टीएनपी डेस्क(TNP DESK)आखिरकार चार दिनों से कर्नाटक का जो पॉलिटिक्ल ड्रामा नई दिल्ली दस जनपथ रोड पर चल रहा था, आज उसका समापन हो गया, और काफी गहन चिंतन के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक का बागडोर पिछड़ा सिद्धारमैया के हाथों में सौंपने का फैसला कर लिया. सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से आते हैं, कुरुबा समुदाय कर्नाटक में पिछड़ी जाति का एक अहम समुदाय है. और यह लिंगायत (Lingayat) और वोक्कालिगा (Vokkaliga) के बाद राज्य की सबसे बड़ी आबादी वाली जाति है. जहां लिंगायत की आबादी 17 फीसदी, वोक्कालिगा की 14 फीसदी और अल्पसंख्यकों की आबादी 12 फीसदी है, दलित जातियों की आबादी 24 फीसदी हैं वहीं कुरुबा जाति की आबादी करीबन 9 फीसदी है. लेकिन पिछड़े दलित और अल्पसंख्यकों को मिलाकर यह आंकड़ा पचास फीसदी से पार हो जाता है.
काम आया सिद्धारमैया का सोशल इंजीनियरिंग
ध्यान रहे कि सिद्धारमैया शुरु से ही सोशल इंजीनियरिंग की AHINDA के लेकर राजनीति करते रहे हैं, जिसे लिंगायत (Lingayat) और वोक्कालिगा (Vokkaliga) की भाजपा की राजनीति का तोड़ माना जाता है, कहा जाता है कि सिद्धारमैया के सर पर कर्नाटक का ताज रखने का एक सबसे बड़ा कारण उनकी यही AHINDA की सोशल इंजीनियरिंग की नीति को विस्तार देना है, कांग्रेस की रणनीति सिद्धारमैया को सामने रखकर 2024 की लड़ाई लड़ने की है, ताकि दलित पिछड़ों और अल्पंसख्यकों का गोलबंदी के सहारे भाजपा की आक्रमक चुनावी प्रचार का मुकाबला किया जा सके.
मल्लिकार्जन खड़गे के रुप में पहले से ही एक बड़ा दलित चेहरा
यहां यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि मल्लिकार्जन खड़गे के रुप में कांग्रेस के पास पहले ही कर्नाटर में एक बड़ा चेहरा साथ में है, अब सिद्धारमैया को कमांड सौंप कर वह दलित पिछड़ों की इस जुगलबंदी को और भी मजबूत करना चाहता है, रही बात अल्पसंख्यकों की तो उन्हे भी मंत्रालय में अहम जिम्मेदारी देकर पाले में रखा जायेगा.
डीके शिवकुमार को 2024 के बाद दी जा सकती है कोई अहम जिम्मेवारी
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चार दिनों से अपने बागी तेवर दिखला रहे डीके शिवकुमार अचानक से डिप्टी सीएम पर रजामंद क्यों हो गये, यहां याद रहे कि डीके शिवकुमार के खिलाफ पहले से ही कई मुकदमें दर्ज है, ईडी की पूछताछ के बाद उन्हे जेल की हवा भी खानी पड़ी है, शायद एहसास डीके शिवकुमार को भी है, इसमें कोई दो मत नहीं कि वह पार्टी के सबसे बड़े फंड रेजर है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि कांग्रेस जिस सामाजिक समीकरण का साधना चाह रही है, उसका चेहरा डीके शिवकुमार नहीं हो सकते हैं, इस हालत में बहुत संभव है कि उन्हे आलाकमान की ओर से 2024 के पहले कोई अहम जिम्मेवारी दिये जाने का भरोसा दिया गया होगा.