Patna-जातीय जनगणना से निकला तीर अब तेजी से धार्मिक कर्मकांडों में हिस्सेदारी की ओर बढ़ता नजर आने लगा है. और यह तीर आशा के अनुरुप जदयू की ओर से ही चलाया गया है. जातीय जनगणना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने इस सवाल को खड़ा करते हुए पूछा है कि भाजपा को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि उसके शासित राज्यों के मंदिरों में दलित-अतिपिछड़ों की हिस्सेदारी कितनी है? कितने मंदिरों में दलित-पिछड़ों को पंडा-पुजारी बनाया गया है? क्योंकि दलित-पिछड़ों की यह लड़ाई सिर्फ सियासी-सामाजिक क्षेत्र में हिस्सेदारी के साथ ही रुकने वाली नहीं है, अब यह तीर दूर तलक जायेगा, और सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में भागीदारी का सवाल खड़ा होगा.
जदयू के 17 सांसदों में पांच अतिपिछड़े
जब नीरज कुमार से खुद जदयू में दलित पिछड़ों की हिस्सेदारी का सवाल खड़ा किया गया तो नीरज कुमार ने दावा कि उसके 16 सांसदों में पहले से ही पांच अति पिछड़ें है. क्या यही हिम्मत भाजपा दिखलायेगी. क्या भाजपा अतिपिछड़ों की हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने का काम करेगी.
अति पिछडी राजनीति का चेहरा माने जाने वाले प्रेम कुमार कहां हैं
भाजपा पर तंज कसते हुए नीरज कुमार ने कहा कि भाजपा की स्थिति तो यह है कि वह उस प्रेम कुमार को साइड लाइन कर देती है, जिसे कभी भाजपा में अति पिछड़ी राजनीति का चेहरा माना जाता था. लेकिन मोदी शासनकाल में प्रेम कुमार कहां है, किसी को यह जानकारी नहीं है. समय से पहले ही भाजपा ने उन्हे राजनीतिक बियाबान में फेंक दिया. राजनीतिक वनवास के लिए मजबूर कर दिया गया है.
नीतीश ने अपने गृह जिले में अति पिछड़ो को सौंपा कमांड
नीरज कुमार ने दावा किया है कि दलित अतिपिछड़ों का सम्मान कैसे किया जाता है .भाजपा को जदयू और सीएम नीतीश कुमार से सिखना चाहिए. नीतीश कुमार ने अपने गृह जिले में भी जदयू की कमांड हमेशा से अति पिछड़ों के हाथ में रखा, सियाशरण ठाकुर से लेकर हिरावृंद तक जिला अध्यक्ष के पद पर तैनात रहें.
दलितों की हकमारी के लिए भाजपा राम-राम का नारा लगवाती है
नीरज कुमार ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि दलित पिछड़ी जातियां अपना हक नहीं मांगे इसलिए भाजपा राम-राम का नारा लगवाते रहती है, लेकिन जदयू उसे सीताराम-सीताराम कहने पर मजबूर कर देगी. हमने ना सिर्फ जातीय जनगणना करवाया बल्कि उसका रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने का जोखिम भी उठाया. नीरज कुमार ने इस बात का भी दावा किया कि उनके लिए जातीय जनगणना का सवाल वोट का सवाल नहीं है, बल्कि वचनवद्धता का सवाल है, नीतीश कुमार पिछले तीन दशक से इसकी वकालत करते रहे थें, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल से लेकर वर्तमान पीएम मोदी तक उन्होंने गुहार लगायी, लेकिन चारों तरफ से निराशा हाथ लगने के बाद उन्होंने इसे बिहार में करवाने का फैसला किया.
2024 के पहले नीतीश का मास्टर स्ट्रोक
ध्यान रहे कि 2024 का जंग और पांच राज्यों में होने वाले सेमीफाइनल मुकाबले से ठीक पहले सीएम नीतीश ने अपना मास्टर स्ट्रोक खेल दिया और आशा के अनुरुप यह तीर बिल्कुल निशाने पर लगता प्रतीत हो रहा है. दलों और गठबंधनों की दीवार भी दरकती नजर आने लगी है, सिर्फ और सिर्फ अपने जातीय समीकरण के हिसाब से नफा-नुकसान को तौला जाने लगा है.
भाजपा के दावों के विपरीत दलित जातियों को दिखने लगा है हिस्सेदारी का रास्ता
जिस आक्रमकता के साथ भाजपा नेताओं के द्वारा इस पर प्रतिक्रिया दी जा रही है, जातीय जनगणना की रिपोर्ट को नकारते हुए इसे बिहार में जहर घोलने की कवायद बतायी जा रही है, उतनी ही विपरीत प्रतिक्रिया दलित और अति पिछड़ी जातियों के नेताओं के बयानों में देखने को मिल रही है. दलित-पिछड़ी जातियों से आने वालों नेताओं का तर्क भाजपा के स्टैंड से ठीक विपरीत दिशा में जाता दिख रहा है. उनका दावा है कि जातीय जनगणना की रिपोर्ट से 75 वर्षों के शोषण का पर्दाफाश हो गया. आजादी के बाद अब तक कुछ मुट्ठी भर जातियां ही बिहार की राजनीति को हांकती रही है, जिन जातियों की आबादी महज दो से चार फीसदी थी, विधान सभा से लेकर लोकसभा में उनकी तूती बोलती रही, अब वक्त आ गया है कि इस सियासी परिदृश्य को बदला जाय, और जिसकी जितनी संख्या भारी है, उसकी उतनी हिस्सेदारी के रास्ते भागीदारी का रास्ता साफ किया जाय.
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने भी खोला मोर्चा
पूर्व सीएम और बिहार में दलित राजनीति का आइकॉन माने जाने जीतन राम मांझी ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी होने के बाद अपने सोशल मीडिया ट्वीट पर लिखा है कि’ बिहार में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट आ चुकी है। सूबे के SC/ST,OBC,EBC की आबादी तो बहुत है पर उनके साथ हक़मारी की जा रही है। मैं माननीय नीतीश कुमार से आग्रह करता हूं कि राज्य में आबादी के प्रतिशत के हिसाब से सरकारी नौकरी/स्थानीय निकायों में आरक्षण लागू करें, वही न्याय संगत होगा.
मांझी के बयान से इस बात की तस्दीक होती है कि तीर निशाने लगा
पूर्व सीएम जीतन राम मांझी का यह बयान इस बात को रेखांकित करता है कि नीतीश का मास्टर कार्ड अपना काम करने लगा है, बिहार की पूरी राजनीति 15 बनाम 85 में उलझता नजर आने लगा है. और खुद नीतीश कुमार की रणनीति भी यही थी. जिस प्रकार भाजपा लगातार उग्र हिन्दुत्व पर सियासी बैंटिंग कर ओबीसी-दलित मतदाताओं अपने पाले में कर रही थी, उसके बाद दलित-पिछड़ी जातियों की सियासी-सामाजिक भागीदारी का सवाल नेपथ्य में जाता दिख रहा था. उग्र हिन्दुत्व के इस भूचाल में कोई यह पूछने की जहमत भी नहीं उठा रहा था कि नौकरियों में दलित-अतिपिछड़ों की भागीदारी कितनी है, विधान सभा से लेकर लोकसभा में उनकी हिस्सेदारी क्या है. लेकिन जातीय जनगणना का आंकड़ा जारी होते ही यह सवाल नेपथ्य से राजनीति के मुख्य धारा में शामिल हो गया. और यही भाजपा की सियासी परेशानी की वजह है और जातीय जनगणना के आंकडों को नकारने का कारण भी.