Ranchi- ईडी समन के खिलाफ कोर्ट पहुंचे हेमंत सोरेन की याचिका को जब से खारिज किया गया है, उनके तेवर बेहद तल्ख हो चुके हैं, वह लगातार भाजपा के खिलाफ हमलावर रुख अख्तियार किये हुए हैं और चुन चुन कर अपनी गलतियों को बता कर लोगों से पूछ रहे हैं कि क्या यही हमारा गुनाह है, क्या वृद्धों को वृद्धा पेंशन देना गुनाह है, क्या आदिवासी मूलवासी बच्चों को उच्च शिक्षा के विदेश भेजना हमारा गुनाह है, क्या भाजपा की जल, जंगल की लूट को रोकना हमारा गुनाह है, क्या 1932 का खतियान लागू करना हमारा गुनाह है, क्या भाजाप के द्वारा बंद कर दी गयी सभी नियुक्तियों को फिर से शुरु कर अपने युवाओं को नौकरी देना हमारा गुनाह है. क्या आदिवासी-मूलवासियों के हक-हुकूक की बात करना हमारा गुनाह है, क्या बाबूलाल मरांडी के द्वारा पिछड़ों के जिस आरक्षण को 27 फीसदी से कम कर 14 फीसदी कर दिया गया था, उस आरक्षण को एक फिर से 27 फीसदी करना हमारा गुनाह है, क्या कोरोना के उस दौर में जब केन्द्र की मोदी सरकार के द्वारा यातायात से सभी साधनों को बंद कर हमारे प्रवासी भाईयों और मजदूरों को महानगरों में मरने के लिए छोड़ दिया गया था, उन सभी मजदूरों को हवाई जहाजों में बिठा कर झारखंड लाना हमारा गुनाह है, क्या अपने विधवा बहनों को पेंशन देना हमारा गुनाह है, आखिर हमारा गुनाह क्या है?
किस जुर्म की सजा देने की रची जा रही साजिश
किस जुर्म की सजा हमें कालकोठरी में भेजने की साजिश की जा रही है, बार-बार समन भेज कर हमें डराने की कोशिश की जा रही है, सीएम हेमंत ने इस बात का दावा किया जो लोग यह समझ रहे हैं कि आज भी आदिवासी-मूलवासी बेवकूफ हैं, तो उनकी यह भारी भूल है.
सीएम हेमंत ने कहा कि हमारा सपना था कि झारखंड के सभी बेघरों को आवास मिले, गरीबों के सिर पर भी एक छत हो, लेकिन केन्द्र सरकार आवास निर्माण के लिए अपने कोटे की राशि देने से भी इंकार कर रही है, लेकिन हमने यह सपना टूटने नहीं दिया, हमने केन्द्र सरकार को आईना दिखलाते हुए गरीबों को दो कमरे के बदले तीन कमरे का मकान देने का फैसला किया और इसके लिए करोड़ों की राशि उपलब्ध करवा दिया, तो क्या यही हमारा गुनाह था.
पांचवीं अनुसूची क्षेत्र का पहला मुख्यमंत्री भाजपा की आंखों में खटक रहा
सीएम हेमंत ने कहा कि आज पांचवी अनुसूची क्षेत्र का मैं पहला आदिवासी मुखयमंत्री हूं, लेकिन भाजपा को किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री के रुप में देखना कबूल नहीं है. उन्होंने कहा कि जब झारखंड में पहली बार भाजपा की सरकार बनी तो बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन महज दो साल में ही उनको चलता कर दिया गया, उसके बाद अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन अर्जुन मुंडा को भी कभी भी पांच साल मुख्यमंत्री रहने दिया, भाजपा ने पूरे पांच साल मुख्यमंत्री पद पर रखा तो एक छत्तीसगढ़िया को. यही आदिवासियों मूलवासियों के प्रति भाजपा का नजरिया है. साफ है कि भाजपा कभी भी आदिवासी मूलवासियों का हितैषी नहीं हो सकता. उसकी सोच आदिवासी मूलवासियों को गुलाम बनाने की है.