टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : सरहुल पर्व झारखंड के खास पर्वों में से एक है, जो हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है.यह पर्व विशेष रूप से झारखंड के आदिवासी समुदाय द्वारा मनाया जाता है, जो प्रकृति की पूजा और वन्य जीवन के प्रति सम्मान का प्रतीक है.
सरहुल पर्व के पीछे का इतिहास
सरहुल पर्व का इतिहास वर्षों पुराना है.यह पर्व आदिवासी समुदाय द्वारा पारंपरिक रूप से मनाया जाता है, जो प्रकृति की पूजा और वन्य जीवन के प्रति सम्मान का प्रतीक है. सरहुल पर्व के दौरान, आदिवासी समुदाय के लोग पेड़-पौधों की पूजा करते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं.
सरहुल का महत्व
सरहुल पर्व का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह पर्व प्रकृति की पूजा और वन्य जीवन के प्रति सम्मान का प्रतीक है.झारखण्ड के आदिवासी समुदाय के लोग सरहुल के दिन पेड़-पौधों की पूजा करते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं. यह पर्व सामाजिक एकता और सौहार्द को भी बढ़ावा देता है, जो आदिवासी समुदाय के बीच आपसी भाईचारे और सहयोग के प्रति है.सरहुल पर्व का एक अन्य महत्व यह है कि यह पर्व आदिवासी संस्कृति के पारंपरिक जीवनशैली को दर्शाता है.सरहुल के दिन आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सजे हुए होते हैं और अपनी पारंपरिक नृत्य और संगीत कर इस दिन को त्यौहार के रूप में मानते है.
सरहुल पर्व का अर्थ
सरहुल पर्व का अर्थ है फूलों का त्योहार. यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है, जब पेड़-पौधे फूलों से सज जाते हैं.सरहुल आते है पेड़ पौधे नए फूलों से साज जाते है और ऐसे में अभी का दृश्य काफी खूबसूरत होता है.
सरहुल पर्व कैसे मनाया जाता है
सरहुल पर्व के दिन फूलों की पूजा की जाती है, जो प्रकृति की सुंदरता और वन्य जीवन के प्रति सम्मान का प्रतीक है.वही इसके अलावा सरहुल पर्व में नृत्य और संगीत का आयोजन किया जाता है, जो आदिवासी संस्कृति को दर्शाता है. बता दे कि सरहुल पर्व के दौरान विशेष भोजन और पेय का आयोजन किया जाता है, जो आदिवासी संस्कृति की विशेषता और स्वाद को प्रदर्शित करता है.
तो इस प्रकार, सरहुल पर्व झारखंड के आदिवासी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो प्रकृति की पूजा, आदिवासी संस्कृति के प्रदर्शन और सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है.