टीएनपी डेस्क(TNP DESK)- जातीय जणगणना के सवाल पर केन्द्र सरकार की उलझनें बढ़ती जा रही है. वह तय नहीं कर पा रही है कि वह जाना किधर चाहती है, हालांकि उसकी मंशा जातिगत सर्वेषण का विरोध का ही नजर आता है, लेकिन वह खुल कर इसका विरोध करना नहीं चाहती, और यही कारण है कि हलफनामा के बाद हलफनामा पेश कर रही है.
इसे जातीय जनगणना के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में उसके द्वारा पेश किये गये हलफनामें से समझा जा सकता है. दरअसल 21 अगस्त को जब जातीय जनगणना के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी, तब अचानक से इस मामले मे भारत सरकार का सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का आगवन होता है और उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में भारत सरकार का पक्ष रखे जाने के लिए अनुमति की मांग की जाती है, जिसके बाद कोर्ट की ओर से इसके लिए 28 अगस्त की तिथि निर्धारित कर दी जाती है और 28 अगस्त को केन्द्र सरकार के द्वारा एक हलफनामा पेश कर यह दावा किया जाता है कि सेंसस एक्ट 1948 के तहत केन्द्र को छोड़कर किसी राज्य को जातीय जनगणना या इससे मिलते-जुलते सर्वेक्षण करवाने का अधिकार नहीं है. लेकिन कुछ ही घंटों के बाद यह हलफनामा वापस ले लिया जाता है और एक नया हलफनामा पेश यह कहते उस पैरा को वापस ले लिया जाता है जिसमें यह दावा किया गया था कि राज्यों को जातिगत सर्वेक्षण करवाने का अधिकार नहीं, बदले पाराग्राफ में कहा जाता है कि राज्य चाहें तो जातिगत सर्वेक्षण कर सकते हैं लेकिन यह जातीय जगगणना नहीं होगा. इस प्रकार मात्र कुछ ही घंटों में केन्द्र सरकार अपने स्टैंड से पीछे हट गयी और इस बात को स्वीकार कर लिया कि राज्यों को अपने-अपने स्तर से जातीय सर्वेक्षण करवाने का हक है, हालांकि वह जातीय जनगणना नहीं कही जा सकती.
बिहार सरकार पहले ही कह चुकी है कि यह जाति आधारित सर्वेक्षण है ना कि जातीय जनगणना
यहां ध्यान रहे कि बिहार सरकार पहले यह कह चुकी है कि यह जातीय जनगणना नहीं बल्कि एक सर्वे हैं. इस प्रकार केन्द्र के इस स्टैंड से बिहार सरकार के जातिगत सर्वेक्षण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. लेकिन सवाल यहां यह खड़ा हो गया कि आखिर केन्द्र सरकार की वास्तविक मंशा क्या है. जानकारों का दावा है कि भाजपा किसी भी कीमत पर जातीय जनगणना के पक्ष में खडी नहीं हो सकती, क्योंकि इससे उसके अपने सवर्ण जनाधार को बिखरने का खतरा है, और यह रिस्क नहीं ले सकती, लेकिन इसके साथ ही यह संदेश देना भी नहीं चाहती कि वह जातीय जनगणना का विरोधी है, क्योंकि इससे उसके दलित पिछड़ा आधार को बिदकने का डर है. यही भाजपा की दुविधा है, और केन्द्र सरकार का बार बार हलफनामा बदलने का कारण भी.