Ranchi-राजनीति की डगर विद्रुपताओं से भरी होती है, यहां कदम-कदम पर साजिश और शतरंज की मोहरें आपका स्वागत करती मिलेगी. ध्यान हटा कि दुर्घटना घटी वाली कहावत सिर्फ ट्रक ड्राइवरों के लिए लागू नहीं होती, राजनीति के ड्राइविंग सीट पर बैठे सियासतदानों की आंखें भी उतनी ही चौकस होती है. यह उनकी काबिलियत और भविष्य को पढ़ने-सूघंने की क्षमता पर निर्भर है कि सियासत में रफ्तार क्या होने वाली है.
शतरंगी चालों के बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं से त्याग-समर्पण की आशा
हालांकि इन शतरंजी चालों के बजाय पार्टी कार्यकर्ताओं से त्याग और समर्पण की आशा की जाती है, और दावा किया जाता है कि किसी कार्यकर्ता की वफादारी को मापने का पहला पैमाना उसका समर्पण है, और यदि आप भाजपा में हैं, तब तो यह दावा और भी जोर-शोर से किया जायेगा, आपको समझाया जायेगा कि यह फैसला सिर्फ पार्टी करेगी कि किस कार्यकर्ता का कब, कहां और किसी रुप में उपयोग किया जाना है.
“उधारी” नेताओं की फौज खड़ी कर हेमंत को निपटाने का फैसला
ध्यान रहे कि तीन-तीन दशक से अपना खून-पसीना पार्टी को समपर्ति करते रहे कार्यकर्ताओं की एक बड़ी फौज भाजपा में हैं. जिनका सपना और विश्वास है कि पार्टी एक ना एक दिन उन्हें भी अवसर प्रदान करेगी, उन्हे भी फर्श से अर्स तक की सवारी का मौका मिलेगा, लेकिन लगता है कि झारखंड भाजपा ने अपने सभी समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर ‘उधारी” नेताओं की फौज खड़ी कर हेमंत सरकार को निपटाने का फैसला किया है.
अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी
दरअसल इस पूरी भूमिका को बांधने की एक खास वजह है, स्याह रात में जब पूरी राजधानी और भाजपा कार्यकर्ताओं की समर्पित फौज अपने-अपने विस्तर पर नींद की आगोश में जाने का इंतजार कर रही थी, आलस और उनींदा की अवस्था में करवटे बदल रही थी कि अचानक से यह खबर फैली की भाजपा नेता अश्विनी कुमार चौबे ने भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल को भाजपा प्रदेश अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष और विधायक दल के नेता अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाने का पत्र सौंप दिया है.
अटल-आडवाणी से लेकर मोदी-अडाणी तक की चर्चा तेज
इसके बाद भाजपा नेताओं और समर्पित कार्यकर्ताओं के द्वारा उसी स्याह रात में एक दूसरे को फोन कर इसकी पुष्टी की जाने लगी, जब हर तरफ से इस बात की तसल्ली होती कि खबर पूरी पक्की है या कच्ची, आधी रात गुजर चुकी थी. खैर, जैसे तैसे रात गुजरी, और सुबह -सुबह मोर्निंग वाक में कदम ताल करते हर किसी की जुबान पर अमर बाउरी की चर्चा थी, लोग अटल-आडवाणी से लेकर मोदी अडाणी तक भाजपा में आये परिवर्तन को लेकर अलग-अलग एंगल से चर्चा-परिचर्चा कर रहे थें. भाजपा में आये बदलाव की समीक्षा कर रहें थें.
बाबूलाल की पाठशाला में हुई अमर बाउरी की सियासी शिक्षा दीक्षा
यहां बता दें कि अमर बाउरी की राजनीति में इंट्री बाबूलाल की देन हैं. उनकी राजनीति शिक्षा दीक्षा बाबूलाल की सियासी पाठशाला में ही हुई है. जब भाजपा को डोमिसाइल की आग में झोंक कर बाबूलाल ने अपनी अगल पार्टी झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक का गठन किया था, तब पहली बार वर्ष 2014 में अमर बाउरी बाबूलाल के कंधी छाप की सवारी कर चंदनकियारी से विधान सभा पहुंचे थें.
