TNP DESK- जिस जातीय जनगणना के सवाल को उछाल कर सीएम नीतीश और राहुल गांधी पूरे देश में ओबीसी-दलितों की सत्ता में हिस्सेदारी-भागीदारी के सवाल अपनी सियासी पिच तैयार कर रहे थें, अब उसी पिच पर खेलते हुए भाजपा ने राहुल गांधी और सीएम नीतीश को सियासी एजेंडे पर सर्जिकल स्ट्राइक मारा है, पहले छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरा खड़ा कर दलितों की उपेक्षा के आरोप को जमींदोज करना और अब मध्यप्रदेश की कमान मोहन यादव के हाथों में सौंप कर मध्यप्रदेश की 14 फीसदी यादव जाति को एक ही झटके में अपने पाले में खड़ा करना, बदले भाजपा की एक नयी कहानी बंया कर रहा है.
यह बदलाव क्यों
हालांकि यह सवाल खड़ा किया जा सकता है कि भाजपा के अंदर इस बदलाव का कारण क्या है, विष्णुदेव से लेकर मोहन यादव की ताजपोशी के पीछे असली ताकत किसकी है. क्या जातीय जनगणना के सवाल को सामने देख कर भाजपा के अंदर एक प्रकार की बेचैनी है, क्या वह वास्तव में जातीय जनगणना की मांग के आगे वह हांफती नजर आ रही है, क्या सीएम नीतीश का एजेंडा कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के अंदर काम करती नजर आ रही है. यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस जातीय जनगणना के सवाल को राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बनने के पहले तक भाजपा को अपने पिछड़े-दलित नेताओं की याद क्यों नहीं आ रही थी, यह प्रयोग तब क्यों नहीं किया जा रहा था. क्या भाजपा के अंदर आ रहे इस बदलाव का श्रेय सीएम नीतीश और राहुल गांधी को नहीं दिया जा सकता? अब इस तरह के कई सवाल सियासी गलियारों में तैरने लगे हैं.
मोहन यादव को आगे कर उत्तर प्रदेश और बिहार में खिल सकता है कमल
लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि अब भाजपा मोहन यादव को आगे कर उत्तर प्रदेश और बिहार में कमल खिलाने का एक्शन प्लान तैयार कर चुकी है, निश्चित रुप से भाजपा अब मोहन यादव के चेहरे को सामने रख कर यादवों को एक संदेश देने की कोशिश करेंगे, लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि इन दोनों ही राज्यों में पहले से ही अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे कद्दावर नेता मौजूद हैं. अब सीधा सा सवाल है कि बिहार यूपी के यादव जाति के मतदाता अपने इस मजबूत चेहरो को छोड़ कर भाजपा के साथ क्यों जायेगी. लेकिन इतना तय है कि कम से कम मध्यप्रदेश में यादवों की 14 फीसदी आबादी भाजपा के साथ मजबूती के साथ खड़ी हो सकती है, हालांकि यह सिक्के का एक पहलू है, भाजपा को जितना लाभ मोहन यादव की ताजपोशी से होनी वाली, दूसरे समीकरणों में बदलाव से करीबन उतना ही नुकसान भाजपा को झेलना पड़ सकता है.
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