TNP DESK-इंडिया गठबंधन की दिल्ली बैठक में घटक दलों के बीच तीन सप्ताह के अंदर-अंदर सीटों का तालमेल बिठाने का संकल्प जारी किया गया था. दावा किया गया कि दिसम्बर के आखिरी सप्ताह तक यह साफ हो जायेगा कि किस घटक दल के हिस्से कितनी सीट आयेगी और उसका चेहरा कौन होगा. हालांकि उस संकल्प को कार्यरुप देने की दिशा में झारखंड में अब तक किसी औपचारिक बैठक की खबर नहीं आयी है, लेकिन यह दावा जरुर किया जा रहा है कि घटक दलों के बीच बंद कमरे में संवाद जारी है. और जल्द ही इसकी सूचना दिल्ली तक पहुंचा दी जायेगी.
इंडिया गठबंधन के कई चेहरे मैदान में उतरने को बेकरार
लेकिन इस बंद कमरे की बैठक से अलग चतरा संसदीय सीट के लिए घटक दलों की ओर से एक बड़ी फौज जंगे मैदान में उतरने को बेकरार नजर आ रही है. राजद के साथ ही इस सीट के लिए कांग्रेस की भी नजर है, कांग्रेस कोटे से राज्य सभा सांसद धीरज साहू का एक बार फिर से जंगे मैदान में उतरने की चर्चा तेज है. हालांकि जिस तरीके से हालिया दिनों में उनके ठिकानों से करीबन 3.5 सौ करोड़ रुपये की बरामदगी हुई है,उसके बाद उनकी दावेदारी पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं. लेकिन दावा आज भी जारी है कि यदि धीरज साहू ने मन बना लिया तो उनकी उम्मीदवारी को टाला नहीं जा सकता.
धीरज साहू का जोर तो योगेन्द्र साव भी मैदान छोड़ने को तैयार नहीं
इधर धीरज साहू के उपर संशय के बादल उमड़ता देख कर पूर्व बड़कागांव विधायक योगेन्द्र साव को भी अपना अवसर दिखने लगा है. आशा की चिराग नजर आने लगी है. योगेन्द्र साहू की बेटी और वर्तमान में बड़कागांव विधायक अम्बा प्रसाद भी अपने पिता के लिए ताबड़तोड़ बैंटिग कर रही है, अम्बा की इस जिद्द के कारण कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ी हुई है. दरअसल बड़कागांव विधान सभा को योगेन्द्र साव का गढ़ माना जाता है, दावा किया जाता है कि बड़कागांव से कांग्रेस को जो विजय मिलती है, उसकी मुख्य वजह कांग्रेस की लोकप्रियता नहीं होकर, योगेन्द्र साव का अपना संघर्ष है, अम्बा इसी आधार पर अपने पिता योगन्द्र साव के लिए चतरा सीट के लिए बार्गेनिंग कर रही है, दावा यह भी किया जाता है कि यदि अम्बा की इस चाहत को स्वीकार नहीं किया गया तो वह 2024 के पहले कांग्रेस को बॉय-बॉय कर कमल का दामन भी थाम सकती है.
नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर की अग्नि परीक्षा
इस हालत में कांग्रेस के लिए चतरा की पहेली सुलझाना टेढ़ी खीर बनती नजर आ रही है. जिसका समाधान करना नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर की झारखंड में पहली अग्नि परीक्षा होगी. लेकिन यह सियासी टसल सिर्फ कांग्रेस के अंदर ही नहीं है, राजद भी इस सीट के लिए अपना जोर लगाता दिख रहा है, राजद की ओर से सबसे मजबूत दावेदारी हेमंत सरकार में श्रम और नियोजन मंत्री सत्यानंद भोक्ता की है. लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ा कांटा राजद नेता सुभाष यादव हैं. दावा किया जाता है कि सत्यानंद भोक्ता सीएम हेमंत की पहली पसंद है, तो सुभाष तेजस्वी के सम्पर्क में हैं. अब देखना होगा कि तेजस्वी यादव राजद टिकट वितरण में सुभाष की चाहत का ख्याल करते हैं या सीएम हेमंत की पसंद का सम्मान, वैसे बड़ा सवाल तो यही है कि टिकट बंटवारें में यह सीट किस घटक दल के खाते में जाती है. लेकिन जिस तरीके से सत्यानंद भोक्ता की ओर से जोर लगाते दिख रहे हैं, माना जा रहा है कि इस बार राजद को अपनी लालटेन जलाने का मौका मिल सकता है. यहां ध्यान रहे कि चतरा के साथ ही राजद की नजर पलामू, कोडरमा और गोड्डा भी बनी हुई है.
