टीएनपी डेस्क(TNP DESK):हमारे देश में देवताओं के लाखों मंदिर है, जिनकी अपनी अपनी धार्मिक मान्याताएं है. जिसके पीछे सदियों से कई कहानियां प्रचलित है.जहां लोग अपने परिवार के साथ दर्शन करने जाते है. वहीं झारखंड की बात करें तो यहां भी सैकड़ों धार्मिक स्थान मौजूद है ,जिसके पीछे कई रोचक धार्मिक कहानियां प्रसिद्ध है, इन्ही में से एक है लौहनगरी जमशेदपुर का हाथीखेदा मंदिर. जहां रोजाना हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ती है. शहर से 35 किलोमीटर दूर इस मंदिर की अपनी अद्भुत कहानी है, क्योंकि यहां किसी देवी देवता की नहीं बल्कि हाथी की पूजा की जाती है.
लौहनगरी का यह मंदिर प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है
जमशेदपुर के पटमदा के बोड़ाम प्रखंड में स्थित बाबा हाथी खेदा ठाकुर का यह मंदिर देखने में काफी ही खूबसूरत है, यह चारों तरफ से प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है. इसके आसपास सुंदर पहाड़ और घने जंगल है, जिसकी वजह से इसकी सुंदरता और बढ़ जाती है. इसको देखने के लिए और यहां दर्शन करने के लिए रोजाना हजारों भक्त इस मंदिर में आते हैं और पूजा पाठ करने के बाद प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाते हैं. आपको बताएं कि यहां की सबसे खास और अलग बात यह है कि बाथीखेदा बाबा के मंदिर में किसी देवी देवता की पूजा नहीं की जाती है बल्कि यहां हाथी की पूजा की जाती है. जिसकी वजह से यह काफी प्रसिद्ध है.
मन्नतें मांगने के लिए पेड़ पर चुनरी के साथ नारियल बांधा जाता है
इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां किसी भी मन्नत को मांगने से जरूर पूरा होता है. यहां पर लोग मन्नतें मांगने के लिए पेड़ पर चुनरी के साथ नारियल बांधते हैं. वहीं इसके साथ यहां भेड़ की भी बलि चढ़ाने की परंपरा काफी पुरानी है. यहां और एक सबसे खास बात यह है कि यहां का प्रसाद सिर्फ पुरुष ही ग्रहण करते हैं, महिलाएं यहां के प्रसाद को नहीं खा सकती हैं.इसके साथ ही यहां के प्रसाद को घर ले जाने की भी मनाही है.
महिलाओं को प्रसाद खाने पर है रोक
आपको पता है कि इस मंदिर के आसपास बसे लोगों ने पहले से ही नियम बना रखा है कि यहां के प्रसाद को महिलाएं नहीं खाएंगी. झारखंड के साथ पूरे देश से इस मंदिर में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं. वहीं मंदिर के अंदर की बात की जाएं, तो पूरे मंदिर हाथियों की बहुत सारी मूर्तियां बनी हुई है. वहीं पूरा मंदिर घंटी, चुनरी और नारियल से पटा हुआ काफी खूबसूरत लगता है.जब भी लोग यहां मन्नत मांगते है, और पूरा हो जाता है, तो देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भेड़ की बलि चढ़ाते हैं, जिसका कुछ हिस्सा मंदिर में चढ़ाया जाता है और बाकी प्रसाद के रूप में लोग वहीं बनाकर खा जाते है.