रांची(RANCHI)- 2024 से पहले हर पार्टी अपने-अपने समर्थक सामाजिक समूहों को एकजूट करने की तैयारी में है. सामाजिक गोलबंदी तैयार की जा रही है, मुद्दे तलाशे जा रहे हैं, गड़े मुद्दों को झाड़ पोछ कर निकालने की तैयारी की जा रही है. कुछ इसी तरह की कोशिश बिहार की राजनीति में भी जारी है.
जहां भाजपा अपने पुराने फार्मूले के तहत धार्मिक गोलबंदी और हिन्दूत्व के आसरे मैदान जीतने की तैयारी में है, हालांकि इसके साथ ही सामाजिक जुगलबंदी की कोशिश भी की जा रही है, उसकी कोशिश नीतीश कुमार के लव कुश समीकरण में दरार डालने की है.
जातीय जनगणना को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में जदयू राजद
वहीं राजद-जदयू जातीय जनगणना के सवाल को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है, जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने जातीय जनगणना के सवाल पर भाजपा पर दोहरा स्टैंड लेने का आरोप लगाया है, उन्होंने कहा कि एक तरफ भाजपा विधान सभा के अन्दर इसका समर्थन करती है, वहीं अपने लोगों को कोर्ट भेज कर जातीय जनगणना के खिलाफ साजिश रचती है, और कोर्ट के द्वारा जातीय जनगणना पर रोक लगाने पर मिठाई बांटती है. जातीय जनगणना के मुद्दे पर उसका दोमुहापन उजागर हो चुका है, जदूय भाजपा के इस दोहरे स्टैंड को लेकर लोंगों के बीच जायेगी. कोर्ट का फैसला अपनी जगह, हम कोर्ट और कोर्ट के बाहर इसकी लड़ाई लड़ेंगे और जातीय जनगणना होकर रहेगा, लेकिन जनता की न्यायालय में भाजपा का चेहरा बेनकाब जरुर करेंगे.
कर्पुरी ठाकुर को भारत रत्न क्यों नहीं जवाब दे भाजपा
नीरज कुमार कहते हैं कि जिस प्रकार भाजपा ने कक्षा एक से लेकर आठ तक के पिछड़ा और अति पिछड़ा जातियों के छात्रों का छात्रवृत्ति को समाप्त किया, बाबू जगजीवन राम के नाम पर संचालित छात्रावास योजना को बंद किया, उसके बाद भाजपा का दलित-पिछड़ा विरोधी चेहरा सबके सामने आ चुका है. जननायक कर्पुरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग अब तक क्यों अनसुनी की गयी, भाजपा को इसका जवाब देना होगा.
भाजपा के धार्मिक उन्माद का जवाब राजद का अम्बेडकर परिचर्चा
जबकि राजद 21 मई से ही हर प्रखंड में अम्बेडकर परिचर्चा का आयोजन कर जातीय जनगणना के सवाल को गांव गांव तक पहुंचाने में जुटी हुई है. यह कार्यक्रम 28 मई तक चलेगा, जबकि आरजेडी युवा प्रकोष्ठ की ओर से 5 जून को बिहार के हर जिलें में जातीय गणना की मांग को लेकर धरना कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा. आरजेडी के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी की सरकार में मौलिक अधिकारों को कोई मतलब नहीं रह गया है, जीवन जीने के अधिकार और अभिव्यक्ति के अधिकार कुचले जा रहे हैं, यह सरकार बनाने और हटाने की लड़ाई नहीं होकर देश बचाने की लड़ाई है, संविधान बचाने की लड़ाई है, और इसके लिए बाबा साहेब अम्बेडकर का रास्ता ही एकमात्र विकल्प है.