Patna- जब से जातीय जनगणना की रिपोर्ट सामने आयी है, कई जातियों के नेताओं के द्वारा अपनी-अपनी जातियों की संख्या को कम कर दिखलाने का आरोप लग रहा है. इसकी पहली शुरुआत मुकेश सहनी की ओर से हुई, कुछ भूमिहार और राजपूत नेताओं के द्वारा भी यही दावा किया गया और अब उसी कड़ी में चिराग पासवान सामने आये हैं.
ऑस्ट्रेलिया की चकाचौंध में भी चिराग को आ रही है जाति की याद
हिन्दुस्तान की धरती से हजारों किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया की चकाचौंध में भी चिराग को जाति की याद आ रही है. वह वहां भी जाति की राजनीति से उपर नहीं उठ सकें, बिहार में अपने को दलितों का सबसे चमकदार चेहरा मानते रहे चिराग को इस बात की पीड़ा और आशंका है कि चाचा नीतीश ने जातीय जनगणना के नाम पर उनकी राजनीति को बांझ करने का खांचा तैयार कर दिया. और एक सोची समझी चाल के तहत रविदास जाति को उनके समझ लाकर खड़ा कर दिया. यही कारण है कि उनके द्वारा जातीय जनगणना रिपोर्ट की विश्वसनीयता को चुनौती दी जा रही है और बिहार में एक बार फिर से जाति आधारित गणना की मांग की गयी है.
ध्यान रहे कि जातीय जनगणना की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बिहार की कुल आबादी में कायस्थ- 0.60 फीसदी, कुर्मी- 2.87 फीसदी, कुशवाहा- 4.21 फीसदी, चंद्रवंशी- 1.64 फीसदी, धानुक- 2.13 फीसदी, धोबी- 0.83 फीसदी, नाई- 1.59 फीसदी, नोनिया- 1.91, कुम्हार- 1.40, पासी- 0.98, बढ़ई- 1.45, ब्राह्मण- 3.65, भूमिहार- 2.86, मल्लाह- 2.60, माली- 0.26, मुसहर- 3.08, राजपूत- 3.45, लोहार- 0.15, सोनार- 0.68, हलवाई- 0.60 फीसदी जबकि पासवान 5.31 फीसदी हैं.
आबादी के अनुपात में अभी नगण्य है मुसहर, दास और दूसरी दलित जातियों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व
यहां बता दें कि पांच फीसदी आबादी वाले पासवान जाति का बिहार की राजनीति में एक प्रकार का दबदबा है, जबकि उस अनुपात में मुसहर, रविदास, धोबी और पासी जाति का राजनीतिक प्रतिनिधित्व नगण्य है. चिराग को इस बात की आशंका है कि आने वाले दिनों में मुसहर, रविदास, धोबी और पासी जातियों की राजनीतिक प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी का दवाब बन सकता है, और ये जातियां सीएम नीतीश के आसपास गोलबंद हो सकती हैं.
केन्द्र से जातीय जनगणना करवाने की मांग कर सकते हैं चिराग!
चिराग का आरोप है कि जातीय जनगणना में पारदर्शिता का अभाव है, अधिकांश लोगों से उनकी जाति नहीं पूछी गयी. इन आंकडों के सहारे महागठबंधन की सरकार राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है. वास्तविक जनसंख्या की जानकारी के लिए सरकार को एक बार फिर से जातीय जनगणना करवानी चाहिए. यहां यह भी ध्यान देना चाहिए कि चिराग पासवान वर्तमान में एनडीए का हिस्सा है, और यदि केन्द्र सरकार चाह तो पूरे देश में एक साथ जातीय जनगणना करवा कर इस विवाद का समाधान कर सकती है, लेकिन ना तो भाजपा इस दिशा में कोई पहल करती नजर आ रही है, और ना खुद चिराग भाजपा से समर्थन के बदले इस प्रकार की कोई शर्त लगाते दिख रहे हैं.