Patna-जननायक कर्पूरी ठाकुर को उनके जन्मशताब्दी के ठीक एक दिन पहले भारत रत्न की घोषणा कर भाजपा जिसे अति पिछड़ी जातियों के बीच अपना मास्टर कार्ड मान बैठी थी, उसी मास्टर कार्ड को अब तेजस्वी यादव ने चूना लगाते हुए इस खुशी के पल को अधूरा बताया है, आज विधान मंडल परिसर में कर्पूरी ठाकुर की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए तेजस्वी ने कहा है कि जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की राजद की बहुत ही पुरानी मांग थी, जब प्रधानमंत्री बिहार आये थें तब भी मैंने भरी मंच से उनसे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग किया था, देर से सही आखिरकार भाजपा को कर्पूरी ठाकुर की याद आयी, इसके लिए शुक्रिया, लेकिन काश: इसके साथ ही कांशीराम को भी यह सम्मान दे दिया गया होता तो आज की यह खुशी दुगनी होती.
भाजपा को दलितों और महादलितों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है
साफ है कि तेजस्वी यादव ने अपने बयान से दलित समुदाय की उस दुखती रग पर हाथ रख दिया है, जिनके अंदर आज कांशीराम के लिए भारत रत्न का ख्वाब जग रहा होगा, ध्यान रहे कि राजद काफी अर्से से कर्पूरी ठाकुर के साथ ही कांशीराम को भी भारत रत्न देने की मांग करता रहा है. दूसरी तरफ जदयू की ओर से कर्पूरी ठाकुर के साथ ही पर्वत पुरुष दशरथ मांझी को भी भारत रत्न देने की मांग की जाती रही है. खुद पूर्व सीएम जीतन राम मांझी भी इस मांग को दुहराते रहे हैं. इस हालत में जहां भाजपा कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न प्रदान कर अति पिछड़ी जातियों की हितैषी होने का दावा कर रही है, वहीं कांशीराम और दशरथ मांझी को दरकिनार किये जाने के कारण उसे दलित और महादलितों की नाराजगी का सामना भी करना पड़ सकता है.
तेज हो सकती है कांशीराम के लिए भारत रत्न की मांग
ध्यान रहे कि जातीय जनगणना के आंकड़े के अनुसार बिहार में दलित और महादलितों की आबादी करीबन 20 फीसदी की है, और 20 फीसदी की इस आबादी में अति पिछड़ी जातियों के समान ही सीएम नीतीश का एक बड़ा और मजबूत जनाधार है. अब इसकी काट खोजना भाजपा को मुश्किल हो सकता है. दूसरी तरफ देश की सियासत के साथ ही यूपी की राजनीति में कांशीराम का एक अपना जलबा है. उन्हे आजादी के बाद दलितों का सबसे बड़ा आईकॉन माना जाता है, पूरे देश में दलित जातियों के बीच कांशीराम का नाम बेहद ही सम्मान के साथ लिया जाता है, बिहार हो महाराष्ट्र या फिर दूसरे हिन्दी भाषा भाषी राज्य कांशीराम को चाहने वालों की एक लम्बी जमात है. बहन मायावती तो खुद को कांशीराम का उतराधिकारी भी मानती है, और यही कारण है कि मायावती और बसपा के द्वारा लम्बे समय से दलित जातियों के इस आईकॉन के लिए भारत रत्न की मांग करती रही है, इस हालत में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न की घोषणा के साथ ही कांशी राम के लिए भी भारत रत्न की मांग तेज हो सकती है. और दलित जातियों के अंदर छुपी इसी चाहत को तेजस्वी हवा देते नजर आते हैं, और यदि तेजस्वी की यह तीर निशाने पर लगता है तो भाजपा के सामने संकट सिर्फ बिहार ही नहीं दूसरे राज्यों में भी खड़ा हो सकता है.
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