Ranchi-जैसे जैसे मुकाबले की तारीख नजदीक आती जा रही है, डुमरी की लड़ाई एक रोचक मोड़ लेता नजर आने लगा है. जंगे मैदान की कमान भले ही आजसू के हाथ में सौंप दी गयी हो और सुदेश महतो दिन रात एनडीए की जीत के लिए अपना खून-पसीना भी बहा रहे हों. कार्यकर्ताओं की लम्बी चौड़ी फौज उतारी जा रही हो, लेकिन भाजपा की उदासीनता से आजसू कार्यकर्ताओं की धड़कने तेज होती जा रही है. जंगे मैदान में उतरने के पहले आजसू को जो लड़ाई इंडिया बनाम एनडीए की लड़ाई नजर आ रही थी, अब वही लड़ाई उन्हे आजसू बनाम इंडिया की बनती नजर जा रही है, और रोचक बात यह है कि सारे तीर खंजर भले ही सुदेश महतो के हाथ में सौंप दी गयी हो, लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं की पूरी फौज या तो इस लड़ाई तो तटस्थ हो कर देख रही है या बेबी देवी के साथ जीत का जश्न मनाने की तैयारी में व्यस्त है.
भाजपा की ट्रिप में फंस गयी आजसू
जानकारों का मानना है कि आजसू यहां भाजपा की ट्रिप में फंस गयी और उसे जानबूझ कर इस अभेद किले को ध्वस्त करने की जिम्मेवारी सौंप दी गयी. भाजपा को पता था कि रामगढ़ फतह के बाद आजसू के हौसले सातवें आसमान पर है. इस जीत के साथ वह अपने को झारखंड का बड़ा खिलाड़ी मान बैठी है, यदि उसे ठोकर नहीं लगा तो झारखंड की राजनीति में भाजपा के लिए सिकुड़न का दौर शुरु हो जायेगा. इसी सोच के साथ भाजपा ने डुमरी के मैदान में आजसू को उतारने का एलान कर दिया, जबकि वह खुद भी यहां मजबूत खिलाड़ी थी. लेकिन उसे पत्ता था कि टाईगर जगरनाथ की मौत के बाद टाईगर के गढ़ में चुनौती देना एक आत्मघाती कदम है और खास कर तब जब वह चार-चार उपचुनावों में लगातार हार का स्वाद चख चुकी है, उसके बाद छठी हार को अंगीकार करना राजनीतिक अदूरदर्शिता होगी
आजसू की जीत भाजपा के लिए खतरा
बावजूद इसके यदि डुमरी उपचुनाव के नतीजे अप्रत्याशित आते हैं, और इंडिया गठबंधन को हार का सामना करना पड़ता है, तो इसका सबसे बड़ा सदमा भाजपा को लगेगा, क्योंकि उसके बाद जीत दर जीत हासिल कर सुदेश महतो भाजपा की आंखों में आंख डाल कर अपनी शर्तों पर डील करने की स्थिति में खड़े हो जायेंगे. और भाजपा के लिए यह एक शर्मनाक स्थिति होगी. भाजपा जैसे राष्ट्रीय पार्टी इस फजीहत तक उतरने को कतई तैयार नहीं होगी.