रांची(RANCHI)- वर्ष 2005 में नौजवान संघर्ष मोर्चा के बनैर तले विधान सभा पहुंचने वाले भवनाथपुर विधायक भानु प्रताप शाही ने वर्ष 2014 में मोदी लहर पर सवार होना बेहतर समझा, और वह भाजपा की सवारी कर बैठें. लेकिन लगता है कि अब उन्हे झारखंड और देश की बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों का भान हो रहा है, भानू प्रताप को इस बात का भी एहसास हो चला है कि भवनाथपुर का सामाजिक समीकरण उन्हे कमल की सवारी की इजाजत नहीं देता और इसके साथ ही भानु प्रताप शाही ने भवनाथपुर के सामाजिक समीकरण को साधने की कवायद शुरु कर दी है.
इसी कड़ी में भानुप्रताप शाही ने राजधानी रांची में पूर्व प्रधान मंत्री और देश में सूचना क्रांति के जन्मदाता राजीव गांधी का आदमकद प्रतिमा लगाने की घोषणा की है, उनके इस कदम ने भाजपा खेमे में राजनीतिक सरगरमी तेज कर दी है. भानु के बदले सूर को समझने की कोशिश की जा रही है.
भानु प्रताप शाही का दावा
हालांकि भानु प्रताप शाही इसके पीछे किसी भी राजनीति से इंकार कर रहे हैं, उनका दावा है कि वह महज अपने मृत पिता की भावनाओं का सम्मान कर रहे हैं, यहां बता दें कि भानू प्रताप शाही के पिता पूर्व मंत्री हेमेंद्र प्रताप देहाती का अभी हाल में ही निर्धन हुआ है. हेमेंद्र प्रताप देहाती का जन्म भले ही एक जमींदार परिवार में हुआ हो, लेकिन ताउम्र उनकी राजनीति समाजवाद की रही, वह दो दो बार सोशलिस्ट पार्टी से विधायक रहें, समाजवाद के प्रति उनकी अटूट निष्ठा रही, इस प्रकार भानुप्रताप शाही जिस प्रकार से अपने पिता के सपनो को पूरा करने का हवाला दे रहे हैं, उसमें कोई खास दम नजर नहीं आता है.
तो फिर क्यों बदले भानु के सूर?
यहां यह भी याद रहे कि भाजपा की आंतरिक राजनीति में भानुप्रताप शाही हमेशा हाशिये पर खड़े नजर आये, एक बेजोड़ वक्ता होने के बावजूद उन्हे कोई खास तब्बजो नहीं दी गयी. पूर्व सीएम रघुवर दास और बाबूलाल मंराडी खेमे से भी उनकी एक सीमा तक दूरी बनी रही.
भानु की राजनीतिक यात्रा
यहां बता दें कि पलामू जिले के जिस भवनाथपुर विधान सभा का प्रतिनिधित्व भानू प्रताप शाही करते रहे हैं, उस विधान सभा से वह कमल की सवारी कर विधान सभा पहुंचने वाले पहले विधायक हैं, उनकी राजनीति यात्रा की शुरुआत वर्ष 2005 में नौजवान संघर्ष मोर्चा के बनैर तले होती है, तब उनके सामने नगरउंटारी राज के वंशज अनंत प्रताप देव थें, लेकिन इस हार का बदला अनंत प्रताप देव ने वर्ष 2009 में ले लिया, लेकिन इस बीच देश की राजनीतिक फिजा में बदलाव आया और मौके को भांप भानुप्रताप कमल की सवारी कर बैठें, लेकिन जैसे ही उन्हे मोदी मैजिक का ज्वार उतरा नजर आया, उनकी अपनी सियासत डोलती नजर आने लगी. और यही कारण है कि अपने विधान सभा के सामाजिक समीकरण को टटोलने लगे, और उन्हे इस बात का एहसास होते देर नहीं लगी कि यदि वह अपने विधान सभा के सामाजिक समीकरण को साध नहीं पाये तो उनके लिए विधान सभा की सवारी मुश्किल होने वाली है.
क्या है भवनाथपुर का सामाजिक समीकरण
भवनाथपुर विधान सभा क्षेत्र पंरपरागत रुप से समाजवादी और कांग्रेसी राजनीति का केन्द्र रहा है, विधान सभा में समाजवादी खेमे का प्रतिनिधित्व भानु प्रताप के पिता हेमेंद्र प्रताप देहाती, तो कांग्रेसी खेमे का प्रतिनिधित्व नगरउंटारी राज के वंशज के हाथों में रहा. विधान सभा की जातीय समीकरण की बात करे तो यहां सबसे ज्यादा आबादी यादव, मुस्लिम और आदिवासी समाज की है और बगैर पिछड़े, दलित आदिवासी और अल्पसंख्यकों को साथ लिए यहां की राजनीति नहीं साधी जा सकती. यही सामाजिक समीकरण भानुप्रताप शाही को डरा है और उनके बदलते राजनीतिक सूर का रहस्य भी यहीं छुपा है.