Ranchi-बोरियो से झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने राजमहल लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान किया है, इसके साथ ही राजमहल में विजय हांसदा के विजय रथ की मुश्किलें बढ़ती नजर आने लगी है, ध्यान रहे कि इस सीट पर झामुमो ने कल ही निर्वतमान सांसद विजय हांसदा को एक बार फिर से मैदान में उतराने का एलान किया था, जबकि भाजपा ने बोरियो विधान सभा से भूतपूर्व विधायक ताला मरांडी पर दांव खेला है, बोरियो विधान सभा में लोबिन हेम्ब्रम और ताला मरांडी के बीच सियासी प्रतिद्वन्धिता का इतिहास काफी पुराना है, अब लोबिन के इस घोषणा के बाद दोनों एक बार फिर से राजमहल लोकसभा के मुकाबले में एक दूसरे के सामने खड़े होंगे, लेकिन बड़ा सवाल झामुमो की ओर से मैदान में उतारे गये, विजय हांसदा को लेकर है, लोबिन की इंट्री के बाद राजमहल में अब यह मुकाबला त्रिकोणीय शक्ल अख्तियार कर सकता है.
त्रिकोणीय मुकाबलें तब्दील हो सकती है राजमहल की लड़ाई
लोबिन की इंट्री के बाद राजमहल सीट पर भी इंडिया गठबंधन की राह मुश्किल हो सकती है. यहां बता दें कि विजय हांसदा की उम्मीदवारी का एलान के पहले ही लोबिन हेम्ब्रम ने राजमहल सीट से चुनाव लड़ने की ख्वाहीश जाहीर की थी, उन्होंने अपनी इस सियासी चाहत से सीएम चंपाई के साथ ही झामुमो को भी अवगत कर दिया था, लोबिन का दावा था कि इस बार विजय हांसदा को लेकर इलाके में नाराजगी है, और यदि विजय हांसदा के कारण झामुमो यह सीट गंवा देती है, तो इसके कारण पार्टी की छवि को गहरा आघात लग सकता है. क्योंकि संथाल को झामुमो का गढ़ माना जाता है, यदि वह अपने गढ़ में ही अपनी जीती हुई सीट गंवा बैठती है, तो इसका बड़ा सियासी संदेश जायेगा, और वह पार्टी को इस फजीहत का सामना करते नहीं देख सकतें. बावजूद इसके पार्टी ने लोबिन के बजाय विजय हांसदा पर भरोसा जताया और उम्मीदवारी का एलान कर दिया. जैसे ही लोबिन को इसकी खबर मिली, बिना देरी किये मैदान में उतरने का एलान कर दिया.
बेहद पुरानी है ताला मरांडी और लोबिन की सियासी भिड़ंत
यहां याद रहे कि लोबिन उसी राजमहल संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बोरियो विधान सभा से विधायक है. राजमहल लोकसभा से भाजपा के उम्मीदवार बनाये गये ताला मरांडी के साथ सियासी भिड़त का लम्बा इतिहास रहा है, इसी ताला मरांडी के हाथों उन्हे वर्ष 2005 और 2014 में पराजय का सामना भी करना पड़ा है. जहां तक राजमहल लोकसभा की बात है तो इसके अंतर्गत विधान सभा की कुल छह सीटें आती है, इसमें अभी राजमहल पर भाजपा(अनंत ओझा), बोरियो-झामुमो (लोबिन हेम्ब्रम), बरहेट झामुमो ( हेमंत सोरेन), लिटिपार-झामुमो (दिनेश विलियम मरांडी), पाकुड़- कांग्रेस ( आलमगीर आलम) और महेशपुर- झामुमो (स्टीफन मरांडी) का कब्जा है, यानि कुल छह विधान सभा में से पांच पर कांग्रेस और झामुमो का कब्जा है, निश्चित रुप से इस आंकड़े के साथ महागठबंधन की पकड़ मजबूत नजर आती है, लेकिन सवाल यह है कि यदि बगावत की आवाज घर से उठने लगे तो विरोधी खेमा में जश्न पर आपत्ति क्यों होगी?
क्या लोबिन की इंट्री से बिगड़ जायेगा झामुमो का खेल
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि क्या लोबिन की इंट्री से झामुमो का खेल बिगड़ सकता है. तो इसके लिए राजमहल सीट पर अब तक हुए सियासी भिडंत के नतीजों पर विचार करना होगा, वर्ष 2019 में इस सीट से विजय हांसद के विजय रथ को रोकने की जिम्मेवारी झामुमो से कमल की सवारी करने वाले हेमलाल मूर्मू पर थी, तब विजय हांसदा हेमलाल मुर्मू को करीबन एक लाख मतों से मात दी थी. जबकि 2014 में विजय हांसदा ने हेमलाल मुर्मीको करीबन 40 हजार मतों से शिकस्त दिया था, और इन नतीजों के बाद हेमलाल मुर्मू ने घर वापसी में ही अपना सियासी भविष्य देखा. और हेमलाल की इस घर वापसी के बाद भाजपा ने इस बार तालामरांडी को मैदान में उतारा है. इस हालत में लोबिन हेम्ब्रम कोई बड़ा संकट खड़ा कर पायेंगे, ऐसा संभव नहीं दिखता, बहुत संभव है कि इस बगावत के बाद लोबिन को इसकी कीमत भी चुकानी पड़े.
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