रांची(RANCHI)- एक तरफ हेमंत सरकार बिहार की तर्ज भी झारखंड में भी जातीय जनगणना करवाने का दावा करती है. खुद सीएम हेमंत सोरेन जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी का राग अलपाते नजर आते हैं. लेकिन इसके साथ ही वह इस दिशा में कोई बड़ा कदम उठाते भी नजर नहीं आते.
सीएम हेमंत का दावा है कि राज्य सरकार ने जातीय जनगणना की अनुमति के लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखा है, लेकिन राज्य सरकार के इस पत्र पर राजभवन कुंडली मार कर बैठा है, और अब उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गयी. सीएम हेमंत का यह तर्क अपने जगह तथ्यात्मक रुप से ठीक है. लेकिन सवाल यह है कि क्या झामुमो ने अपने दूसरे कोर मुद्दे की तरह इसके के लिए कभी राजभवन का घेराव किया, क्या झामुमो इस मांग के समर्थन में कभी सड़क पर संघर्ष करती नजर आयी, क्या इसके लिए दूसरे विकल्पों की तलाश की गयी.
बिहार में केन्द्र सरकार ने अपने संसाधनों से करवाने की अनुमति प्रदान की थी
इसकी अनुमति तो बिहार में भी नहीं मिली थी, लेकिन वहां नीतीश सरकार ने लम्बी कानूनी लड़ाई, हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपनी आवाज को उठाया, और केन्द्र सरकार के द्वारा इंकार करने के बाद खुद के संसाधनों के बल पर सर्वेक्षण करवाने का फैसला किया.
सीएम हेमंत में दिखलायी नहीं पड़ता वह जज्बा
साफ है कि जातीय जनगणना के प्रति जो समर्पण नीतीश कुमार के अन्दर था, वह जज्बा सीएम हेमंत में दिखलायी नहीं पड़ता, वह सिर्फ जातीय जनगणना के लिए मौखिक संघर्ष करते नजर आते हैं. झाममो के विपरीत इस मुद्दे पर कांग्रेस कुछ ज्यादा ही मुखर नजर आ रही है, झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर और प्रभारी अविनाश पांडेय लगातार इसकी वकालत करते नजर आ रहे हैं. पूर्व विधायक और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जलेश्वर महतो भी लगातार संघर्ष करते नजर आ रहे हैं.
तब क्या यह माना जाय कि इसके पीछे सीएम हेमंत की सियासी मजबूरी है. जानकारों का आकलन है कि स्थिति कुछ इसी प्रकार की है. क्योंकि अब तक जिस जनजातीय आबादी को झारखंड की सबसे बड़ी आबादी समझी जाती है, और इसके साथ ही झारखंड को आदिवासी बहुल राज्य माना जाता है, जातीय जनगणना के आंकडों के प्रकाशन के बाद यह तस्वीर बदल सकती है.
यहां बता दें कि वर्तमान में झारखंड में आदिवासी आबादी करीबन 26 फीसदी के आसपास है, जबकि पिछड़ों की आबादी करीबन 37 फीसदी आंकी जाती है, लेकिन पिछड़ा वर्ग आयोग की एक गोपनीय रिपोर्ट का हवाला देते हुए इस बात का दावा किया जा रहा है कि राज्य में पिछड़ों की आबादी 50 फीसदी के पार है. और इसमें सबसे बड़ी आबादी महतो समुदाय की है. यही मुख्य वजह है कि झामुमो जातीय जनगणना के मुद्दे को ज्यादा तूल देने से बचना चाहती हैं, लेकिन इस मुद्दे को जिंदा रख कर वह भाजपा को कटघरे में खड़े रखना जरुर चाहती हैं, ताकि पिछड़ों मतों की गोलबंदी झामुमो के पक्ष कायम रह सके.