TNPDESK- चुनाव अभियान समिति और घोषणा पत्र समिति से पूर्व मुख्यमंत्री बसुंधरा राजे की छुट्टी कर भाजपा ने इस दावे पर मुहर लगा दी है कि अमित शाह और जेपी नड्डा की जोड़ी राजस्थान की राजनीति से बंसुधरा की विदाई चाहती है.
यहां याद दिला दें कि यह वही वसुंधरा है, जिसके पर कतरने की कोशिश पूर्व भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के जमाने में भी की गयी थी, लेकिन अपनी राजनीति और रणनीति के बल पर वसुंघरा ने राजनाथ सिंह को अपना कदम पीछे हटाने को मजबूर कर दिया था, वह खुले बगावत पर उतर गयी थी और अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली में डेरा जमा दिया था और आज भी वसुंधरा राजस्थान की राजनीति में केन्द्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप को सहन करने को तैयार नहीं है, काफी लम्बे अर्से से पीएम मोदी और अमित शाह के साथ वसुंधरा की खटपट की खबरें आ रही थी, इस बीच सीएम गहलोत ने यह दावा कर भाजपा को और भी फंसा दिया कि यह वसुंधरा ही थी, जिसके सहयोग से उनकी सरकार बची थी और सचिन पायलट की बगावत बेकार गयी थी.
वसुंधरा को लेकर सचिव पायलट काफी मुखर रहे हैं
यहां याद रहे कि वसुंधरा को लेकर सचिव पायलट काफी मुखर रहे हैं, अशोक गहलोत के उपर सचिन पायलट का सबसे बड़ा आरोप यह है कि वह वसुंधरा सरकार में किये गये भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का काम करते हैं, और इस आरोप में कुछ सच्चाई भी नजर आती है, क्योंकि वसुंधार राजे सरकार के खिलाफ तमाम आरोप के बावजूद अशोक गहलोत की सरकार ने कोई बड़ा एक्शन नहीं लिया, और बसुंधरा भी पूरे पांच साल तक अपनी पारी आने का इंतजार करती रही.
राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा और अशोक गहलोत के बीच एक गुप्त समझौता
दरअसल दावा किया जाता है कि राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत और वसुंधरा के बीच एक गुप्त समझौता है कि राजस्थान की सत्ता इन्ही दोनों के पास रहेगी और वक्त वे वक्त दोनों एक दूसरे का साथ निभाते रहेंगे. और अब जबकि भाजपा ने वसुंधरा की विदाई का संकेत दे दिया है, माना जा रहा कि बहुत जल्द ही बसुंधऱा का पलटवार आ सकता है, हालांकि अभी वसुंधरा दिल्ली में ही मौजूद हैं, दावा किया जा रहा कि उन्होंने केन्द्रीय नेतृत्व को साफ कर दिया है कि उनका राजस्थान की राजनीति से रिटायर होने का कोई इरादा नहीं है, और वह महज उपाध्यक्ष बनकर चुप रहने वाली नहीं है, अब देखना होगा कि वसुंधरा का अगला कदम क्या होगा, लेकिन इतना साफ कि राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा का अपना वजूद है, और यह वजूद तब से है, जब अमित शाह, जेपी नड्डा और खुद पीएम मोदी का केन्द्रीय राजनीति में कोई दखल नहीं था.