पहले ही दे चुकें है बाबूलाल को गच्चा
लेकिन तब अमर बाउरी के साथ ही बाबूलाल के सात अन्य विधायक भी विधान सभा पहुंचने में सफल रहे थें. लेकिन बाबूलाल के इस ‘सतरंगी महल’ पर सीएम रघुवर दास की नजर लग गयी और बाबूलाल के आठ में छह विधायकों ने पाला बदल कमल का दामन थाम लिया. उसमें एक अमर बाउरी भी थें.
एक बार फिर से टूटता नजर आने लगा है बाबूलाल का सीएम बनने का सपना
अब इसी राजनीति की स्याह कुटिलता ही कहें कि पार्टी टूटने के बाद पानी पीकर-पीकर भाजपा के कोसने वाले और भाजपा में जाने के बजाय कुतुबमीनार से कूदने का दावा करने वाले बाबूलाल आज खुद भाजपा में हैं. और बाबूलाल के लिए उससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि जिस सीएम की कुर्सी का सपना दिखलाकर उन्हें भाजपा में शामिल करवाया गया था. अमर बाउरी की ताजपोशी के साथ ही उनका वह सपना भी टूटता नजर आने लगा है. क्योंकि राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो चुकी है कि बदली हुई राजनीति में भाजपा अमर बाउरी को सामने रख कर करीबन 12 फीसदी अनुसूचित जाति को साधना चाहती है.
क्या है भाजपा का सियासी गणित
ध्यान रहे कि झारखंड की गैर झारखंडी आबादी और सवर्ण वोटरों को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है, दोनों को मिलाकर यही करीबन 15 फीसदी के आसपास होता है, यदि इस 15 फीसदी के साथ 12 फीसदी अनूसूचित जाति का खड़ा हो जाता है तो यह 27 फीसदी हो जाता है, यदि इसके साथ आदिवासी और पिछड़ों का एक हिस्सा को खड़ा कर दिया जाय तो भाजपा करीबन 40 फीसदी के पास खड़ी हो सकती है. यही भाजपा का पूरा गुणा भाग है.
भाजपा के सियासी चाल में समर्पित कार्यकर्ताओं के सामने अस्तित्व का संकट
लेकिन इस पूरी कवायद में झारखंड भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं के सामने संकट खड़ा हो गया है, आज के दिन झारखंड भाजपा के सभी महत्वपूर्ण पद आयातित नेताओं की फौज खड़ी है. करीबन एक दशक के वनवास के बाद जैसे ही बाबूलाल की एक बार फिर से भाजपा में वापसी हुई, उनके सिर पर नेता विपक्ष का ताज सौंप दिया गया. हालांकि इस ताजपोशी में हेमंत ने कांटा फंसा दिया और अंतह: थक-हार कर उनके सिर पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी कर दी गयी. अब नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी भी एक दूसरे आयातित नेता अमर बाउरी सिर पर सौंप दी गयी है और रही सही कसर जेपी पटेल को पार्टी का मुख्य सचेतक बना कर पूरा कर दिया गया.
जेपी पटेल भी हैं झामुमो के प्रोडक्ट
यहां बता दें कि जेपी पेटल भी भाजपा के कोई समर्पित कार्यकर्ता नहीं है, इनकी इंट्री भी अर्जुन मुंडा की तरह ही झामुमो से हुई है. इनकी पहचान खुद के संघर्ष के बजाय टेकलाल महतो के पुत्र और मथूरा महतो के दामाद के रुप में कुछ ज्यादा ही हैं. यही कारण है कि भाजपा आलाकमान को यह विश्वास है कि जेपी पेटल को साध कर वह महतो और ओबीसी नेताओं को अपने पाले में ला सकता है.
आज झारखंड भाजपा के सभी महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं आयातित नेता
इस प्रकार पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर आयातित नेताओं को बिठाकर भाजपा ने प्रकारांतर से अपने समर्पित नेताओं को यह संदेश दे दिया है कि हेमंत के किले को ध्वस्त करने तुम्हारे बस की बात नहीं है, अब इन्ही आयातित नेताओं की फौज को हरो हथियार से लैस कर हेमंत की राजनीति को ध्वस्त किया जायेगा, जिस आदिवासी मूलवासी राजनीति का उभार झामुमो के द्वारा किया जा रहा है, उसकी काट भाजपा को इन्ही चेहरों में नजर आ रही है.