रांची(RANCHI): बांग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा बनाकर संताल परगना में एनआरसी की मांग करते भाजपा को सीएम हेमंत सोरेन ने भाईचारा, अमन-शांति का दुश्मन करार दिया है. उन्होंने कहा है कि झारखंड में एनआरसी की मांग करते हुए भाजपा को सबसे पहले यह जवाब देना चाहिए कि मणिपुर में हिंसा क्यों भड़की? लाखों लोगों को वहां आज कैम्प में दिन काटना क्यों पड़ रहा है? लोग अपना घर द्वारा छोड़ कर भटक क्यों रहे हैं.
कौन है वह जो इन बांग्लादेशियों को देश की सीमा में प्रवेश दिला रहा है
उन्होंने कहा कि दरअसल झारखंड ही नहीं पूरे देश में आज भाजपा मुद्दा विहीन हो चुकी है, एक के बाद एक राज्य उसके हाथ से निकलते चले जा रहे हैं, और उसके द्वारा शासित राज्यों में हिंसा का तांडव हो रहा है, झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला उठाने वालों को पहले यह जवाब देना चाहिए कि सीमा की हिफाजत करना किसकी जिम्मेवारी है? कौन है वह जो इन बांग्लादेशियों को देश की सीमा में प्रवेश दिला रहा है? देश का गृह मंत्रालय क्या कर रहा है? क्या यह राज्य सरकार का दायित्व है कि वह देश के सीमाओं की रक्षा करें? बांग्लादेशी घुसपैठियों के सवाल पर हमसे सवाल पूछने के पहले भाजपा को गृह मंत्री से इसका जवाब मांगना चाहिए. लेकिन गृह मंत्रालय से इन सवालों का जवाब मांगने के बजाय भाजपा सोशल मीडिया में बांग्लदेशी घुसपैठ का मामला उठा रही है, और यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि यहां बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी आ रहे हैं.
हर बंगाली बांग्लादेशी नहीं
ध्यान रहे कि भाजपा के द्वारा संताल इलाके में बांग्लादेशी घुसपैठ का आरोप लगाया जा रहा है, उसका दावा है कि बांग्लादेशी इस इलाके में आकर सेटल हो रहे है, उनके द्वारा यहां के आदिवासी युवतियों के साथ शादी कर धर्मातंरण किया जा रहा है, जिसके कारण इस इलाके की जनसंख्या में बदलाव आ रहा है. यहां के मूल वासिंदे आदिवासी ही अब अल्पसंखयक होते जा रहे हैं.
प्रमाणित रुप से कोई भी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है
हालांकि इन दावों में कितनी सच्चाई है, इस बार में प्रमाणित रुप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, आम रुप में हर बांगला बोलने वालों को बांग्लादेशी मान लिया जाता है, जबकि झारखंड की सीमा पश्चिम बंगाल से लगती है, जिसके कारण काम काज की तलाश में बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल के नागरिक यहां आते रहते हैं, इस हालत में कौन पश्चिम बंगाल का है और कौन बांग्लादेश का कहना मुश्किल है. बड़ी बात यह है कि जिस धर्मातरण का दावा किया जा रहा है, उसकी कोई रिपोर्ट उस इलाके के थानों में दर्ज नहीं हो रही है, सिर्फ इक्का दुक्का घटनाओं को सामने रख हर बंगाली को बांग्लादेशी बताना तो आसान है, लेकिन कानूनी रुप से उसे साबित करना बेहद मुश्किल.