Ranchi-कोलकत्ता कैश कांड से सुर्खियों में आये जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी, कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल और खिजरी विधायक राजेश कच्छप के तिकड़ी के खिलाफ अभी मामला शांत भी नहीं हुआ था कि एक बार फिर से यह ग्रुप झारखंड कांग्रेस के समानान्तर अपना मोर्चा खोलता नजर आने लगा है. लेकिन इस बार इस तिकड़ी का विस्तार होकर 5-जी में रूपान्तरण हो चुका है, बरही विधायक उमाशंकर अकेला यादव और सिमडेगा के विधायक भूषण बाड़ा इस ग्रुप के नये सदस्य है.
संगठन पर कब्जे की लड़ाई
हालांकि इस 5-जी ग्रुप का घोषित एजेंडा भाजपा के खिलाफ लड़ाई का है, कांग्रेस की जमीन को मजबूती प्रदान करने का है, सांगठनिक मजूबती प्रदान करने का है. लेकिन विश्लेषकों का दावा है कि इस गुप्र की सक्रियता भले ही औपचारिक रुप से भाजपा के खिलाफ दिखती हो, लेकिन इसके असली निशाने पर झारखंड कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर हैं और राजेश ठाकुर के खिलाफ यह कोई पहली लड़ाई नहीं है, पिछली बार भी यह तिकड़ी राजेश ठाकुर के खिलाफ ही मोर्चा खोलने की तैयारी में था, लेकिन जब तक इस ग्रुप का प्लान पूरा होता, कोलकत्ता कैश में इनकी गर्दन फंस चुकी थी, दावा किया जाता है कि कोलकत्ता कैश में इनकी गर्दन फंसते ही राजेश ठाकुर की ओर से इन तीनों को राजनीतिक रुप से सलटाने की तैयारी कर ली गयी, लेकिन एन वक्त पर दिल्ली का डंडा चला और किसी प्रकार से इनकी पार्टी में वापसी हो गयी, लेकिन अन्दरखाने इसकी खुनस बनी. दोनों ही खेमों के द्वारा संगठन पर कब्जे की लड़ाई चलती रही, और इसके साथ ही इस ग्रुप की शक्ति में विस्तार भी होता रहा और यही कारण है कि बरही विधायक उमाशंकर अकेला यादव और सिमडेगा विधायक भूषण बाड़ा ने साफ साफ इस ग्रुप के साथ जाने का संकेत दे दिया है, माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस ग्रुप में और भी कई विधायकों को जुड़ाव हो सकता है.
अल्पसंख्यक या आदिवासी चेहरे को सामने लाने की लड़ाई
दरअसल दावा किया जा रहा है कि झारखंड कांग्रेस के अन्दर राजेश ठाकुर के खिलाफ बगावत की स्थिति है, पार्टी का यह खेमा अध्यक्ष के रुप में किसी आदिवासी या पिछड़ा चेहरा को देखना चाहता है, इनका दावा है कि जब तक पार्टी अध्यक्ष के रुप में किसी अल्पसंख्यक या पिछड़ा चेहरा को सामने नहीं लाया जायेगा, पार्टी की स्थिति में कोई सुधार नहीं आयेगा, उसका जनाधार में विस्तार नहीं होगा. जबकि पार्टी का दूसरा खेमा किसी भी हालत में किसी आदिवासी, दलित, पिछड़ा या अल्पसंख्यक को अपना चेहरा नहीं बनाना चाहता. यही कारण है कि बार-बार झारखंड प्रदेश में किसी अल्पसंख्यक या आदिवासी चेहरे को सामने लाने की कोशिशों को पलीता लगा दिया जाता है.