Patna-इतिहास की भी अपनी गति और प्रवाह होता है, 1980 के दशक से कांग्रेस शासित सरकारों के द्वारा कुड़ेदान में रखे गयी पिछड़ी जातियों के आरक्षण के प्रस्ताव को जब 1990 में प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने चौधरी देवीलाल के सियासी चाल के काट के रुप में बतौर मास्टर स्ट्रोक लोकसभा से पारित करने का निर्णय लिया, तो हिन्दुस्तान की राजनीति में भूचाल आ गया, सवर्ण छात्रों में आत्मदाह होड़ लग गयी, जिस मीडिया ने वीपी सिंह को “राजा नहीं फकीर है, इस देश की तकदीर है” के नारे के साथ हिन्दुस्तानी अवाम के दिलों में बसाया था, वही मीडिया ‘राजा नहीं यह रंक है, देश का कलंक है’ की अखबारी सुर्खियों के साथ वीपी सिंह को बर्बादी का सूत्रधार बताने लगा. हालांकि एक सत्य यह भी है कि राष्ट्रीय मोर्चा की जिस सरकार का नेतृत्व वीपी सिंह कर रहे थें, मंडल कमीशन लागू करना उसका चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा था, लेकिन ऐसा लगता है कि तब अभिजात्य समूहों से आने वाले सियासतदानों ने यह मान लिया था कि यह तो महज एक औपचारिकता है, कोई भी सरकार मंडल कमीशन की इस अनुशंसा को लागू करने को जोखिम नहीं ले सकती.
आडवाणी पर लगा था छात्रों को आत्म हत्या के लिए भड़काने का आरोप
ध्यान रहे कि तब भाजपा और उसके नेता आडवाणी के विरुद्ध आत्मदाह की राह पकड़े सवर्ण जातियों के छात्रों को उकसाने का आरोप लगा था, दावा किया गया था कि इन छात्रों को भाजपा का समर्थन प्राप्त है, और भाजपा अपने सियासी लाभ के लिए इन छात्रों को बलि का बकरा बना रही है और इसके मुख्य सूत्रधार आडवाणी हैं. हालांकि इस आत्म दाह के पीछे आडवाणी की क्या भूमिका थी, वह आज भी विवादस्पद है, लेकिन इतना साफ है कि तब भाजपा पिछड़ों के आरक्षण के विरोध में खड़ी थी और इस मंडल की काट के लिए आडवाणी ने बड़ी ही चतुराई से कमंडल की यात्रा का श्रीगणेश किया था.
देखिये, कितना बदला मंडल की राजनीति के बाद सियासत का चेहरा
लेकिन करीबन तीन दशकों के बाद आज भी हिन्दुस्तान की सियासत में इन दोनों धाराओं की मौजदूगी मजबूत है. इस बीच गंगा यमुना में ना जाने कितने पानी बह गयें. सियासत की धार भी बदल गयी, जिस मंडल विरोधी आन्दोलन मे भाजपा अपनी राजनीतिक विस्तार ढूढ़ रही थी, आज उस भाजपा की अपनी ही राजनीति मंडलवादी होती नजर आ रही है, नहीं तो उस मंडलवादी राजनीति के पहले इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि पीएम की कुर्सी पर कभी कोई पिछड़ा भी बैठ सकता है, और राज्यों की बात तो अलग, तब राज्यों की राजनीति में भी पिछड़े दूर दूर तक कहीं दिखलाई नहीं पड़ते थें, लेकिन उस मंडल की राजनीति के बाद खुद भाजपा के अंदर से कल्याण सिंह, उमा भारती से लेकर शिवराज सिंह चौहान का उदय हुआ. यदि बात विपक्षी दलों की करें तो लालू-नीतीश और मुलायम से लेकर भूपेश बघेल, अशोक गहलोत, और सिद्दारमैया का चेहरा भी सामने आया. मायावती और अखिलेश यादव ने भी अपना जलवा दिखलाया, शिबू सोरेन से लेकर हेमंत सोरेन राजनीति के शीर्ष पर छा गयें.
