पटना(PATNA)- बिहार को राजनीति का प्रयोगशाला यों ही नहीं कहा जाता. यहां के कण-कण में राजनीति निवास करती है, यहां कौन कब किसके साथ खड़ा हो जाय कोई नहीं जानता, राजनीति में थ्रिलर अंतिम समय तक बना रहता है, आप किसी भी चाय की दुकान पर बैठकर इस थ्रिलर का आनन्द ले सकते हैं.
कुछ इसी तरह का नजारा एक बार फिर से देखने को मिला है, अभी चंद दिन पहले तक नीतीश कुमार का साथ देने का दंभ भरने वाले जीतन राम मांझी ने नीतीश सरकार से किनारा कर लिया है. इस प्रकार 23 जून को होने वाली विपक्षी एकता की बड़ी बैठक के पहले नीतीश कुमार को गहरा झटका दिया है. उनके बेटे संतोष कुमार सुमन ने कैबिनेट से अपना इस्तीफा सौंप दिया है.
हालांकि किसी भी मान-मनोबल के प्रयास के बजाय नीतीश कुमार ने बिना देरी किये इस्तीफे को स्वीकार कर लिया और इस प्रकार से महागठबंधन से ‘हम’ की विदाई की औपचारिकता पूरी हो गयी. औपचारिकता इसलिए कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार के साथ रहने के हर दावे के साथ जीतन राम मांझी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो रहा था, और चाय के दुकानों पर यह चर्चा तेज थी कि यह सब महज दिखावा है, यदि महागठबंधन में जीतन राम मांझी को पर्याप्त सीट नहीं मिली तो साथ निभाने के सारे दावे कागजी होने वाले हैं, और हुआ भी वही, जैसे ही जीतन राम को यह खबर मिली 2024 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन उन्हे दो से ज्यादा सीट नहीं देने जा रही है, जीतन राम मांझी ने राजनीति का अपना पाशा फेंक दिया.
जीतन राम मांझी का एनडीए में जाना तय
संतोष कुमार सुमन के इस्तीफे के बाद उनका अगला कदम क्या होगा, इस पर कोई ज्यादा संशय भी नहीं है. बिहार की समकालीन राजनीति में यहां किसी तीसरे फ्रंट की कोई गुंजाइश नहीं है, बिहार की लड़ाई एनडी और महागठबंधन के बीच ही होनी है, इसलिए देर सबेर जीतन राम मांझी का एनडीए में जाना तय है.
क्या भाजपा जीतन राम को किसी राज्य का गवर्नर बना कर भेजेगी?
लेकिन इसके साथ ही बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि घोषित रुप से भगवान राम को अपना नायक मानने से इंकार करने वाले जीतन राम को क्या भाजपा अपनायेगी, और यदि अपना भी लेती है तो जीतन राम मांझी को इससे हासिल क्या होगा? क्या भाजपा 2024 में जीतन राम के द्वारा मांगे जा रहे पांच सीटों के दावे को स्वीकार करेगी.
भगवान राम को लेकर बयानों के कारण सुर्खियों में रहे हैं जीतन राम
यहां याद दिला दें कि जीतनराम मांझी गाहे बेगाहे अपने बयानों से अखबारों की सुर्खियां बटोरते रहे हैं, और हर बार उनके निशाने पर हिंदू धर्म होता है, वह कभी राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करते हैं, तो कभी दलितों को पूजा पाठ से दूर रहकर बाबा साहेब अम्बेडकर के रास्ते पर आगे बढ़ने की सलाह देते हैं. लेकिन दूसरे ही दिन खुद सपरिवार वैष्णव धाम की यात्रा पर निकल पड़ते हैं. कभी वह हिन्दू धर्म की सारी कमजोरियों की वजह ब्राह्मणों को बताते हैं, तो कभी दलितों को सत्यनारायण की कथा से दूर रहने की सलाह देते हैं, लेकिन अगले ही दिन वह अपने बंगले पर ब्राह्मण दलित भोज का आयोजन भी करवाते हैं. कभी दलितों को शराब के सेवन से दूर रहने की सलाह देते हैं तो कभी शराबबंदी पर अपना निशाना साधते हैं, ताड़ी पर पाबंदी का तो वह लगातार विरोध करते ही रहे हैं. कुल मिलाकर बिहार की राजनीति में जीतन राम मांझी एक अबुझ पहेली है, उनका अगना निशाना और अगला ठिकाना क्या होगा, कोई नहीं जानता, 2024 में अभी करीबन साल भर का समय है, देखना होगा कि इस बीच वह कौन सी राह पकड़ते हैं, लेकिन इतना तो तय है कि भगवान राम को अपने नायक के रुप में अस्वीकार करते रहे जीतन राम मांझी को अपनाने में भाजपा को कोई राजनीतिक उलझन नहीं होगी, सवाल सिर्फ उन पांच सीटों का है, जिसकी मांग जीतन राम मांझी करते रहे हैं, भाजपा खेमें पहले ही चिराग पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा और दूसरे दलों की मौजूदगी है, सबों के अपने अपने दावे हैं, इन दावों के बीच जीतन राम को एडजस्ट करना भाजपा के लिए भी एक चुनौती है.
पहले भी भाजपा के साथ जाकर अपना हाथ जला चुके हैं जीतन राम
दूसरी बात यह है कि भाजपा पहले भी इनको साध कर राजनीति का हस्श्र देख चुकी है, एनडीके साथ रहते हुए जीतन राम मांझी की पार्टी ने कुल 22 सीटों पर विधान सभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन नीतीश और तेजस्वी के आंधी में किसी प्रकार से अपनी सीट को निकालने में सफल रहे थें, बाकि जगहों पर जमानत बचाने लिए भी संघर्ष करना पड़ा था, क्या भाजपा इस बार फिर से लोकसभा की पांच सीटें देकर राजनीतिक जोखिम लेने को तैयार होगी.