Ranchi- संसद के विशेष सत्र के अघोषित रुप से 2024 के महाजंग का एलान हो चुका है, किसी भी समय युद्ध की रणभेरी बज सकती है. इंडिया बनाम एनडीए की इस लड़ाई में दोनों तरफ से तीर तरकश कसे जा रहे हैं. संगठन से लेकर सरकार तक पार्ट पूर्जे कसे जा रहे हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इंडिया बनाम एनडीए की इस लड़ाई का रांची में चेहरा कौन होगा.
सीपी सिंह के दिल में मचल रही है सम्मानपूर्ण विदाई की चाहत
एक तरफ संजय सेठ लगातार दिल्ली में अपनी पैरवी तेज करते नजर आ रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उम्र के अंतिम पड़ाव पर खड़े नगर विधायक सीपी सिंह भी अपनी अंतिम इच्छा से संगठन को अवगत करवा रहे हैं, उनके निकटवर्तियों का दावा है कि 1996 से नगर विघायक के रुप में जीत हासिल करते रहे सीपी सिंह अब एक सम्मानपूर्ण विदाई चाहते हैं और संसद पहुंच कर अपनी अंतिम इच्छा पूरी करना चाहते हैं.
रुस्तम साबित हो सकते हैं प्रदीप वर्मा
लेकिन उनकी इस अंतिम चाहत में बाधा सिर्फ संजय सेठ नहीं है, भाजपा का एक और सितारा उनका कदम ताल रोकने की तैयारी में जुटा है, हालांकि संजय सेठ और सीपी सिंह की तुलना में वह चेहरा उतना चर्चित नहीं है, लेकिन वह पीएम मोदी के पिछड़े कार्ड पर सही उतर सकता है, वह चेहरा है प्रदीप वर्मा. भाजपा प्रदेश महामंत्री के रुप में उनका भी दिल्ली दौरा तेज है, और खबर यह है कि वह अमित शाह से लगातार सम्पर्क में है. हालांकि उन्हे कोई ठोस आश्वासन तो नहीं मिला है, लेकिन तैयारी पूरी रखने का आश्वासन जरुर मिला है.
आसान नहीं है संजय सेठ की वापसी
दरअसल सीपी सिंह और प्रदीप वर्मा को लेकर इन चर्चाओं का कारण यह है कि संजय सेठ की वापसी पर आशंकाओं के बादल उमड़ रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि आलाकमान को संजय सेठ का परफोर्मेंस रास नहीं आ रहा और उनकी जीत पर संदेह है, हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि संजय रिपिट नहीं होने वाले, लेकिन इतना साफ है कि भाजपा वैकल्पिक नामों पर विचार कर रही है.
आने लगी है रामटहल चौधरी की याद!
वहीं जानकारों का यह भी मानना है कि पूर्व सांसद रामटहल चौधरी को जबरन विदाई का रास्ता दिखलाकर भाजपा ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है. क्योंकि चाहे संजय सेठ हो या सीपी सिंह या फिर प्रदीप यादव, इसमें में किसी के पास भी अपना कोई वोट बैंक नहीं है, ये चेहरे पूर्ण रुप से भाजपा के वोट बैंक और मोदी के चेहरे पर निर्भर है, और जिस प्रकार से राज्य दर राज्य हार के बाद पीएम मोदी के चेहरे पर सवाल खड़ा होने लगा है, भाजपा को ऐसे चेहरे की तलाश है, जिसका खुद का भी अच्छा वोट बैंक हो, जिससे कि भाजपा का वोट बैंक पल्स होते ही वह जीत की ओर अग्रसर हो जाय, इस हालत में राम टहल चौधरी का कोई काट नहीं था, क्योंकि 2019 के मोदी लहर में संजय सेठ ने जीत का पताका तो जरुर फहरा दिया और लेकिन अब जब वही लहर अब कमजोर नजर आने लगी है, उस लहर पर सवाल खड़े किये जाने लगे हैं, खुद मातृ संगठन आरएसएस भी 2024 का जंग के लिए सिर्फ मोदी के चेहरे पर भरोसा करने से बचने की एडवाईजरी जारी कर दी है और इधर इंडिया गठबंधन की चुनौतियां दिन पर दिन गहराती ही जा रही है, अन्दर खाने भाजपा के रणनीतिकारों को राम टहल चौधरी की याद आने लगी है.