बावजूद इसके देश की सियासत में मंडल कमंडल की यह राजनीति आज भी अपनी पूरी प्रखरता के साथ एक दूसरे के सामने खड़ी है और वक्त का पहिया इस कदर तक घूम चुका है कि वह भाजपा जो कभी वीपी सिंह को राजा नहीं रंक है, देश का कलंक बता रही थी, आज वही भाजपा यह दावा करने से पीछे नहीं हट रही है कि मंडल कमीशन की वह अनुशंसा तो वीपी सिंह सरकार में भाजपा को शामिल रहते हुए किया गया था, इसका श्रेय जितना जनता दल परिवार के बाकी दलों को जाता है, उनकी भी हिस्सेदारी उतनी भी बनती है.
मंडल कमीशन का श्रेय लेने की होड़ में सड़क पर भाजपा राजद विधायकों की जुबानी जंग
यहां बता दें कि आज भी बिहार विधान सभा की गेट पर मंडल कमीशन पर श्रेय लेने की होड़ में जुबानी भिड़त हो गयी. भाजपा विधायक कुंदन सिंह ने दावा कर दिया कि जब इस मंडल कमीशन को लागू किया था तो भाजपा उस सरकार का हिस्सा थी, इसके उलट राजद विधायक विजय मंडल ने यह दावा कर कुंदन सिंह को लताड़ लगायी कि वीपी सिंह ने तो गरीब पिछड़ों को आरक्षण लाया था, आपकी सरकार को दस फीसदी वाले सवर्ण जातियों के लिए दस फीसदी का आरक्षण लेकर आयी है, आप किस मुंह से मंडल कमीशन पर अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं, विजय सिंह यहीं नहीं रुके, उन्होंने वीपी सिंह की उस सरकार को गिराने की पूरी कहानी बताते हुए यह दावा भी किया जब वीपी सिंह ने इस मंडल कमीशन की अनुशंसा को लागू किया था, भाजपा ने ही इसकी काट में राम रथ यात्रा का श्रीगणेश कर पूरे देश में बवाल की स्थिति पैदा की थी, और अंतत: सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.
जातीय जनगणना और पिछड़ों के आरक्षण के सवाल पर फंसती नजर आ रही है भाजपा
दरअसल जातीय जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन और उसके बाद पिछड़ी अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण विस्तार के फैसले के बाद भाजपा को यह एहसास हो चला है कि नीतीश के इस मास्ट्रर स्ट्रोक में उसकी सियासी जमीन हिल चुकी है, और यही कारण है कि वह किसी भी हालत में अपने आप को जातीय जनगणना और पिछड़ो के लिए आरक्षण विस्तार का विरोधी साबित नहीं करना चाहती, लेकिन भाजपा की मुसीबत यह है कि जिस जातीय जनगणना को वह बिहार में समर्थन देने का दंभ भरती है, उसी जातीय जनगणना की मांग को वह केन्द्र् के स्तर पर नकारती नजर आती है, खुद पीएम मोदी जातीय जनगणना को हिन्दूओं को बांटने की कवायद बता चुके हैं. उनका दावा है कि हिन्दुस्तान में सिर्फ दो जाति निवास करती है, एक गरीब और दूसरा अमीर, लेकिन उधर राहुल गांधी अडाणी प्रकरण पर उनकी बखिया उधेड़ कर इस छवि को तार तार कर देते हैं, दूसरी ओर अमित शाह उस तेलांगना में जाकर इस बात की घोषणा कर जाते हैं कि यदि हमारी सरकार बनी तो यहां सीएम कोई पिछड़ा होगा, लेकिन हकीकत यह है कि तेलांगना में आज के दिन भाजपा अपना खाता खोलने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है, और सबसे बड़ी बात यह कि यदि देश मे सिर्फ अमीर गरीब की ही जात होती है तो पीएम मोदी अपने आप को पिछड़ा का बेटा कैसे बताते हैं. इन सवालों का जवाब फिलहाल भाजपा की ओर से निकलता नजर नहीं आता.
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