रांची(RANCHI): 2016 के बाद एक बार फिर से देश में नोटबंदी का एलान किया गया है. हालांकि, इस बार इस सिर्फ दो हजार के रुपये के नोटों को ही बंद करने का फैसला किया गया है, और साथ ही पिछले बार के अनुभवों से सबक लेते हुए नोटों को बदलने के लिए चार माह का समय भी दिया गया है.
नोटबंदी के फैसले के खिलाफ फिर से तेज हुई राजनीति
लेकिन पिछले नोटबंदी की तरह ही विपक्ष इस बार भी इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने की तैयारियों में जुट गया है, इसे मोदी सरकार की एक और नौटंकी करार दिया जा रहा है. नोटबंदी के बहाने भाजपा से सवाल दागे जा रहे हैं, पुछा जा रहा है कि पिछली नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि इससे भ्रष्टाचार की कमर टूट जायेगी. लेकिन 2016 की नोटबंदी के बाद ईडी और सीबीआई की छापेमारी में हर रोज करोड़ों रुपये जब्त किये जा रहे हैं, फिर भ्रष्टाचार का कमर तोड़ने के मोदी के उस दावे का क्या हुआ? उन मौतों का क्या हुआ? जिनकी मौत लाइन में लगने के दौरान हो गयी? उस आर्थिक मंदी का जिम्मेवार कौन हैं? जो 2016 की नोटबंदी के बाद देश में आया. नोटबंदी से ना तो भ्रष्टाचार की कमर टूटी और ना ही आंतकवादी घटनाओं में कमी आयी, प्रधानमंत्री मोदी के सारे दावे हवा हवाई साबित हुए.
प्रधानमंत्री मोदी को अर्थशास्त्र के बुनियादी सिन्दधातों की भी जानकारी नहीं
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि दरअसल प्रधानमंत्री मोदी को अर्थशाशास्त्र का बुनियादी समझ भी नहीं है, यही कारण है कि उनके द्वारा नोटबंदी के बाद उसके फायदे गिनाये जा रहे थें, और वही नौटंकी एक बार फिर से दुहरायी जा रही है. लेकिन उन्हे इस बात का जवाब देना चाहिए कि इन नोटों को छापने में जितने पैसों की बर्बादी हुई, उसका जिम्मेवार कौन होगा? इन नोटों को छापने में आम जनता की गाढ़ी कमाई के 20 हजार करोड़ रुपये लगे हैं. इन 20 हजार करोड़ रुपये की बर्बादी का जिम्मेवार कौन होगा? आखिर क्या कारण है कि पिछली बार नोटबंदी की तरह इस बार इसके फायदे क्यों नहीं गिनाये जा रहे हैं?
प्रधानमंत्री मोदी को सामने आ इसके फायदे गिनवाना चाहिए
हालत यह हो गयी है कि इस बार प्रधानमंत्री मोदी सामने आने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं, यही कारण है कि सारे बयान आरबीआई की ओर से दिलवाये जा रहे हैं, लेकिन देश की जनता भाजपा की सारी नौटंकी को समझ चुकी है. यह नोटबंदी और कुछ नहीं, बल्कि आने वाले चार राज्यों के विधान सभा चुनाव को लेकर लिया गया एक विशुद्ध सियासी फैसला है. आने वाले दिनों में पांच सौ के नोट के साथ साथ 200, 100 के भी नोट बंद करने की घोषणा की जा सकती है और 350,650 के नोटों को छापा जा सकता है. यह चुनाव के पहले देश को पूरी तरह से बर्बाद करने की तैयारी है, भाजपा इस आर्थिक आंतकवाद से चुनाव भले ही जीतने का दावा करे, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इस आर्थिक आंतकवाद से देश का जो नुकसान होगा, उसका जिम्मेवार कौन होगा?