रांची(RANCHI)- कभी दिशोम गुरु शिबू सोरेन का दायां हाथ माने जाने वाले सूरज मंडल ने झामुमो का झटका देते हुए भाजपा का दामन तो जरुर थाम लिया. लेकिन भाजपा में शामिल होते ही उनके सियासी ग्राफ में गिरावट का भी दौर शुरु हो गया और इस सियासी संकट में वह कई बार अपने विवादित बयानों के जरिये अपनी राजनीतिक जमीन तलाशते नजर आते हैं.
भाजपा उम्मीदवार जनार्दन यादव को दी थी पटकनी
कभी झामुमो के टिकट पर गोड्डा संसदीय सीट से भाजपा उम्मीदवार जनार्दन यादव को पटकनी देने वाले सूरज मंडल ने एक बार फिर से बड़ा सियासी दांव खेला है. और इस बार उनके निशाने पर और कोई नहीं खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी है. अपने ताजातरीन बयान में सूरज मंडल ने दावा किया है कि बाबूलाल के रहते विधान सभा में भाजपा जीत को मुहाने पर भी खड़ा नहीं हो सकती. जीत तो दूर की बात है.
गोड्डा संसदीय सीट पर लगी है नजर
लेकिन कहानी यह नहीं है, जानकारों का मानना है कि दरअसल यह लड़ाई गोड्डा संसदीय सीट पर दावेदारी की है, वर्ष 2018 में झामुमो की आंतरिक राजनीति का शिकार होकर जब सूरज मंडल ने भाजपा का दामन था तो उन्हे इस बात विश्वास था कि आज नहीं तो कल भाजपा गोड्डा संसदीय सीट से उम्मीदवार बनायेगी. लेकिन निशिकांत दुबे की जीत दर जीत के बाद उनका यह हौसला टूटता नजर आता है.
जातीय भागीदारी के सवाल को उठा कर अपनी जमीन तलाश रहे हैं मंडल
यही कारण है कि वह बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी जातीय भागीदारी का सवाल उठा रहे हैं, उनका आरोप है कि जिन जातियों की आबादी झारखंड में तीन फीसदी भी नहीं है, उन जातियों को भाजपा में 33 फीसदी की भागीदारी दी गयी है. दो फीसदी आबादी वाली जाति को एक लोकसभा और राज्यसभा का सीट दिया जाता तो चार फीसदी आबादी वाली जाति को भी लोकसभा का एक सीट दिया जाता है, जबकि इसके विपरीत 25 फीसदी आबादी वाला महतो समुदाय का आज महज एक सांसद है.
निशाने पर निशिकांत, लेकिन इंडिया गठबंधन में चेहरों की कमी नहीं
साफ है कि उनके निशाने भाजपा सांसद निशिकांत हैं. हालांकि वह जातीय भागीदारी का सवाल खड़ा कर अपनी इस पीड़ा को बड़ा सामाजिक आधार देने की कोशिश कर रहे हैं. सूरज मंडल का यह संकट इसलिए और भी गहरा हो जाता है कि झामुमो की बदली सियासत में अब झामुमो भी उनको भाव देने की स्थिति में नहीं है, जिस गोड्डा संसदीय सीट पर सूरज मंडल की नजर है, उस गोड्ड संसदीय सीट के लिए इंडिया गठबंधन में पहले सी ही मारामारी है. फुरकान अंसारी, प्रदीप यादव के साथ ही दीपिका पांडेय सिंह की भी दावेदारी मजबूत है. इस हालत में कुल मिलाकर इंडिया गठबंधन में गोड्डा संसदीय सीट के लिए चेहरों की कोई कमी नहीं है. और यहीं से सूरज मंडल की राजनीतिक अंत होती नजर आती है. क्योंकि सूरज मंडल के पास भाजपा छोड़ कर जाने का कोई विकल्प नहीं है,