पटना(PATNA)-दलित आईएएस जी कृष्णैया के हत्यारे आनन्द मोहन की रिहाई के बाद दलित और दलित संगठनों के निशाने पर रहे सीएम नीतीश कुमार ने एक साथ दस अम्बेडकर विद्यालयो की स्थापना की घोषणा कर बड़ा दलित कार्ड खेला है. सीएम नीतीश की आज की कैबिनेट की बैठक में राजधानी पटना, मसौढ़ी, फुलवारी शरीफ, नवादा के अकबरपुर, सुपौल के छातापुर, समस्तीपुर के विभूतिपुर, गया के टिकारी, डोभी और बेलागंज के अलावा दरभंगा के बहादुरपुर में 10 अम्बेडकर विद्यालयों की स्थापना करने की घोषणा की गयी है.
आनन्द मोहन की रिहाई से दलितों में पनप रहा था बगावती सूर
आनन्द मोहन की रिहाई और अब एक साथ 10 अम्बेडकर विद्यालयों घोषणा को 2024 के महाजंग से पहले सीएम नीतीश कुमार का एक और मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है, दावा किया जा रहा है कि आनन्द मोहन की रिहाई कर सीएम नीतीश ने राजपूत जाति को यह भरोसा दिलवाने की कोशिश की है कि भाजपा राजपूतों का मान सम्मान की रक्षा में असमर्थ है. चाहे भागीदारी का सवाल हो या सम्मान का सवाल, उनके लिए जदयू से बेहतर कोई नहीं.
लेकिन अभी यह संदेश और संकेत राजपूत जाति तक पहुंचता, उसके पहले ही दलितों से विरोध की खबर सामने आने लगी. विरोध की शुरुआत हो गयी, दलित चिंतकों और विचारकों की ओर से सीएम नीतीश को निशाने पर लिया जाने लगा, जैसे ही यह खबर जदयू और सीएम नीतीश के पास पहुंची, मामले को शांत करने की कवायद शुरु हुई, और जिस तेजी से जदयू की ओर से आनन्द मोहन की रिहाई को उछाला गया था, अचानक उस पर चुप्पी साध ली गयी. लेकिन अन्दर ही अन्दर दलितों के घाव पर मरहम लगाने के उपाय खोजे जाते रहें, रणनीतियां बनायी जाती रही और इसी कड़ी में आज एक साथ 10 अम्बेडकर विद्यालयों की स्थापना की घोषणा कर दी गयी.
एक साथ दलितों और राजपूतों को साधने की कवायद
एक तरफ जहां आनन्द मोहन की रिहाई कर राजपूत जाति को साधने की कोशिश की गयी, वहीं अब एक साथ 10 अम्बेडकर विद्यालयों की स्थापना कर दलितों को भी यह संदेश देने की कोशिश की गयी है, इस सामाजिक कटूता से बाहर निकल कर दलितों का पूरा फोकस शिक्षा के जरीय सामाजिक बदलाव पर होना चाहिए, यह विद्यालय ही हैं, जहां से अम्बेडकर के सपनों का भारत खड़ा किया जा सकता है. और अम्बेडकर के उस भारत में समता भी होगी, समानता भी होगा और जातीय संघर्ष से मुक्ति भी. एक ऐसा भारत होगा जहां दलित आईएएस जी कृष्णैया सिर्फ आईएएस होगा, दलित और सवर्ण नहीं.