोशिश की थी. पंडित नेहरु की मौत के बाद लाल बहादूर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना मंत्रालय का कार्यभार संभालते इंदिरा की कार्यशैली को देख लोहिया ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन सियासत का वह दौर भी आयेगा, जब यही गूंगी गुड़िया विपक्ष के सारे हथियार को भोथरा साबित कर देश पर एकछत्र राज्य करेगी. और जैसे ही लाल बहादूर शास्त्री की मौत के बाद देश की कमान इस गूंगी गुड़िया के हाथ लगी, सियासत के सारे पैमाने बदलने लगे और वह दौर भी आया जब इस गूंगी गुड़िया ने आपात्तकाल की घोषणा कर सारे विरोधियों को जेल में बंद कर दिया. देश में आक्रोश की लहर उठी और उस आंधी में इस गांधी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. विपक्ष के हाथ में सत्ता की बागडोर आयी, लेकिन लोहिया की यह गूंगी गुडिया सियासत का वह निकली, जिसकी तरकीबों के आगे विपक्ष अपनी ही कुर्सी को बचाये रखने में नाकामयाब हो गया. मोरारजी के बाद चौधरी चरण सिंह की सरकार आयी और इंदरा ने खेल खेला. चौधरी चरण सिंह को बगैर बहुमत साबित किये अपनी कुर्सी त्यागनी पड़ी, एक बार फिर से चुनाव हुआ और जिस इंदरा के खिलाफ कभी पूरे देश में नफरत की लहर थी, उसी इंदरा को देश की जनता ने सिर आंखों पर बैठाकर सत्ता में वापस लाया. यानि लोहिया की उस गुंगी गुड़िया ने सियासत में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर लोहिया की भविष्यवाणियों को जमीदोंज कर दिया.

कौन है एमटी राजा

आज कमोवेश वही स्थिति झारखंड की सियासत में कल्पना सोरेन की बनती दिख रही है. जिस कल्पना को सियासत की इस पतली डगर से दूर रहने की हिदायत दी जा रही थी. हेमंत के अंजाम का खौफ दिखलाया जा रहा था. वही कल्पना अपनी सियासी इंट्री के साथ ही भाजपा के सियासी जमीन की हवा निकालती दिख रही हैं. गिरिडीह के झंडा मैदान से सियासत का झंडा थामते ही जैसे ही कल्पना सोरेन पूर्व सीएम हेमंत का विधान सभा बरहेट पहुंची. एक बड़ा एलान कर दिया. वह एलान था झामुमो का दामन छोड़ कर आजसू के साथ जाने वाले एमटी राजा की घर वापसी का. जैसे ही यह खबर सामने आयी, संताल के साथ ही राजधानी रांची की सियासत में चर्चाओं का दौर शुरु हो गया, इस बात का आकलन किया जाने लगा कि एमटी राजा की इस वापसी का संताल की सियासत पर क्या असर होगा? और खासकर एमटी राजा जिस राजमहल संसदीय क्षेत्र में आते हैं, वहां की सियासी तस्वीर में क्या बदलाव देखने को मिलेगा.

पंकज मिश्रा के विरोधी खेमे के माने जाते हैं एमटी राजा

यहां बता दें कि मोहम्मद ताजुद्दीन उर्फ एमटी राजा की सियासत की शुरुआत झामुमो से ही हुई थी, लेकिन दावा किया जाता है कि संताल की सियासत में एमटी राजा का पंकज मिश्रा से नहीं बनी और पंकज मिश्रा के खुंदक में आजसू का दामन थामा. 2019 का विधान सभा चुनाव भी लड़ा और उस राजमहल में जहां आजसू का कोई बड़ा प्रभाव नहीं है, अपने दम पर 76 हजार वोट हासिल किया. हालांकि वह भाजपा के अंनत ओझा से मात खा गयें, लेकिन इसकी बड़ी वजह झामुमो के द्वारा
कुतबुद्दीन शेख को मैदान में उतारने की थी. कुतबुद्दीन शेख ने 24 हजार मत लाकर अल्पसंख्यक मतदाताओं में बड़ी सेंधमारी कर भाजपा की राह को आसान बना दिया. दावा किया जाता है कि यदि तब झामुमो ने कुतबुद्दीन शेख को मैदान में नहीं उतारा होता तो बाजी पलट चुकी थी. और इसका बड़ा कारण राजमहल का सामाजिक समीकरण है. एक अनुमान के अनुसार राजमहल में अल्पसंख्यक 45 फीसदी, अनुसूचति जाति 22 फीसदी, अनुसूचित जनजाति तीन फीसदी है, बाकि आबादी पिछड़ी जातियों की है. साफ है कि यदि राजमहल में अल्पसंख्यक मतों में बंटवारा की स्थिति नहीं आने दी जाय तो  भाजपा की डगर मुश्किल हो सकती है और कुछ यही स्थिति राजमहल लोकसभा क्षेत्र की भी है.

संताल की सियासत में एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक

राजमहल संसदीय सीट में कुल छह विधान सभा आता हैं. इसमें अभी राजमहल से भाजपा के अंनत ओझा, बोरियो से झामुमो के लोबिन हेम्ब्रम, बरहेट विधान सभा से खुद हेमंत सोरेन, लिट्टिपाड़ा से झामुमो के दिनेश वीलियम मरांडी, पाकुड़ से कांग्रेस के आलमगीर आलम और महेशपुर से झामुमो के स्टीफन मरांडी विधायक है. इस प्रकार राजमहल लोकसभा में महज एक सीट पर भाजपा का कब्जा है, और यह स्थिति भी तक थी, जबकि एमटी राजा जैसा कदावर चेहरा झामुमो छोड़ गया था. और अब जब उसकी वापसी हो चुकी है. भाजपा के लिए राजमहल में विजय हांसदा की राह में चुनौती पेश करना और भी टेढी खीर नजर आने लगा है. स्थानीय जानकारों का दावा है कि पहले ही राजमहल झामुमो का एक मजबूत किला था. एमटी राजा की घर वापसी से भाजपा की राह और भी मुश्किल हो चुकी है. क्योंकि एमटी राजा की वापसी का असर सिर्फ राजमहल विधान सभा में ही देखने को नहीं मिलेगा, इसका प्रभाव पूरे लोकसभा में पड़ना तय है. और यही कारण है कि कल्पना सोरेन के इस फैसले को संताल की सियासत में एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है.

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Published at:08 Mar 2024 05:58 PM (IST)
Tags:MT Raja returns under the leadership of Kalpanarajmahal loksabha seatrajmahal loksabhaloksabha election 2024rajmahalrajmahal loksabha electionloksabha electionloksabharajmahal loksabha constituencyrajmahal loksabha election 2024rajmahal loksabha election updaterajmahal loksabha election news2024loksabha election 2019rajmahal seatrajmahal lok sabharajmahal lok sabha seatrajmahal lok sabha seat electionchatra loksabha seatFirst move of politics and BJP is defeatedVijay Hansda Rajmahal Lok Sabha MPMT Raja's homecomingWith the return of MT Raja Kalpana hits a master stroke in the palaceMohammed Tajuddin alias MT RajaMT Raja in Santal politics
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