Ranchi- अपनी तमाम कोशिशों और राजनीतिक कौशल के बावजूद भी बाबूलाल मरांडी नेता विपक्ष की कुर्सी तक नहीं पहुंच सकें. यह मामला विधान सभा अध्यक्ष का न्यायाधिकरण और हाईकोर्ट में उलझता चला गया, हालांकि झारखंड हाईकोर्ट के द्वारा कई बार इस मुद्दे टिप्पणी भी आयी, लेकिन बावजूद इसके विधान सभा न्यायाधिकरण की ओर से कोई फैसला नहीं आ सका, बीच-बीच में विधान सभा अध्यक्ष की ओर से इस बात के संकेत भी दिये जाते रहे कि भाजपा नेता विपक्ष के रुप में किसी और चेहरे को आगे कर सकती है. हालांकि नेता प्रतिपक्ष की गैर मौजदूगी का नुकसान सत्ता पक्ष को भी उठाना पड़ा, इसके कारण कई आयोगों में अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हो सकी. जिसके कारण सरकार काम काज भी प्रभावित हुआ.
आदिवासी चेहरे को सामने करने के बाद गैर आदिवासी चेहरे को आगे लाने की मांग
लेकिन जब अब भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को झारखंड प्रदेश अध्यक्ष का पद भार सौंप दिया है, अब एक बार फिर से विधायक दल के नेता की खोज शुरु हो चुकी है. अन्दरखाने अपने अपने दावे ठोके भी जाने लगे हैं. दावा किया जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष के रुप में एक आदिवासी चेहरे को सामने लाने के बाद भाजपा अब किसी सामान्य जाति पर अपना दांव लगा सकती है. इस कड़ी में सीपी सिंह से लेकर अनंत ओझा के नामों पर विचार किया जा रहा है.
पिछड़ा चेहरा को सामने लाने की मांग
लेकिन इसके साथ ही भाजपा में एक दूसरा खेमा भी सक्रिय है जो पिछड़ों का सम्मान की बात को उछाल रहा है. इस खेमे का तर्क है कि आजसू के पास पिछड़ी जातियों के बीच काफी मजबूत जनाधार है, और इसी वोट बैंक के चक्कर में भाजपा को आजसू का चक्कर लगाना पड़ता है. बाबूलाल के बाद अब भाजपा किसी पिछड़े चेहरे को आगे कर आजसू पर अपनी निर्भरता को कम करने की रणनीति पर काम कर सकती है. इस खेमे की ओर से भाजपा का प्रमुख पिछड़ा चेहरा विरंची नारायण के नाम को उछाला जा रहा है.
संतालों को सम्मान तो मुंडाओं की अनदेखी क्यों?
लेकिन इन चुनिंदा नामों के साथ ही भाजपा में नेता प्रतिपक्ष के दावेदारों की कमी नहीं है, प्रमुख एसी चेहरा माने जाने वाले अमर बाउरी भी अपनी दावेदारी तेज करते नजर आ रहे हैं. खूंटी जैसे पिछड़े इलाके पांच बार से विधायक रहे नीलकंड मुंडा भी अचानक से अपनी गतिविधियों को तेज कर चुके हैं. बाबूलाल की तरह वह भी भाजपा के प्रमुख आदिवासी चेहरा बताये जाते हैं. पार्टी के अन्दर उनकी पकड़ भी अच्छी है, और उनकी छवि एक सर्वमान्य नेता के तौर पर है. उनके समर्थकों का दावा है कि बाबूलाल को आगे कर भाजपा ने संतालों का सम्मान तो दिया है, अब बारी मुंडा जनजाति की है, जिसे अब तक उसके हिस्से का सम्मान नहीं मिला, यहां हर राजनीति दल की रणनीति संतालों को खुश करने की होती है, और इस कवायद में हर बार मुंडाओं की हकमारी होती है, नीलकंठ मुंडा को सम्मान देकर मुंडा वोट बैंक को साधा जा सकता है.