वर्तमान सांसद सुनील सिंह की वापसी पर भी सवाल
लेकिन सवाल वर्तमान सांसद सुनील सिंह की वापसी पर भी है, उनके खिलाफ आलाकमान को लगातार शिकायतें भेजी जा रही है, दो दो बार लगातार कमल खिलाने के बाद दावा किया जा रहा है कि इस बार उनके लिए इस संसदीय सीट से कमल खिलाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. सबसे बड़ी शिकायत कार्यकर्ताओं से दूरी की है, दावा किया जाता है कि सुनील सिंह अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को ही भाव नहीं देते. चतरा शहर के बाहर उनका दौरा नहीं होता, हालांकि कार्यकर्ताओं की इस नाराजगी के बीच दावा यह भी है कि दिल्ली दरबार में उनकी पकड़ मजबूत है, और इस प्रकार अंतिम समय में वह एक बार फिर से टिकट अपने नाम करने में कामयाब होंगे.
भाजपा खेमे से कालीचरण सिंह और बृजमोहन तिवारी की भी दावेदारी तेज
लेकिन यदि किसी विशेष परिस्थति में टिकट कटने की नौबत आती है तो भाजपा के अंदर लम्बे समय से टिकट की वाट जोह रहे कालीचरण सिंह या बृजमोहन तिवारी का किस्मत खुल सकता है. हालांकि जिस तरीके से बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों का प्रकाशन हुआ है, और उसके बाद पिछड़ा आरक्षण में विस्तार देकर ठीक 2024 के पहले सीएम नीतीश ने एक बड़ा सियासी दांव खेला है, उसके बाद यदि सुनील सिंह का टिकट कटता है तो बहुत संभव है कि इस बार भाजपा किसी पिछड़ा चेहरा को सामने लाये. शायद यही कारण है कि हालिया दिनों में पूर्व सांसद नागमणि का दिल्ली में भाजपा नेताओं के साथ बैठक तेज हुई है. वह अमित शाह से लेकर जेपी नड्डा से मिलते नजर आये हैं.
क्या है चतरा का सामाजिक समीकरण
यहां यह भी बता दें कि सिमरिया, चतरा (चतरा जिला), मनीका, लातेहार (लातेहार) और पांकी (पलामू जिला) की पांच विधान सभाओं को अपने आप में समेटे चतरा लोकसभा का एक मात्र अनारक्षित विधान सभा पलामू जिले का पांकी विधान सभा है. इन पांच विधान सभाओं पर आज के दिन सिमरिया विधान सभा में भाजपा के किशुन कुमार दास, चतरा विधान सभा से राजद कोटे से मंत्री सत्यानंद भोक्ता, मनीका विधान सभा सीट से कांग्रेस के रामचन्द्र सिंह, लातेहार विधान सभा से झामुमो के वैधनाथ राम, जबकि पांकी विधान सभा से भाजपा के शशिभूषण कुशवाहा विधायक हैं.
पिछले चुनाव में कैसा रहा था संघर्ष
यदि विधान सभा की मौजूदा ताकत के हिसाब से देखें तो पांच में से दो विधान सभाओं पर भाजपा, एक-एक पर राजद, झाममो और कांग्रेस का कब्जा है. लेकिन चतरा लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 से भाजपा का कब्जा है. वर्ष 2014 में सुनील कुमार सिंह ने झारखंड विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष इंदरसिंह नामधारी से इस लोकसभा की जो कमान संभाली है, आज तक वह उसे बरकरार रखे हुए हैं. इस बीच उनके खिलाफ वर्ष 2014 में कांग्रेस के मनोज कुमार यादव तो वर्ष 2019 में कांग्रेस के ही धीरज साहू ने मोर्चा संभाला, लेकिन दोनों ही बार सुनील सिंह जीत का सेहरा अपने नाम करने में कामयाब रहें. हालांकि धीरज साहू के सामने आते ही जीत का फासला सिमट करीबन डेढ़ लाख रह गया था, इस हालत में देखना होगा कि इस बार यह सीट किस घटक दल के हिस्से जाती है. और उसके बाद कौन कौन से चेहरे बागी हो मैदान में उतरने की हिम्मत दिखलाते हैं, और यह सवाल सिर्फ इंडिया गठबंधन तक सीमित नहीं है, भाजपा भी इस बार इससे दो चार हो सकती है.
जदयू प्रवक्ता सागर का ललन सिंह के इस्तीफे से इंकार, मीडिया पर लगाया प्रायोजित खबरें परोसने का आरोप
आदिवासियों में जहर घोलने की संघी साजिश है डीलिस्टिंग! हर चुनाव के पहले आरएसएस खेलता है यह घिनौना खेल