टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : चार राज्यों के विधानसभा चुनावी नतीजे आने का सिलसिला लगातार जारी है. जिसमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा चुनावों के परिणाम जल्द ही स्पष्ट हो जाएंगे. लेकिन रिजल्ट आने के पहले ही रुझानों के मुताबिक यह साफ है कि तीन राज्यों में राजस्थान, छत्तीसगढ़ औऱ मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार बननी लगभग तय है. वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस बढ़त बनाए हुए है. लेकिन सबसे दिलचस्ब बात यह है कि चुनाव के परिणाम के बीच I.N.D.I.A गठबंधन ने अपने चौथे बैठक की तारीख की घोषणा कर दी है. जानकारी के अनुसार 6 दिसंबर को एलांयस के सभी नेताओं को कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने दिल्ली आमत्रित किया है.
ध्यान दे की इंडिया गठबंधन की जब चौथी बैठक होनी थी. तब कमलनाथ ने साफ तौर पर यह कहते हुए इंडिया गठबंधन से दुरी बना ली थी. उन्होंने कहा था कि उन्हें फिलहाल पांच राज्यों में ध्यान देना है.लेकिन पांच में से तीन राज्यों में कांग्रेस की तय फजीहत के बीच मल्काअर्जून खड़गे को इंडिया गठबंधन की याद आना कई सवाल खड़े कर रहे है. यहां ध्यान रहे कि बेंगलुरु बैठक के बाद इंडिया गठबंधन की और से भोपाल में एक बड़ी रैली करने की तैयारी थी. लेकिन दवा किया जाता है कि कांग्रेस के धुरंधर नेता कमनाथ भाजपा के उग्र हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व की तैयारी करते नजर आ रहे थे. कमनाथ की बाबा बागेश्वर नाथ के साथ एक तस्वीर वायरल हो रही थी.
साफ है कि कमलनाथ को इस बात का डर था कि इंडिया गठबंधन की भोपाल रैली से उनके इस सॉफ्ट हिंदुत्व के चेहरे में दरार आएगी. जबकि दूसरी और राहुल गांधी जातीय जनगणना औऱ पिछड़ा कार्ड खेल कर भाजपा के उग्र हिंदुत्व का मुकाबले की रणनीति तैयार कर रहे थे. इस प्रकार कांग्रेस के अंदर विचार धारा के स्तर पर द्वंद दिख रहा था. कहा जा सकता है कि एक तरफ कमलनाथ के रूप में कांग्रेस का वह सामती चेहरा भी था. जो कांग्रेस के गौरव पूर्व इतिहास से बाहर आने को तैयार नहीं था. जबकि दूसरी ओर राहुल गांधी पिछड़ों के पोस्टर बॉय औऱ हिंदुत्व का चेहरा पीएम मोदी के बरकश बदली हुए परिस्थितियों में पिछड़ा वाद का कार्ड खेलने की तैयारी में थे. औऱ कांग्रेस इस द्वंद से बाहर नहीं निकल सकी. यह भी माना जा सकता है कि कमलनाथ की जीत के आगे राहुल गांधी को सरेंडर करना पड़ा. कुछ यहीं हालत राजस्थान की थी, राजस्थान में भी यह जानते हुए की हर पांच साल के बाद सत्ता बदलने का प्रचलन है. अशोक गहलोत दलित आदिवासी समुहों से आने वाले छत्रकों के साथ सत्ता की रेवड़ी बाटने को तैयार नहीं थे. औऱ इसकी अंतिम परिनती यह होगी की दलितों का राष्ट्रीय स्तर पर दलित राजनीति में अपनी दस्तक देते चंद्रशेखर रावण की आजाद पार्ची ने करीबन 100 सीटों पर अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया.
इधर सपा प्रमुख अखिलेश यादव और नीतीश कुमार ने मध्यप्रदेश के दंगल में अपने करिबन सौ-सौ प्रत्याशी को उतार दिया. अब इस चुनौती को इश रूप में देखे. अब तक कि मिली जानकारी के अनुसार दोनों ही राज्यों में एक बहुत बड़ी सिटों की संख्या कांग्रेस के हाथ से दो हाजर से तीन हजास वोटों से निकलती नजर आ रही है. साफ है कि अखिलेश यादव नीतीश कुमार औऱ चंद्रशेखर रावण के वोट गए वह वोट कांग्रेस का हिस्सा हो सकता था. दूसरी और भाजपा ने कई छोटे-छोटे पार्टियों से गुप्त या अगुप्त समझोता किया. अब सवाल यह है कि कांग्रेस की इस रणनीती का निरमाता कौन है, खुद राहुल गांधी मल्कार्जूण खड़गे, या कमनाथ औऱ अशोक गहलोद. इंडिया गठबंधन की जो बैठक होगी वह होगी. लेकिन उसके पहले कांग्रेस को अपने अंदर की चुनौती पर विचार करना चाहिए. कांग्रेस राहुल के नैत्रित्व में चलेगा या कमलनाथ औऱ उनके जैसे चुके हुए तिरों के साथ यहां यह भी याद रहे यह वहीं कमलनाथ है जो पिछली बार अपने विधायकों को साथ रखने में विफल हुए थे. औऱ भाजपा बड़ी आसानी से विधायकों को तोड़ ले गई थी.
23 जून को पटना में हुई थी पहली बैठक
जानकारी हो कि 2024 में प्रधानमंत्री के सामने खड़े होने के तमाम विपक्षी पार्टी एक मंच पर आई है. विपक्षी एकता की ये मुहिम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा शुरू की गई थी. जिसमें नीतीश कुमार ने तमाम छोटे-बड़े दल के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें अपने साथ आने का न्योता दिया था. इसके बाद नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की पहला बैठक 23 जून को पटना में हुई. जिसमें 15 दल शामिल हुए. इसके बाद दूसरी बैठक 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में हुई. जहां 26 दल एक साथ आए थे. तीसरी बैठक 31 अगस्त-1 सितंबर को मुबंई में हुई. यहां 28 दल पहुंचे थे. वहीं 6 दिसंबर को दिल्ली में होने वाली बैठक में सभी 28 दलों को मीटिंग के लिए बुलाया है.