रांची(RANCHI)-17 जुलाई से हेमंत सरकार के कथित भ्रष्टाचार के विरुद्ध संकल्प यात्रा पर निकलने की घोषणा करने वाले बाबूलाल मरांडी वैसे तो अपने आप को काफी आक्रमक दिखलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस संकल्प यात्रा को लेकर भाजपा की तैयारियों पर सवाल उठ रहे हैं, इस यात्रा के दौरान कितनी भीड़ जुटेगी और भाजपा कार्यकर्ताओं की इस संकल्प यात्रा में कितनी भागीदारी होगी को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं.
दावे हेमंत के विरुद्ध और निशाने पर भाजपा के पुराने चेहरे
जानकारों का दावा है कि बाबूलाल की इस संकल्प यात्रा का घोषित उद्देश्य भले ही हेमंत सरकार के कथित भ्रष्टाचार को सामने के लाने की हो, लेकिन असली मकसद भाजपा के पुराने चेहरों पर अपने को स्थापित करने का है, क्योंकि केन्द्रीय आलाकमान के द्वारा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रुप में ताजपोशी के बावजूद बाबूलाल की झारखंड भाजपा में स्वीकार्यता नहीं है और यह संकल्प यात्रा भाजपा की संकल्प यात्रा नहीं होकर बाबूलाल की संकल्प यात्रा है. यह बाबूलाल को भी पत्ता है कि अर्जून भाजपा, रघुवर भाजपा और दीपक भाजपा में बंटी भाजपा में कोई भी गुट उनक साथ चलने को तैयार नहीं है.
बाबूलाल की इसी राजनीतिक विवशता पर झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने तंज कसा है, बाबूलाल को निशाने पर लेते हुए सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि यदि भीड़ जुटाने में कोई परेशानी हो तो झामुमो मदद को तैयार है. वैसे भी किसी हाट बाजार में इस संकल्प यात्रा का आयोजन कर इसकी औपचारिकता पूरी की जा सकती है. लेकिन असली सवाल तो बाबूलाल के संकल्प का है. वह तो बार बार बदलता रहता है.
कुतुबमीनार से कूदने का संकल्प कब होगा पूरा!
बाबूलाल को उनके पुराने संकल्पों की याद दिलाते हुए सुप्रियो भट्टाचार्य ने सवाल खड़ा किया कि बाबूलाल कुतुबमीनार से कूदने का संकल्प को कब पूरा करने जा रहे हैं. बाबूलाल को एक संकल्प को पूरा करने के बाद ही दूसरा संकल्प लेना चाहिए.
लेकिन जब इसी सवाल को बाबूलाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि वह तो कुतुबमीनार से कूद पड़े थें, लेकिन भाजपा ने बचा लिया, अब बड़ा सवाल यही है कि बाबूलाल को भाजपा ने बचा लिया या फंसा दिया! क्योंकि जानकारों का दावा है कि बाबूलाल को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रुप में कांटों का ताज मिला है, टुकड़ों टुकड़ों में बंटी इस भाजपा को सहेजने से ज्यादा आसान ए लॉन्ग जंप फ्रॉम कुतुबमीनार है, क्योंकि वहां लक्ष्य सामने खड़ा है, लेकिन यहां तो दुश्मन पार्टी के अन्दर ही भरे पड़े हैं, सबसे निशाने पर बाबूलाल हैं, और कोई भी गुट हेमंत सराकर के विरुद्ध मोर्चा खोलने के तैयार नहीं है, सबकी कोशिश हेमंत से पहले बाबूलाल को निपटाने की है.