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सेना जमीन घोटाला तो पहली झांकी है, अभी पूरी कहानी बाकी है, देखिये झारखंड बनते ही कैसे शुरु हुई भू माफियाओं और अधिकारियों की संयुक्त लूट

सेना जमीन घोटाला तो पहली झांकी है, अभी पूरी कहानी बाकी है, देखिये झारखंड बनते ही कैसे शुरु हुई भू माफियाओं और अधिकारियों की संयुक्त लूट

रांची(RANCHI)-आदिवासी-मूलवासी समूहों को विकास में भागीदारी के सपने के साथ वर्ष 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ था, तब यह माना गया था कि जल्द ही इन तमाम वंचित सामाजिक समूहों की पीड़ा दूर होगी, उनका सामाजिक संत्रास दूर होगा, आर्थिक सामाजिक वंचना से उन्हे मुक्ति मिलेगी और वे विकास के हमराही बन बुलंद भारत की एक नयी तस्वीर पेश करेंगे.

पुरखों के सपनों का कब्रगाह बना झारखंड

लेकिन झारखंड गठन के बाद हर दिन इन सामाजिक समूहों का सपना बिखरता चला गया. उनकी आर्थिक- सामाजिक दुर्दशा और भी दुभर होती चली गयी, जिस जल, जंगल और जमीन की लड़ाई में उनके पुरखों ने अपनी जिंदगी को कुर्बान किया था, झारखंड गठन के बाद उस जल जंगल और जमीन की लूट पर विराम लगने के बजाय, और भी सुसंगठित रुप से उसकी लूट की शुरुआत हुई. शहर हो या गांव जमीन लूट की यह दहशत हर जगह कायम हो गयी. पूरे राज्य में भू माफियाओं और अधिकारियों की संयुक्त लूट की भयावह तस्वीर सामने आने लगी. कह सकते हैं कि उपर उपर विकास की आंधी बहने का दावा किया जाता रहा, और सरजमीन पर पुरखों के सपनों के साथ लूट की रफ्तार बेहद तेज होती गयी.

एक संगठित गिरोह का पर्दाभास

सेना की जमीन घोटाले में जिस प्रकार से एक संगठित गिरोह का पर्दाभास हुआ है, जमीन दलालों से लेकर आईएएस अधिकारियों की कारगुजारियां सामने आयी है, राजस्व अधिकारी, अंचल अधिकारी से लेकर भू निंबधन अधिकारियों के कारनामों से पर्दा उठा है. वह चौंकाने वाला भले ही हो, लेकिन वह है बेहद सामान्य सी परिघटना. क्योंकि सेना की जमीन की यह लूट कोई अकेली घटना नहीं है, इस तरह हजारों एकड़ जमीन की लूट तो सिर्फ राजधानी रांची के आसपास ही हुई है. कुछ मामले अखबारों की सुर्खियां बने है, तो कुछ को बेहद ही खामोशी से दफन कर दिया गया, आज इसकी परतों की पड़ताल करना भी जोखिम भरा कदम हो सकता है.

भू माफियाओं की गिद्ध दृष्टी से लोगों में दहशत

याद रहे कि कभी झारखंड की आबोहवा चाय की खेती के लिए भी बेहद अनुकूल मानी जाती थी, नामकुम के एक पूरे इलाके की पहचान ही चाय बगान के रुप में थी, यहां सैंकड़ों एकड़ में चाय की खेती होती थी, लेकिन झारखंड गठन के बाद चाय बगान की इस बेहद उपजाऊ जमीन पर भू माफियाओं की गिद्ध दृष्टी पड़ी और करीबन सौ एकड़ जमीन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दिन के उजाले में बेच दिया गया, राजस्व विभाग के जिन अधिकारियों पर इसकी सुरक्षा की जिम्मेवारी थी, उनकी इमारतें दिन दूनी रात चौगनी रफ्तार से उंची उठती गयी. कुछ ऐसी ही हालत बुंडू इलाके की है, यहां तो 1457 एकड़ जमीन का सौदा मात्र 10 करोड़ में कर दिया गया. उसकी बिक्री भी हो गयी और राजस्व अधिकारियों के द्वारा इस सौदे पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया गया? यह भू माफियाओँ की हिम्मत का ही काम था कि जिस बीआईटी मेसरा के सहारे झारखंड की पहचान बनी थी, उस बीआईटी मेसरा की 60 एकड़ जमीन को बेहद शातिराना तरीके से बेच दिया गया, और आज भी उसकी कोई खोज खबर लेने वाला नहीं है.

जितनी तेजी से गुंजा आदिवासी मूलवासियों का मुद्दा, उतनी तेजी से हुई उनकी जमीनों की लूट

ताज्जूब तो यह है कि झारखंड गठन के बाद राजधानी रांची की सड़कों पर जिस बुलंदी से आदिवासी-मूलवासियों के सवालों को उछाला गया, उनके अधिकारों की रक्षा की बात की गयी, उससे भी तेज गति से इसी राजधानी में आदिवासी जमीन की लूट हुई. दावा किया जा रहा है कि लॉ यूनिवर्सिटी के आसपास करीबन 200 एकड़ आदिवासी खाते की जमीन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर गैर आदिवासियों को बेच दिया गया.

सवालों के घेरे में भू निबंधन विभाग

एक सामान्य सा आदमी भी यह बता सकता है कि दो सौ एकड़ की जमीन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कर दिया जाय और भू निबंधन विभाग को इसकी भनक नहीं लगे, यह असंभव है. लेकिन लगता है कि झारखंड राज्य का गठन इसी असंभव को संभव करने के छूपे मकसद से किया गया है, हालांकि इसके नारों के केन्द्र में आदिवासी मूलवासियों की सदियों की पीड़ा और संत्रास था, उनकी सामाजिक आर्थित और शैक्षणिक वंचना थी.

Published at:06 May 2023 06:08 PM (IST)
Tags:Army land scamjoint loot of land mafia and officers Jharkhand लॉ यूनिवर्सिटी आदिवासी जमीन की लूटचाय बगान भू निबंधन विभागछवि रंजन प्रदीप बागची अफसर अलीआदिवासी मूलवासियों का मुद्दा बीआईटी मेसरा Jharkhand
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