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आते ही निपटाने लगे बाबूलाल!  अब समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं के हिस्से दरी बिछाने और माइक लगाने की जिम्मेवारी

आते ही निपटाने लगे बाबूलाल!  अब समर्पित भाजपा कार्यकर्ताओं के हिस्से दरी बिछाने और माइक लगाने की जिम्मेवारी

Ranchi- अब तक भाजपा प्रदेश अनुसूचित जाति अध्यक्ष और विधायक दल के नेता की जिम्मेवारी संभाल रहे चंदनकियारी विधायक अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी सौंपने की खबर फैलते ही कई भाजपा नेताओं के चेहरे मुर्छाए नजर आने लगे हैं. हालांकि कोई भी सार्वजनिक रुप से कुछ भी बोलने से बचता दिख रहा है, लेकिन अदंर की खलवलाहट तेज है. एक के बाद एक पार्टी नेतृत्व के द्वारा लिये जा रहे फैसले से उनकी बेचैनी बढ़ती दिख रही है, झारखंड भाजपा में उनका भविष्य अंधकारमय दिखने लगा है, तीन-तीन चार-चार बार के विधायक रहे और पार्टी के प्रति अटूट समर्पण के बावजूद उन्हें वह सम्मान और जिम्मेवारी पार्टी में मिलती नहीं दिख रही, जिसकी आशा और हसरत उनके अंदर उमड़ी-घूमड़ती रहती है.  

बाबूलाल के पुराने शागिर्द रहे अमर बाउरी की ताजपोशी पर सवाल

जिस प्रकार से पार्टी के बाहर से आये नेताओं को उनके सिर पर बिठाया जा रहा है, झारखंड विकास मोर्चा से आये बाबूलाल को प्रदेश अध्यक्ष, उन्ही का पुराना शागिर्द अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष और झाममो के रास्ते भाजपा में आये मांडू विधायक जेपी भाई पेटल के सिर पर पार्टी का मुख्य सचेतक की जिम्मेवारी सौंपी  गयी है, उसके बाद उनके सामने यह सवाल खड़ा होने लगा है कि आखिर अब उनकी भूमिका क्या होने वाली है?

कार्यकर्ताओं की बेचैनी, बाबूलाल के बाद क्या अब अमर बाउरी के लिए भी जुटानी होगी भीड़

अब तक उनके सिर पर बाबूलाल की संकल्प यात्रा के लिए भीड़ जुटाने की जिम्मेवारी थी, अब नेता प्रतिपक्ष बनाये गये अमर बाउरी के लिए भी उन्हे दरी बिछाना होगा, और मुख्य सचेतक जेपी पटेल की हर हुक्म का पालन करना होगा? नेताओं में यह सवाल उमड़ रहा है कि आखिर पार्टी उन्हे किस गुनाह की सजा दे रही है. और यह कथा कहां रुकने वाली है? वर्षों पहले बाबूलाल की विदाई के बाद जब भाजपा के सामने किसी पार्टी के प्रति समर्पित कार्यकर्ता के सिर पर सीएम का ताज रखने का मौका था, तब भी उनकी उपेक्षा कर झामुमो के रास्ते आये अर्जुन मुंडा पर दांव लगाया गया था. अब बाबूलाल की वापसी के बाद उनके सामने आयातित नेताओं की त्रिमूर्ति खड़ी कर दी गयी है.

संदेह के घेरे में बाबूलाल की भूमिका

वहीं कुछ नेताओं के द्वारा इस पूरे प्रकरण में बाबूलाल की भूमिका को भी संदेह की नजर से देखा जा रहा है, उनका आकलन है कि जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से बाबूलाल की नजदीकियां बढ़ी है, और अपनी संकल्प यात्रा के सहारे जिस प्रकार बाबूलाल ने अपना तेवर दिखलाया है, उसके बाद बहुत संभव है कि यह पाशा भी उन्ही के द्वारा चला गया हो, एक तरफ वह खुद प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हो गयें और दूसरी तरफ अपने पुराने शागिर्द को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर विराजमान कर प्रदेश भाजपा का पूरा शक्ति संतुलन भी बदल दिया और रही सही कसर जेपी पटेल की ताजपोशी ने पूरी कर दी.

आज भी कायम है रघुवर दास का जलवा?

हालांकि कई नेताओं की राय इससे पूरी तरह से जुदा है, उनका कहना है कि भले ही केन्द्रीय नेतृत्व ने बाबूलाल की वापसी करवाई हो, और आज के दिन बाबूलाल का पीएम मोदी से लेकर अमित शाह से भी पटती हो, लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष आज भी जलबा पूर्व सीएम रघुवर दास का ही चलता है. और यह बात जगजाहीर है कि बाबूलाल का रघुवर दास के साथ छत्तीस का रिश्ता है. रघुवर दास ने जिस सुनियोजित तरीके से बाबूलाल की संकल्प यात्रा की हवा निकाल दी, उसके बाद दोनों के बीच सर्द रिश्तों की कहानी सार्वजनिक हो चुकी है.

रघुवर दास ने कैसी निकाली थी संकल्प यात्रा की हवा

यहां हम बता दें कि दावा किया जाता है कि जब बाबूलाल की संकल्प यात्रा जमशेदपुर पहुंची तो रघुवर टीम ने एक साजिश के तहत इसके आयोजन के लिए शहर की सबसे छोटे मैदान को चुना, और उस छोटे से मैदान का भी महज आधा हिस्सा में पंडाल आदि लगाया गया, कुल मिलाकर करीबन 15 सौ लोगों का बैठने की व्यवस्था की गयी, लेकिन ताज्जूब तो तब हुआ कि भीड़ महज सात से आठ सौ लोगों की जुटी, इस हालत को देख बाबूलाल को समझते देर नहीं लगी कि झारखंड भाजपा में उनका हश्र क्या होने वाला है.

पीएम मोदी के नजदीकी बाबूलाल का महज भ्रम

हालांकि जानकार मानते हैं कि बाबूलाल भले ही यह भ्रम पाले की पीएम मोदी से लेकर अमित शाह से उनकी खूब जमती है, लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी मोदी अमित शाह की नजर में रघुवर दास ही मजबूत सियासी खिलाड़ी है. वैसे रघुवर दास के प्रति इस विश्वास का कई दूसरे कारण और सामाजिक समीकरण भी है, जिसकी पूर्ति बाबूलाल नहीं करते.

खैर जिस प्रकार अमर बाउरी और जेपी पटेल की ताजपोशी हुई है, उसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं की नजर में बाबूलाल संदेह के घेरे में हैं. यदि समय रहते इन कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर नहीं की गयी, तो 2024 की लडाई में हेमंत को पैदल करने का जो सपना भाजपा देख रही है, वह दूर दूर तक पूरा होता नजर नहीं आता.

Published at:16 Oct 2023 02:25 PM (IST)
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