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समान नागरिक संहिता पर केन्द्रीय सरना समिति की चेतावनी, आदिवासी पंरपरा और रीति रिवाज से खिलवाड़ बर्दास्त नहीं

समान नागरिक संहिता पर केन्द्रीय सरना समिति की चेतावनी, आदिवासी पंरपरा और रीति रिवाज से खिलवाड़ बर्दास्त नहीं

रांची(RANCH)- 2024 लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ती नजर आ रही है, भाजपा समान नागरिक संहिता को 2024 के लोकसभा चुनाव में अपना मास्टर स्ट्रोक मान रही है, इसे एक उपलब्धि के बतौर पेश करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन देश की कई सामाजिक समूहों के साथ ही अब झारखंड के जनजातीय समाज के द्वारा भी इसका विरोध शुरु हो गया है.

केन्द्रीय सरना समिति ने सख्त अंदाज में आदिवासी परंपराओं, रीति रिवाज और लोकप्रथा से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ को मुंहतोड़ जवाब देने की चेतावनी दी है. आदिवासी संगठनों का दावा है कि समान नागरिक संहिता उनके प्रथागत कानूनों को कमजोर करने का षडंयत्र है और हम इसे किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देंगे. हमारे लिए हमारी प्रथा और पंरपरायें ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.

जनजाति सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य रतन तिर्की ने दावा किया है कि “हम न केवल विधि आयोग को ईमेल भेजकर अपना विरोध दर्ज कराएंगे, बल्कि जमीन पर भी विरोध प्रदर्शन करेंगे, हमारी रणनीतियां तैयार करने के लिए बैठकों की योजना बनाई जा रही है,' समान नागरिक संहिता संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के प्रावधानों को कमजोर करने की कोशिश है और हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे.

पांचवी और छठी अनुसूची पर खतरा

उन्होंने कहा कि पांचवीं अनुसूची झारखंड सहित आदिवासी बहुल राज्यों में अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित है. छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित प्रावधान हैं. समान नागरिक संहिता पांचवी और छठी अनुसूची को कमजोर करने का सुनियोजित षडयंत्र है.

ध्यान रहे कि यूसीसी से विरोध में यह झारखंड की पहली आवाज नहीं है, इसके पहले झारखंड में अल्पसंख्यकों की शिक्षा और अधिकारों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन ने भी विधि आयोग को एक ईमेल भेजकर इस पर अपना विरोध दर्ज करवाया था.

फ्रेंड्स ऑफ वीकर सोसाइटी ने जताया विरोध

जबकि रांची में फ्रेंड्स ऑफ वीकर सोसाइटी के अध्यक्ष तनवीर अहमद ने इसपर अपना  विरोध प्रकट करते हुए विधि आयोग को भेजे अपने इमेल में लिखा था कि “ यूसीसी को लेकर आम धारणा यह है कि यह उन व्यक्तिगत कानूनों को विस्थापित कर देगा जो सभी समुदायों के विवाह, तलाक, विरासत और अन्य पारिवारिक मुद्दों को नियंत्रित करता है. व्यक्तिगत कानून धर्म और समाज का एक अभिन्न अंग हैं. व्यक्तिगत कानूनों के साथ कोई भी छेड़छाड़ उन लोगों की संपूर्ण जीवन शैली में हस्तक्षेप करने के बराबर होगी जो पीढ़ियों से उनका पालन कर रहे हैं. भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और इसे ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे लोगों के धार्मिक और सांस्कृतिक लोकाचार को खतरा हो,”

आदिवासी समाज का आवाज माना जाता है केन्द्रीय सरना समिति

अब इन सारी विरोध की कड़ियों को आपस में जोड़कर देखे तो साफ है कि यूसीसी का विरोध सिर्फ अल्पसंख्यक समाज की ओर से ही नहीं किया जा रहा है, बल्कि एक विशाल जनजातीय समाज में इसके विरोध में खड़ा है, हालांकि इसकी शुरुआत अभी केन्द्रीय सरना समिति की ओर से की गयी है, लेकिन यहां ध्यान रहे कि यह वही केन्द्रीय सरना समिति है जो पूरे झारखंड और विशेष कर राजधानी रांची में आदिवासी पर्व त्योहारों का संचालन करती है. केन्द्रीय सरना समिति को आदिवासी समाज का आवाज माना जाता है.

Published at:03 Jul 2023 12:10 PM (IST)
Tags:Central Sarna Committee Uniform Civil Code playing with tribal traditions and customs is not toleratedRatan trikey protest against ucc Jharkhand
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